DGR @ एल एन उग्र
दिग्विजय सिंह एक चतुर और राजनीति के चालक खिलाड़ी हैं, वह क्या सोचते हैं, वह क्या करते हैं, यह सिर्फ वही जानते हैं i यूं भी वह वाक चातुर्य होने के कारण अखबारों की सुर्खियों में भी रहते हैं ।
हाल ही में उनके बारे में पढ़ा की, उन्होंने छोटे सिंधिया को मंत्री बनाया और बड़े सिंधिया को भी वे ही राजनीति में लाए थे । इस बात से अधिकतर लोग इत्तेफाक नहीं रख सकते हैं ,ना ही सहमत हैं । ग्वालियर घराना और महल बड़ा है ,ग्वालियर के सामने राघोगढ़ का कद छोटा है ,फिर जहां तक बड़े की राजनीति का सवाल है ,बड़े सिंधिया बड़े ही थे । उनका व्यक्तित्व राघोगढ़ महल से हटकर था उनकी रियासत बड़ी है और सियासत भी बडा थी ।उनका राजनीतिक जीवन राजनीतिक कद सब कुछ बड़ा था । राजनीतिक ताकत या प्रभाव और इमेज भी अलग थी । उनको राजनीति में स्थापित करने का काम राजमाता सिंधिया ने ही किया था । भले ही दिखावे के मतभेद रहे होंगे । जैसे दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह के एक समय अखबारों में दिखाई देते थे। पर आज सब ठीक है ,वह नूरा कुश्ती कहलाती है ,जो दोनों भाइयों में थी ,तू वहां ठीक रहे मैं यहां ठीक रहूंगा ।खैर माधव राव सिंधिया की कार्यशैली ,इसको या उनका व्यक्तित्व अलग था ।उन्हें जानने वाले लोग जानते हैं। राघोगढ़ और ग्वालियर में हैसियत का भी काफी अंतर था ।जहां तक ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति का है ,उन्हें भी दिग्गी राजा घूमा सकते हैं , परंतु कभी आमने-सामने दिखाई नहीं दिए । यह भी नूरा कुश्ती चलती रही, लोग तो दबी जुबान यह भी कहते हैं कि, छोटे सिंधिया को भाजपा में भेज कर मंत्री बनने में भी, भाई साहब का हाथ है । मतलब कांग्रेस की सरकार गिरी तो कौन है जिम्मेदार ? और लोग यह भी कहते हैं छोटे सिंधिया भाजपा में नहीं जाते तो ,राघोगढ़ महल भी सरकार गिराकर कुछ और समीकरण बन सकते थे । सरकार तो गिरना तय थी ,ग्वालियर के कारण गिरे या राघोगढ़ के कारण, दोनों सिंधिया को राजनीति में स्थापित करने का श्रेय ,यदि दिग्गी राजा को लेना है ,तो बेशक लेवे । परंतु अंतर आत्मा की आवाज से वह यह भी बता दें ,की उन्हें राघोगढ़ से निकालकर, राजगढ़ और फिर आगे स्थापित करने का मार्ग, बनाने में कभी महत्वपूर्ण किसकी थी ।
हाल ही के चुनाव के टिकट वितरण में जो सीधे उनके नाम टिकट हुए हैं, उनकी संख्या शायद 8 है, लेकिन राजनीतिक समीक्षा कारों का मत अलग है, वह जो 8 नाम आए हैं , वह सभी तो उनके पारिवारिक और रिश्तेदारों के नाम है ,हालांकि वे जिसे टिकट दिलाना चाहे उसे एन केन प्रकरण टिकट दिलाए देते हैं । भले उसके लिए दूसरों के माध्यम से सफलता प्राप्त करें । और जिसे टिकट आउट करना होता है,उसे भी वह एन केन प्रकरण मैदान में टिकने नहीं देते हैं । कंधे पर हाथ रखने का अर्थ लोग अलग-अलग लगते हैं । टिकट दिलाने में व्यक्तिगत रूप से सबसे ज्यादा सफल भी वही रहे होंगे ? कुछ लोग उनके होकर भी उनके नहीं होंगे । वक्त पढ़ने पर वे सामने आएंगे और सरकार बनाने या बिगड़ने के में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे । आठ नाम तो दिखाने के हैं ,ऐसे कई रिश्तेदार खासमखास हैं, जिनको टिकट परिवार के सदस्य या समर्पण के आधार पर ही दिलाए होंगे और यह भी की भले 8 टिकट की बात हो रही हो, लेकिन प्रदेश की ऐसे कई आठ के जोड़ में राजा के टिकट होंगे ,जो सरकार बनाने और गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका, पर्दे के सामने और और परदे के पीछे से निभाई जावेगी ।
शेष फिर...