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चिंतन और संवाद

गुरु पद अर्थात आचरण युक्त चरण

  • 13 Jul 2022

बंदऊं गुरु पद पदुम परागा
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन
 नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन

तो पद' का अर्थ यहां कोई सत्ता मत करना प्लीज़ ... जब से गुरु पद का अर्थ गुरु की सत्ता शब्द हो गया तब अनर्थ पैदा हो गए ....
यहां मेरा 'पद'का अर्थ है वो चरण जो निरंतर आचरण युक्त हैं.... पद माने कोई सिंहासन नहीं.....
हाँ ठीक है कोई श्रद्धा से कहे कि हमारे गुरु का ये पद है... स्थान है ...चलो माना....
लेकिन पद का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट ...आचरण युक्त चरण ....जो हर कदम पर हरि रटता है... और जगत के कल्याण के लिए जीता है ...वो चरण की बात है....
और मुझे और आपको जो चरण आचरण युक्त हैं उसको ही वंदन करना चाहिए... बाकी सब को नमस्ते करो... नमस्कार करो ...ये तो मानवता है ...हमारी सभ्यता है...
लेकिन पद को प्रणाम करना... कुछ आचरण युक्त ऐसे भी चरण होते हैं जहां अपना मस्तक रखने से अपनी सोच बदल जाती है ....

मेटत कठिन कुअंक भाल के....
माने प्रारब्ध बदल जाए.....

 माने इंस्टेंट तुम्हारी लॉटरी लग जाए ?....प्रारब्ध बदलने का मेरा तो सीधा अर्थ है विचार बदल जाए ....विवेक....
मेरी समझ में प्रारब्ध का बदलना इतना ही है कि तीन वस्तु आपकी और मेरी बढ़े ...वो प्रारब्ध बदलना है....

1... जिसके चरणों में प्रणाम करने से हमारा विवेक बढ़े .... 

2...आदमी विचारवान बन जाए..... किसी बुद्ध पुरुष के चरणों में मस्तक झुकाने का अर्थ ये नहीं कि तुम विचार शून्य हो जाओ .....विचारवान हो जाओ .....

हाँ आखिरी अवस्था जैसे जगदगुरू आदि शंकराचार्य कहते हैं बस मैं अब निर्विकल्प हो चुका हूँ ... ना कोई संकल्प...ना कोई विकल्प ...ये एक अवस्था है ....ये  जब निर्विकल्प अवस्था आ जाती है अध्यात्म जगत में.... फिर वो जी नहीं पाएगा.... उसको निर्वाण ही प्राप्त हो जाएगा ....फिर जीना मुश्किल है.....
 कुछ बातों से बचना.... स्तोत्र गा लेना... अनुभव में मत उतारना....

3.... तीसरा ....जिसमें मैं बहुत आस्था रखता हूँ ....कोई स्वीकार करे कि नहीं ...हे गुरु.... तेरे चरणों में मैं इसलिए प्रणाम करूं कि मेरा विश्वास बढ़े.... मेरा भरोसा बढ़े ....कुछ भी हो जाए....

 मैं सूरदास को याद करूं....
 भरोसो दृढ इन चरनन्हि केरो ....

रामकथा | मानस आचार्य देवो भव  

( सादर-साभार Chitrakutdham Talgajarda )