महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को ही मनाया जाता है। महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व शनिवार को मनेगा। यूं तो देवाधि देव महादेव की पूजा प्रत्येक माह की शिवरात्रि की रात्रि में करने का विधान है। मगर फाल्गुन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि में शक्ति पूजन का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि की रात्रि के चारों पहर में भगवान शिव के चारों रूपों का पूजन होता है। प्रथम पहर में शिव भक्त को गाय के दूध से अभिषेक कर के बिल्वपत्र अर्पण कर के ईशान स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
शिव पुराण के हवाले से ज्योतिषाचार्य एवं झारखंडेश्वर महादेव धाम मुसइतपुर के पुजारी पंडित उत्कर्ष तिवारी सचिन ने बताया कि महाशिवरात्रि के द्वितीय पहर में भगवान शिव के साधक को दही से अभिषेक कर के अधार स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। तृतीय पहर में घी से अभिषेक कर के वामदेव स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। चतुर्थ पहर में शहद से अभिषेक कर के सद्योजात स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
ये है पहर की अवधि
.प्रथम पहर-18 फरवरी की शाम 6:30 से रात 9:35 तक
.द्वितीय पहर-18 फरवरी रात्रि 9:35 बजे से रात 12:40 बजे तक
.तृतीय पहर-19 फरवरी की रात्रि 12:40 से भोर में 3:32 बजे तक
चतुर्थ पहर-19 फरवरी भोर में 3:42 से प्रात: 6:25 बजे तक
ये है पहर वार पूजा सामग्री
शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि की विशेष पूजा विधि है। प्रथम पहर में कनेर के पुष्य के साथ सभी पूजा की सामग्री से पूजन करना चाहिए। प्रथम प्रहर के पूजन में बचा सिमय में भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे पहर में तिल, जौ, कमल पुष्प, और खीर अर्पण करना चाहिए। तीसरे पहर में गेंहू, मदार पुष्प और मालपुआ अर्पण करना चाहिए। चौथे पहर में उड़द, मूंग, शंखपुष्पी और उड़द से बना नवैद्य अर्पण करना चाहिए।
साभार लाइव हिन्दुस्तान
बाबा पंडित
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- 17 Feb 2023