शीश उठाकर,खड़ा है गिरी,
मुझ जैसे ऊँचे बन जाओ।
लहरों में लहराता रत्नाकर,
गहरे तल से मोती लाओ।।
सोचो क्या कह रहे हैं हम,
उठती गिरती तरल तरंग।
भर लो तुम अपने ह्रदय में,
हँसती खेलती मृदुल उमंग।।
धरती कहती धीरज धर लो,
चाहे बड़ा हो सिर का भार।
अम्बर कहता विशाल बनों,
खुद में समेटो सारा संसार।।
वृक्ष कहते हैं परोपकारी बनो,
कोई कितने भी पत्थर मारे।
ठंडी छाँव में राहत सुख देते,
कहते मीठे फल तोड़ लो सारे।।
- जीवनलता शर्मा
बड़वानी (म.प्र.)