इंदौर में एक साथ नौ सीटें जाने से कांग्रेस सकते में
भोपाल/जयपुर/रायपुर। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में तीन राज्यों में उम्मीद से अधिक सीटें हासिल कर लिया। कांग्रेस को केवल एक राज्या तेलंगाना से संतुष्ट होना पड़ा। उम्मीद की जा रही थी कि इस बार मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांटे की टक्कर होगी, लेकिन मप्र में तो ऐसा कहीं पर दिखाई नहीं दिया और भाजपा ने सीधी-सीधी जीत दर्ज की, तो वहीं छग में जरूर कुछ मुकाबला हुआ। वहीं राजस्थान में परंपरा कायम रही और जनादेश भाजपा के पक्ष में गया। तीन राज्यों में भाजपा की जीत अनायास नहीं है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच राज्यों के चुनाव में भाजपा के मजबूत संगठन, बेहतर चुनावी प्रबंधन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा काम कर गया। कांग्रेस नेताओं को सबसे बड़ा ताज्जुब यह भी हुआ है वह इंदौर जिले में सभी नौ सीटें गंवा सकते हैं। इस हार के बाद सभी सकते में हैं, क्योंकि कुछ सीटों पर कांग्रेसी जीत तय मानकर ही चल रहे थे।
यह था बड़ा दांव
दरअसल मध्यप्रदेश में कमलनाथ, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और राजस्थान में अशोक गहलोत ही एक तरह से कांग्रेस नेतृत्व बनकर सामने थे। ऐसा लगा नहीं कि राष्ट्रीय स्तर की एक पार्टी चुनाव में उतरी है। इसके उलट भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाकर तीनों राज्यों में पेश किया। यह बड़ा दांव था, जो चल गया।
यह फायदे का सौदा नहीं
भाजपा ने मध्यप्रदेश में प्रतिष्ठान विरोधी कारक को मात दी। वहीं कांग्रेस से उसके प्रमुख राज्य राजस्थान के साथ ही छत्तीसगढ़ को भी छीन लिया। कांग्रेस ने भले ही भाजपा के दक्षिण में प्रवेश का एक और प्रयास तेलंगाना में विफल कर दिया। लेकिन इसके साथ राजस्थान व छत्तीसगढ़ गंवाने का सौदा फायदे का तो नहीं लगता।
कांग्रेस की संभावनाओं पर असर
विधानसभा चुनावों के इन नतीजों का असर 2024 के चुनाव में कांग्रेस की संभावनाओं पर निश्चित ही पड़ेगा। इन चुनावों में कांग्रेस तेलंगाना में एक मजबूत क्षेत्रीय पार्टी, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को हराने में तो सफल रही, लेकिन कुल मिलाकर भाजपा के आगे कमजोर साबित हुई। मध्यप्रदेश में कांग्रेस में दिग्गज नेताओं की गुटबाजी में भाजपा को मौका हाथ लग गया।
राजस्थान कांग्रेस में खींचतान की खाई नहीं पाट सके
राजस्थान में जमकर विज्ञापनबाजी, योजनाओं और तोहफों की झड़ी लगाने के बावजूद मतदाताओं का विश्वास अशोक गहलोत नहीं जीत पाए। महज विज्ञापनबाजी से चुनाव नहीं जीते जा सकते। गहलोत वहां सचिन पायलट से खींचतान की खाई नहीं पाट सके। चुनावी मैदान में डटे कार्यकर्ताओं के साथ ही मतदाताओं में इसका जो भी संदेश गया, वह नतीजों में साफ दिख गया।
चेहरा नहीं, लेकिन शिल्पकार
राजस्थान के विपरीत मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान लाड़ली बहना जैसी योजनाओं को लेकर मतदाताओं में विश्वास पैदा कर गए। पार्टी नेतृत्व ने उन्हें अपना चेहरा नहीं बनाया, लेकिन वे जीत के शिल्पकार साबित हुए। जीत के बाद चौहान ने श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया। मत फीसद के लिहाज से कांग्रेस को खास नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन ओबीसी, आदिवासी व कुछ अन्य मत आखिरी दौर में भाजपा की ओर मुड़ गए और सीटों के स्तर पर गणित बदल गया।
नहीं चला कांग्रेस का दांव
कांग्रेस ने इन चुनावों से पहले जाति जनगणना का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। मध्य प्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि ओबीसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राज्य छत्तीसगढ़ तक में यह दांव नहीं चल सका। राहुल गांधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा दिया और कांग्रेस पार्टी ने जाति सर्वेक्षण करवाने की गारंटी दी। उत्तर भारत में जाति कड़वी सच्चाई है। राजनीति में जाति की जकड़ तो बहुत मजबूत है। लेकिन चुनाव नतीजों ने बता दिया कि जनता जाति नहीं देखती है जब मोदी का चेहरा नजरों के सामने हो।
अब कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती
इन चुनावों के दम पर कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में भी अपना सिक्का जमाना चाहती थी। वह साबित करना चाहती थी कि अगर भाजपा का मुकाबला करना है तो वह कांग्रेस ही कर सकती है और कांग्रेस की मदद से ही भाजपा को 2024 में हराया जा सकता है। अब कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी, विपक्षी इंडिया गठबंधन में उन दलों को सहेजना जिनसे उसने इन चुनावों में दूरी बनाई थी।
जयपुर
पूरी प्लानिंग और वरिष्ठ नेताओं का प्रचंड जीत में रहा योगदान ... भाजपा ने अनायास नहीं लहराया परचम ...!
- 04 Dec 2023