भोपाल। करीब 18 साल से अटके केन-बेतवा प्रोजेक्ट को सशर्त हरी झंडी तो मिल गई है, लेकिन वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अब भी इस योजना पर सवाल उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्र कमेटी ने भी केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को पर्यावरण के लिए बड़ा नुकसान बताया है। इन सबका कहना है कि प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा असर पन्ना टाइगर रिजर्व में टाइगर्स, वल्चर्स और घडिय़ालों के आवासों पर पड़ेगा।
विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों से बातचीत कर यह समझने की कोशिश की कि आखिर कैसे केन-बेतवा प्रोजेक्ट केन नदी और पन्ना टाइगर रिजर्व की जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) को नुकसान पहुंचा सकता है। केन नदी पर डैम बनने से पन्ना के स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा है। पन्ना का एक बड़ा हिस्सा केन नदी के निचले इलाके मतलब डैम की दूसरी तरफ है। लोगों को आशंका है कि डैम बनने के बाद अधिकांश पानी को उसी तरफ रोककर लिंक कैनाल के जरिए बुंदेलखंड के बाकी हिस्सों में भेजा जाएगा।
पहली कमेटी भंग की, दूसरी बनाकर लिया क्लियरेंस
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक सेंटर एम्पावर्ड कमेटी बनाई थी। कमेटी ने यह सुझाव दिया था कि किसी भी संरक्षित और नाजुक परिस्थितिकी तंत्र को किसी विकास परियोजना से नष्ट नहीं करना चाहिए और वो भी देश के एक महत्वपूर्ण टाइगर हैबिटैट में। ऐसे कदम लॉन्ग टर्म में न तो वन्यजीवों और न ही मानव समाज के हित में होंगे। यह भी सवाल किया था कि क्या केन में इतना सरप्लस पानी है कि उसका इस्तेमाल बुंदेलखंड के अलग-अलग हिस्सों में सिंचाई के लिए किया जा सके?
प्रोजेक्ट को क्लियरेंस देने के लिए एक एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी बनाई गई थी। परियोजना में आ रही रुकावटों को दूर करने में तेजी लाने के लिए अगस्त 2015 से जून 2016 तक पांच बैठकें हुईं। इनमें पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर कोई स्पष्ट जवाब न मिलने के कारण प्रोजेक्ट को एनवायरमेंट क्लियरेंस नहीं दिया गया। इसके बाद एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी को भंग कर दिया गया।
नई कमेटी ने दिसंबर 2016 में अपनी पहली बैठक में ही क्लियरेंस दे दिया। पुरानी कमेटी के सदस्यों का आरोप है कि इस बैठक में उन सवालों का कोई जवाब नहीं मांगा गया था, जिसके चलते इस प्रोजेक्ट को क्लियरेंस नहीं दी जा रही थी।
एक्सपर्ट की चिंता- न पानी मिलेगा और न पार्क बचेगा
पन्ना टाइगर रिजर्व को नेशनल पार्क के रूप में नोटिफाई कराने में सबसे अहम भूमिका मध्यप्रदेश के पूर्व फॉरेस्ट सेक्रेटरी एमके रणजीत सिंह झाला ने निभाई थी। 70 साल बाद चीतों को भारत लाने में भी इनकी अहम भूमिका थी। पन्ना की जिस खूबसूरती को झाला ने पहचान दिलाई थी, उसी के खत्म होने की आशंका से अब वे निराश हैं।
एनजीटी ने कहा- सारे क्लियरेंस के बाद सुनवाई करेंगे
मिनिस्ट्री ऑफ वाटर रिसोर्सेज और रिवर इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट में एक्सपर्ट कमेटी के सदस्य रहे हिमांशु ठक्कर ने इसी चिंता को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में एक याचिका दायर की। एनजीटी ने यह कहा कि इस पर तभी सुनवाई होगी, जब प्रोजेक्ट को फॉरेस्ट क्लियरेंस मिल जाएगा। हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि वाइल्डलाइफ और फॉरेस्ट क्लियरेंस के बारे में सवाल पूछने पर कमेटी सदस्यों को बाहर निकाल देने की धमकी दी जाती थी।
केन के अस्तित्व को खत्म करने का आरोप-
पर्यावरणविदों और वाटर एक्सपट्र्स का आरोप है कि केन नदी के पानी का कभी प्रॉपर असेसमेंट (मूल्यांकन) ही नहीं किया गया, जिससे यह पता चल सके कि केन के पास इतना पानी है कि वो बेतवा बेसिन को दे सके। वे यह भी कहते हैं कि ऐसे डैम बनाए तो जाते हैं, लेकिन अपना आखिरी लक्ष्य पूरा करने में चूक जाते हैं। डैम तो बनकर तैयार हो जाता है, लेकिन पर्याप्त पानी न होने की वजह से नहर में पानी नहीं छोड़ा जाता। इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता कि केन पर बने दौधन डैम के साथ भी ऐसा न हो।
भोपाल
केन-बेतवा प्रोजेक्ट के साइड इफेक्ट, डैम बना तो इंसान और जानवर सब प्यासे मर जाएंगे
- 12 Oct 2023