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शब्द पुष्प

।। काँपते हॄदय से ।।

  • 08 May 2021

 

हे दयानिधे ! रथ रोको अब, क्यों प्रलय की तैयारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।

नैना रोते रोते सूखे, अब नीर कहाँ इन आँखों में ।
परवाज पे जिनकी गर्व बड़ा, अब जान कहाँ इन पाँखों में ।।
अपने भी साथ नही अपने, जंग जीवन से यूँ जारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।

हमने खुद को यूं बसा लिया, वैज्ञानिकता की बांहों में ।
अवरोध खड़े कर दिए बड़े, हर एक दूजे की राहों में ।।
धरती माता का दोहन तो, कर लिया गगन की बारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।

जिन मुश्किल से गुजर रहे, ये खेल हमारे अपने हैं ।
जीवन अनमोल बिका जिन पर, कुछ चंद सुखों के सपने हैं ।।
हर ओर तमस दिखता है अब, भय में हर रात गुजारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।

कितने परिचित कितने अपने, कितने आखिर यूँ चले गए ।
जिन हाथों में दौलत-संबल, सब क्रूर काल से छले गए ।
हे राघव-माधव-मृत्युंजय, पिंघलो ये अर्ज हमारी है ।
ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है ।।