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चिंतन और संवाद

OSHOकहिन : जापान का एक सम्राट....

  • 26 Dec 2020

जापान का एक सम्राट सदगुरु की तलाश कर रहा था।*  अपने बूढ़े वजीर से पूछा कि कोई तो ऐसा आदमी होगा...।_
वह बूढ़ा हंसने लगा।  उसने कहा, आदमी तो हैं, लेकिन तुम न पहचान सकोगे। क्योंकि सच्चा सदगुरु बिलकुल सहज, स्वाभाविक होगा। तुम तलाश कर रहे हो किसी उलटे-सीधे आदमी की। लोग तो मिलेंगे बहुत उलटे-सीधे। मगर जो अभी खुद ही उलटे-सीधे हैं, वे तुम्हें क्या लाख उपाय भी करें तो मार्गदर्शन दे सकेंगे?_
   वे दोनों गए मिलने उस फकीर को। वजीर तो चरणों पर गिर पड़ा फकीर के, लेकिन सम्राट उस आदमी को देख कर इस योग्य न पाया कि इसके चरणों में गिरे।_ आदमी बिलकुल साधारण था। और काम भी क्या कर रहा था! लकड़ियां काट रहा था।
सम्राट ने अपने वजीर से कहा कि यह आदमी लकड़ियां काट रहा है! इसकी क्या खूबी है? वजीर ने कहा, इसकी यही खूबी है। इसी से पूछो कि इसकी साधना क्या है! तो पूछा फकीर से कि तेरी साधना क्या है?_
फकीर कोई और न था, झेन सदगुरु था, बोकोजू। उसने कहा, मेरी कोई साधना नहीं। जब भूख लगती है, तो भोजन कर लेता हूं। और जब नींद आती है, तो सो जाता हूं। मेरी कोई और साधना नहीं है।
सम्राट ने कहा, लेकिन यह कोई साधना हुई? यह भी कोई साधना हुई? यह तो हम सभी करते हैं। जब भूख लगती है, भोजन करते हैं। जब नींद आती है, सो जाते हैं।
बोकोजू ने कहा कि नहीं। इतने जल्दी निष्कर्ष न लो। कई बार तुम्हें भूख नहीं लगती, और तुम भोजन करते हो। और कई बार तुम्हें भूख लगती है, और तुम भोजन नहीं करते। और कई बार तुम्हें नींद आती है, और तुम सोते नहीं। और कई बार तुम्हें नींद नहीं आती, और तुम सोने की चेष्टा करते हो। इतना ही नहीं, तुम जब भोजन करते हो, तब और भी हजार काम करते हो। यंत्रवत भोजन करते रहते हो, और मन न मालूम किन-किन लोकों में भागा रहता है! *और जब तुम सोते हो, तब तुम सिर्फ सोते ही नहीं। कितने-कितने सपने देखते हो! कहां-कहां नहीं जाते! क्या-क्या नहीं करते! मन का व्यापार जारी रहता है। मैं जब भोजन करता हूं, तो सिर्फ भोजन ही करता हूं। बस, भोजन ही करता हूं। उस वक्त भोजन करने के सिवाय बोकोजू में और कुछ भी नहीं होता। और जब सोता हूं, तो सिर्फ सोता हूं; उस समय सोने के सिवाय बोकोजू में और कुछ भी नहीं होता। और जब मुझे नींद आती है, तो मैं एक क्षण भी टालता नहीं; तत्क्षण सो जाता हूं।
बोकोजू के संबंध में कहानियां हैं कि कभी-कभी बीच प्रवचन में देते-देते सो जाता था! नींद आ गई, तो बोकोजू क्या करे? इतना नैसर्गिक आदमी! और ब्रह्ममुहूर्त में नहीं उठता था। और जब किसी ने पूछा उससे कि फकीर को तो ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। तुम ब्रह्ममुहूर्त में नहीं उठते? बोकोजू ने कहा, मैंने परिभाषा बदल ली अनुभव से। फकीर जब उठे, तब ब्रह्ममुहूर्त। जब नींद खुले, तो भीतर का ब्रह्म जागना चाहता है, यह ब्रह्ममुहूर्त।
और जब भीतर का ब्रह्म सोना चाहता है, तो तुम अलार्म भर कर और जबरदस्ती उठने की कोशिश कर रहे हो। ठंडा पानी छिड़क रहे हो आंखों पर। राम-राम जप रहे हो। भाग-दौड़ कर रहे हो, दंड-बैठक लगा रहे हो कि किसी तरह नींद टूट जाए। क्योंकि स्वर्ग जो जाना है! ब्रह्ममुहूर्त में जगे बिना स्वर्ग तो जा न सकोगे!
बोकोजू कहता, जब नींद खुल गई, तब ब्रह्ममुहूर्त।
तो कभी-कभी दोपहर तक सोया रहता। और कभी-कभी आधी रात तक जागा रहता। जब नींद आएगी, तब सोएगा। जब भूख लगी, तो भोजन करेगा। कभी-कभी दिन, दो दिन बीत जाते और भोजन न करता। वह उपवास न था। और कभी-कभी दिन में दो बार भोजन करता। इतना नैसर्गिक!
मगर ऐसे आदमी से कौन प्रभावित हो? _*हम तो उलटे-सीधे लोगों से प्रभावित होते हैं।