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बाबा पंडित

रुई का आविष्कार करने वाले महर्षि गृत्समद

  • 30 Oct 2021

हमारी ऋषि परम्परा के आकाश में महर्षि #गृत्समद एक बहुत #दैदीप्यमान_नक्षत्र हैं।  #ऋग्वेद के दूसरे मंडल के दृष्टा इन ऋषि के विषय में ऋग्वेद, अथर्ववेद, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत और गणेशपुराण में बहुत रोचक आख्यान मिलते हैं। 
महर्षि गृत्समद #ऋषिशुनहोत्र के पुत्र थे। इनका नाम #शौनहोत्र रखा गया था, लेकिन इंद्र के प्रयास से #शुनकऋषि के दत्तक पुत्र के रूप में इनकी प्रसिद्धि हुई  और वह शौनक “गृत्समद” के नाम से विख्यात हो गये।  “गृत्स” का अर्थ है प्राण और “मद” का अर्थ है अपान।  इस तरह प्राणापान का समन्वय ही 'गृत्समद' तत्व हैं।  ऋग्वेद का दूसरा मंडल “गात्सर्मद मण्डल” कहलाता है। 
ऐसा विवरण पाया जाता है की वे अपनी इच्छा के अनुसार रूप धारण कर देवताओं की सहायता करते थे। असुरों से उनकी रक्षा करते थे।  देवराज इन्द्र ने उन्हें अक्षय तप, वाक्सिद्धि, मंत्र-शक्ति और अखंड भक्ति का वर प्रदान किया। 
गणेश पुराण के अनुसार गृत्समद भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे।  उन्होंने कठोर तपस्या कर गणेशजी को प्रसन्न किया और उनसे अनेक वरदान प्राप्त किए। उनकी कर्मभूमि एवं तपोभूमि प्राचीन विदर्भ मे श्री चिंतामणि गणेश का जागृत स्थान कळंब थी। वर्तमान यवतमाल जिले के अन्तर्गत यह तीर्थस्थान पर एक प्राचीन शिलालेख मे उनका वर्णन अंकित है। वे एक गहन संशोधक कृषिविज्ञानी थे। वस्त्रनिर्माण के लिए उपयुक्त तन्तुमय फल वनस्पति 'रुई' का आविष्कार कर उन्होंने  विश्व को लज्जारक्षण का साधन प्रदान किया। विदर्भ की सुजलाम सुफलाम भूमि रुई उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
ऋग्वेद के “#गार्त्समद_मण्डल" में ४३  सूक्त हैं, जिनमें इंद्र, अग्नि, आदित्य, मित्रावारूं, वरुण, विश्वदेव और मरुत की स्तुतियाँ हैं।  इंद्र और महर्षि की मित्रता के वृतांत भी हैं।  इस मण्डल में विश्व के सभी जीवों के कल्याण की प्रार्थना की गयी है।
-बाबापण्डित (http://www.babapandit.com)