मेरी बात आपको स्वीकारने जैसी लगे तो ....आज की युवानी को मुझे इतना ही कहना है कि तुम बहुत पूजा पाठ नहीं कर पाओगे....... व्यासपीठ अपेक्षा भी नहीं रखती .....मौज में रहो.....तुम बहुत जप तप नहीं कर पाओगे .....
सुबह को नहाते वक्त अगर एक बार रूद्राष्टक का पाठ करो.... बस बात पूरी हो जाए .....
और दोपहर को "जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रणतपाल भगवंता" स्तुति के जितने बंध आए उतने दोपहर को समय मिले तब पाठ करो ....गाओ .... तो तुम्हारे जीवन में राम जन्म......
शाम हो ...और समय मिले ...तो भुसुंडि रामायण का पाठ करो ....
और लगे कि अब सो जाना है ....तब "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर".... ऐसा करते-करते सो जाना .....
और किसी साधन की कोई जरूरत नहीं साहब....
एक रुद्राष्टक के पाठ में तमाम वेदांत आते हैं ....जिम्मेदारी पूर्वक बोल रहा हूँ .... तमाम वेदांत .....totallyवेदांत .....
एक ही रुद्राष्टक में.... परमात्मा के परिचय के विभिन्न संकेत एक ही रुद्राष्टक में...... जगत में जितना तत्वज्ञान होगा एक रुद्राष्टक में समाहित है .....एक परम साधु परमारथ विंदक.... एक परम साधु ब्राह्मण महाकाल के मंदिर में बैठकर इस रुद्राष्टक का उद्घोष करता है ......और एक ही रुद्राष्टक में जगत की तमाम शरणागति है........
।। रामकथा ।। मानस मंदिर ।।