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चिंताजनक : भारत में मिला कोरोना वायरस का स्वरूप पूरे विश्व के लिए खतरा

  • 13 May 2021

नई दिल्ली। भारत में मिला कोरोना वायरस का स्वरूप पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बात की चेतावनी दी है। पिछले साल सबसे पहले भारत में पहचाने गए कोरोना वायरस के बी.1.617 स्वरूप को चिंताजनक घोषित करते हुए डब्ल्यूएचओ ने कहा कि वायरस का यह बेहद घातक संस्करण अब तक दुनिया के 44 देशों तक पहुंच चुका है।
डब्ल्यूएचओ लगातार यह आकलन करता है कि स्थानांतरण और गंभीरता के लिहाज से सार्स सीओवी-2 (कोरोना वायरस) के स्वरूपों में क्या बदलाव आए हैं या इस कारण सरकारों द्वारा लागू जन स्वास्थ्य व सामाजिक मानकों में बदलाव की क्या आवश्यकता है।
वैश्विक स्वास्थ्य संस्था ने मंगलवार को साप्ताहिक महामारी विज्ञान रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया कि जीआईएसएड की तरफ से 11 मई तक कोविड वायरस के 4,500 क्रम अपलोड किए गए हैं और इनमें बी.1.617 स्वरूप की उपस्थिति 44 देशों के लोगों के सैंपल में मिली है। सबसे चिंताजनक बात है कि यह 44 देश डब्ल्यूएचओ के सभी 6 क्षेत्र में से आते हैं यानी वायरस का यह भारतीय स्वरूप विश्व के सभी कोनों तक पहुंच चुका है। बता दें कि जीआईएसएड एक वैश्विक वैज्ञानिक पहल और कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेदार नॉवल कोरोनावायरस के जीनोम डाटा तक सभी को खुली पहुंच उपलब्ध कराने वाला प्राथमिक सोर्स है।
जीआईएसएड के डाटा के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने बी.1.617 को चिंताजनक स्वरूप (वीओसी) घोषित किया है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि बी.1.617 में संक्त्रस्मण फैलने की दर अधिक है।
वैश्विक संस्था के मुताबिक, प्रारंभिक सुबूत से पता चला है कि इस स्वरूप में कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल होने वाले मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ‘बामलैनिविमैब’ की प्रभाव-क्षमता घट जाती है।
इससे इलाज के बावजूद मरने वालों की दर बढ़ जाती है। कोविड-19 का बी.1.617 स्वरूप सबसे पहले भारत में अक्तूबर 2020 में देखा गया। भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामलों और मौतों ने इस स्वरूप की भूमिका को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कब कहलाते हैं वायरस के चिंताजनक स्वरूप
वायरस के मूल रूप से कहीं अधिक खतरनाक प्रभाव वाले स्वरूप को चिंताजनक माना जाता है। कोरोना वायरस का मूल स्वरूप पहली बार 2019 के अंतिम महीनों में चीन में देखा गया था। किसी भी स्वरूप से पैदा होने वाले खतरे में संक्रमण फैलने की अधिक आशंका, ज्यादा घातकता और टीकों का प्रभाव कम होता है।
भारत में धार्मिक-राजनीतिक आयोजनों पर चिंता
डब्ल्यूएचओ ने भारत में कोविड-19 के मामले दोबारा तेजी से बढ़ने से होने वाले खतरे का आकलन कराया है। इस आकलन में हालात खराब होने के लिए कई कारकों को जिम्मेदार माना गया है, इनमें वायरस के बदलते स्वरूपों से संक्रमण फैलने, धार्मिक व राजनीतिक कार्यक्रमों, सरकार की तरफ से संक्रमण प्रसार रोकने के लिए तय नीति का पालन नहीं होना शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ ने इसे लेकर भी चिंता जताई है।
भारत से महज 0.1 फीसदी डाटा अपलोड
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में मिले पॉजिटिव सैंपलों में से महज 0.1 फीसदी के सीक्वेंस तैयार कर जीआईएसएड पर अपलोड किए गए हैं। भारत में बी.1.617.1 और बी.1.617.2 स्वरूप की पहचान अप्रैल के आखिरी दिनों में की गई और इसके बाद से इन दोनों नए स्वरूपों के महज क्त्रस्मशऱ् 21 फीसदी और 7 फीसदी सीक्वेंस सैंपल ही तैयार किए गए हैं।
डब्ल्यूएचओ ने बी.1.617 को भारतीय स्वरूप नहीं माना
कोरोना वायरस के ऩए घातक संस्करण बी.1.617 को भारतीय स्वरूप कहे जाने पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐतराज जताया है। मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि डब्ल्यूएचओ ने अब तक इस संस्करण के लिए अपने 32 पेज के दस्तावेजों में कहीं पर भी भारतीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है।
मंत्रालय ने उन मीडिया रिपोर्ट को भी खारिज किया है, जिनमें इसे भारतीय स्वरूप बताया गया है। मंत्रालय ने इन रिपोर्ट को आधारहीन और बेबुनियाद करार दिया।
credit- Amar Ujala