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भोपाल

आदिवासियों को लुभाने भाजपा-कांग्रेस लगा रहे जोर

  • 05 Dec 2022

खुद जमीन तैयार कर रहे सीएम, एमपी में आदिवासी आबादी वाले सबसे ज्यादा गांव
भोपाल। मप्र की सियासत में इन दिनों समाज का सबसे पिछड़ा तबका यानी आदिवासी राजनैतिक दलों की जुबान पर हैं। प्रदेश की करीब दो करोड़ से ज्यादा आदिवासी आबादी को लुभाने के लिए सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के नेता जोर लगा रहे हैं। पिछले चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली तो 15 साल बाद बीजेपी को सत्ता से दूर होना पड़ा। पिछले चुनाव में हुई चूक को बीजेपी दोहराना नहीं चाहती।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी वर्ग को बीजेपी से जोडऩे के लिए पेसा कानून लागू करने से लेकर तमाम योजनाओं और जनजातीय जननायकों की प्रतिमाएं लगवाने, स्मारकों के विकास का काम तेजी से कराना शुरु किया है। 15 नवंबर से मप्र में पेसा कानून प्रभावी होने के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद आदिवासी क्षेत्रों में जाकर पेसा जागरूकता शिविर लगाकर आदिवासियों से सीधे जुड़ रहे हैं।
इंदौर आदिवासी राजनीति का केंद्र बना
मप्र के 20 जिलों के 89 ब्लॉक आदिवासी बहुल हैं। इनमें सबसे ज्यादा इंदौर संंभाग के 40 विकासखंड आदिवासी बहुल हैं। हाल ही में लगातार हो रहे राजनैतिक कार्यक्रमों का केन्द्र इंदौर ही रहा है। दूसरे नंबर पर जबलपुर संभाग के 27 ब्लॉक जनजातीय बहुल हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो साल भर तक आदिवासी राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र इंदौर ही रहेगा। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इसी आदिवासी बहुल इलाके में अपनी भारत जोड़ो यात्रा निकाल चुके हैं।
सबसे ज्यादा गांव एमपी में
केन्द्र सरकार की एक रिपोर्ट बताती है। कि देश में 50 फीसदी जनजातीय आबादी वाले 36428 गांव हैं। आधी से ज्यादा आदिवासी आबादी वाले गांवों में मप्र देश में पहले नंबर पर है। एमपी के 7307 गांवों में आदिवासियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है। दूसरे नंबर पर राजस्थान में 4302 गांवों में 50त्न आबादी आदिवासियों की है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में 4029, झारखंड में 3891, गुजरात में 3764, महाराष्ट्र में 3605 गांवों में आधे से ज्यादा आदिवासी निवासरत हैं।
47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित
मप्र विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं इनमें से 47 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों के कारण ही कांग्रेस सत्ता में 15 साल बाद वापस हुई थी। 47 में से कांग्रेस को 30 सीटें मिली थीं।आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से प्रदेश की 84 सीटों पर आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं। प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के खाते में 15 सीट आयी थीं। लेकिन 2018 के चुनाव में भाजपा को इसी ट्रायबल बेल्ट से करारी हार मिली और एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी। कांग्रेस ने 30 सीटें जीत लीं और भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी।
शिवराज सरकार ने खेला बड़ा दांव
शिवराज सरकार ने 15 नवंबर को प्रदेश में पेसा एक्ट (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड ट्रायब्स) लागू किया है। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने शहडोल से इसकी शुरुआत की थी। एमपी में पेसा कानून लागू होने के बाद से ही सीएम शिवराज सिंह चौहान खुद आदिवासी बहुल जिलों में जाकर जागरुकता अभियान चला रहे हैं।
पेसा एक्ट की तीन प्रमुख बातें- जल, जंगल, जमीन
जमीन का अधिकार- कानून में जमीन यानी भूमि का अधिकार मुख्य तौर पर सशक्त बनाया गया है। भूमि प्रबंधन का अधिकार इतिहास में पहली बार दिया गया है। आदिवासी क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन अध्याय 4 पैरा 16 में भूमि प्रबंधन के अधिकार दिए गए हैं।