Highlights

बाबा पंडित

एकादश रुद्र

  • 16 Aug 2021

शास्त्रों के मुताबिक शिव ग्यारह अलग-अलग रुद्र रूपों में दु:खों का नाशकरते हैं। यह ग्यारह रूप एकादश रुद्र के नाम से जाने जाते हैं।
शम्भू – शास्त्रों के मुताबिक यह रुद्र रूप साक्षात ब्रह्म है।इस रूप में ही वह जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं।
पिनाकी – ज्ञान शक्ति रुपी चारों वेदों के के स्वरुप माने जाने वाले पिनाकी रुद्र दु:खों का अंत करते हैं।
गिरीश – कैलाशवासी होने से रुद्र का तीसरा रुप गिरीश कहलाता है।इस रुप में रुद्र सुख और आनंद देने वाले माने गए हैं।
स्थाणु – समाधि, तप और आत्मलीन होनेसे रुद्र का चौथा अवतार स्थाणु कहलाताहै।इस रुप में पार्वती रूप शक्ति बाएं भाग में विराजित होती है।
भर्ग – भगवान रुद्र का यह रुप बहुत तेजोमयी है।इस रुप में रुद्र हर भय औरपीड़ा का नाश करने वाले होते हैं।
भव – रुद्र का भव रुप ज्ञान बल, योग बल और भगवत प्रेम के रुप में सुख देने वाला माना जाता है।
सदाशिव – रुद्र का यह स्वरुप निराकार ब्रह्मका साकार रूप माना जाता है।जो सभी वैभव, सुख और आनंद देनेवाला माना जाता है।
शिव – यह रुद्र रूप अंतहीन सुख देनेवाला यानि कल्याण करने वाला माना जाताहै। मोक्ष प्राप्ति के लिए शिव आराधनामहत्वपूर्ण मानीजाती है।
हर – इस रुप में नाग धारण करने वाले रुद्र शारीरिक, मानसिक और सांसारिक दु:खों को हर लेते हैं। नाग रूपी काल पर इन का नियंत्रण होता है।
शर्व – काल को भी काबू में रखने वाला यह रुद्र रूप शर्व कहलाता है।
कपाली – कपाल रखने के कारण रुद्र का यह रूप कपाली कहलाता है।
अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
 सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।।
में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है-
शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्।
शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण।
रोगं हरति निर्माल्यं शोकं तु चरणोदकं ।
अशेष पातकं हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।
भगवान् शिव का निर्माल्य समस्त रोगों को नष्ट कर देता है । चरणोदक शोक नष्ट कर देता है तथा शिव जी का नैवेद्य भक्षण करने से सम्पूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं ।
इतना ही नहीं शिव जी के नैवेद्य प्रसाद का दर्शन करने मात्र से पाप दूर भाग जाते हैं और शिव का नैवेद्य ग्रहण करने से खाने से करोड़ों पुण्य प्रसाद ग्रहण करने वाले मनुष्य मे समा जाते हैं ।
दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः ।
भुक्ते तु शिव नैवेद्ये पुण्यान्यायान्त कोटिशः ।।
जो भक्त शिव मन्त्र से दीक्षित हैं वे समस्त शिव लिङ्गों पर चढ़े हुये प्रसाद को खाने के अधिकारी हैं क्यों कि शिव भक्त के लिये शिव नैवेद्य शुभदायक महाप्रसाद है 
शिव दीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसाद संज्ञकम् ।
सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेत् शुभम् ।।
यहाँ शिव मन्त्र के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों की दीक्षा से सम्पन्न भक्तों के लिये शिव नैवेद्य ग्रहण विधि का वर्णन किया गया है ।
अन्य दीक्षा युत नृणां शिवभक्ति रतात्मनाम् ।
 चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न मानवैः ।।
जो शिवजी से भिन्न दूसरे देवता की दीक्षा से युक्त हैं और शिव भक्ति में भी जिनका मन लगा हुआ है ऐसे मनुष्यों को वह शिव नैवेद्य नहीं खाना चाहिये जिस पर भगवान् शङ्कर के गण चण्ड का अधिकार है । अर्थात् जहाँ चण्ड का अधिकार नहीं है ऐसे शिव नैवेद्य सभी भगवद्भक्त मनुष्य खायें तो कोई दोष नहीं है ।
अब यह बताते हैं कि चण्ड का अधिकार कहाँ नहीं होता है ।
बाण लिङ्गे च लौहे च सिद्ध लिङ्गे स्वयंभुवि ।
 प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोsधिकृतो भवेत् ।।
नर्मदेश्वर , स्वर्ण लिङ्ग , किसी सिद्ध पुरुष द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग , स्वयं प्रगट होने वाले शिव लिङ्ग में तथा शङ्कर जी की सम्पूर्ण प्रतिमाओं के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार नहीं होता है । अतः इन शिव लिङ्गों पर चढ़ा हुआ प्रसाद शिवभक्त ग्रहण कर सकता है।
जिन शिव लिङ्गों के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार है वहाँ भी यह व्यवस्था है -
लिङ्गोपरि च यद् द्रव्यं तदग्राह्यं मुनीश्वराः ।
सुपवित्रं च तज्ज्ञेयं यल्लिङ्ग स्पर्श बाह्यतः ।।
हे मुनीश्वरों शिव लिङ्ग के ऊपर जो द्रव्य चढ़ा दिया जाता है उसे ग्रहण नहीं करना चाहिये , जो द्रव्य प्रसाद शिव लिङ्ग स्पर्श से बाहर होता है अर्थात् शिव लिङ्ग के समीप रख कर जो अर्पण किया जाता है भोग लगाया जाता है उसको विशेष रूप से पवित्र समझना चाहिये अतः ऐसे शिव नैवेद्यको सभी मनुष्य ग्रहण कर सकते हैं |
ऐसे परम कल्याण ओर अभय के दाता औधरदानी आशुतोष की आराधना जीव मात्र के लिए सहज ओर मंगल दायक माना गया है |
बिना किसी भय या भ्रांति के शिव पूजन यजन आराधन कर भाव से प्रसाद जरूर ग्रहण करे |ॐ नमःशिवाय हर हर महादेव
--बाबपण्डित