नई दिल्ली। भारत में कोरोना के साथ ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) भी बेकाबू हो गया है। कोई कमजोर इम्युनिटी तो कोई स्टेरॉयड को जिम्मेदार बता रहा है। वहीं, चिकित्सकों का कहना है कि इलाज के लिए दुनियाभर में सभी जगह स्टेरॉयड का इस्तेमाल भी हुआ, लेकिन भारत में जिस तरह से ब्लैक फंगस फैला वैसा किसी देश में नहीं देखा गया। इसके कई कारण बताए जा रहे हैं। ऐसे ही कारणों पर विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट....।
खास तथ्य....
99.5 फीसदी होती है मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की शुद्धता
0.5 फीसदी भी शुद्धता में कमी तो जान को खतरा संभव
100 में से करीब 15 मरीजों को मधुमेह का पता ही नहीं
6 से 10 लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट लेता है स्वस्थ व्यक्ति
60 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन कोरोना रोगियों को दी जा रही
विशेषज्ञ अलग-अलग कारण बता रहे पर.... पुष्टि कैसे हो
कहीं एचएफएनसी तो नहीं फंगस की वजह?
केजीएमयू, लखनऊ के पल्मोनरी क्रिटिकल केयर के हेड डॉ. वेद प्रकाश बताते हैं कि एक स्वस्थ्य व्यक्ति छह से दस लीटर ऑक्सीजन प्रति मिनट लेता है। कोरोना मरीजों को हाई फ्लो नेजल कैनुला (एचएफएनसी) से प्रति मिनट 60 लीटर तक ऑक्सीजन दी जा रही है। इससे नाक की पैरानेजल साइनस और म्यूकोसा सूख रही है। घाव हो रहा है। इसी पर फंगस जम रहा है जो महामारी के बीच नई मुसीबत का कारण हो।
स्टेरॉयड की गलत डोजिंग भी वजह तो नहीं...
डॉ. वेद बताते हैं कि कोरोना मरीजों को स्टेरॉयड की टेपरिंग डोज नहीं देने से भी फंगस हावी हो सकता है। वह बताते हैं कि स्टेरॉयड पांच से दस दिन के लिए हाई डोज से लोज डोज के तौर पर देना चाहिए। होम आइसोलेशन में मरीजों को लो डोज की स्टेरॉयड दी जा रही है। हालत खराब होने पर अस्पताल में भर्ती के दौरान दोबारा हाई डोज दी जा रही है। इस कारण शरीर की इम्युनिटी कमजोर हो रही है और फंगस हमला कर रहा है।
रक्त संचार में दिक्कत से ऐसी तकलीफ
मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल के ईएनटी विभाग के हेड डॉ. संजीव बधवार बताते हैं कि भारत में ब्लैक फंगस के मामले दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अधिक है लेकिन आए सभी जगह हैं। वे बताते हैं कि विदेशों कोरोना से मरे लोगों के शवों के पोस्टमार्टम में पता चला है कि संक्रमण से रक्त संचार प्रभावित होता है। इससे उत्तकों के खराब होने से नेक्रसेसिस यानी उस जगह कालापन हो जाता है। शवों में फंगस देखा गया है। कोरोना संक्त्रस्मण के कारण ब्लड क्लॉट से शरीर के उत्तक खराब होते हैं जिसपर फंगस हमला कर रहा है। संभव है कि इसी कारण मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
संदेह : क्या दवा के रूप में जिंक फंगस के पनपने की वजह
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि बैक्टीरिया शरीर से आयरन (लोहा) खाता है। फंगस को भी जीवित रहने के लिए जिंक समेत अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जरूरत होती है। इसी लिए शरीर जिंक समेत अन्य पोषक तत्त्वों को छुपाकर रखता है ताकि वो आसानी से फंगस को न मिले।
अब दवाई के रूप में जिंक...
डॉ. मिश्रा का कहना है कि कोरोना के इलाज में मरीजों को चार से पांच दिन या इससे अधिक समय तक इम्युनिटी बढ़ाने के लिए जिंक की गोलियां दी जा रही हैं। संभावना है कि ये जिंक ब्लैक फंगस को शरीर के भीतर पनपने का एक कारण हो सकता है। जिंक सिर्फ ब्लैक ही नहीं दूसरे तरह के पैरासाइट्स के पनपने की भी वजह बन सकता है। ऐसे में दवाओं के इस्तेमाल को लेकर सावधानी और सही सलाह जरूरी है।
मेडिकल ऑक्सीजन की गुणवत्ता पर संदेह...
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के हेड डॉ. परवेज खान का कहना है कि महामारी की पहली लहर में ब्लैक फंगस न के बराबर था। मेडिकल ऑक्सीजन का संकट भी नहीं था। दूसरी लहर में मेडिकल ऑक्सीजन का संकट गहराया तो औद्योगिक ईकाइयों में इस्तेताल होने वाला ऑक्सीजन भी इस्तेमाल हुआ है। मेडिकल ऑक्सीजन की शुद्धता 99.5 फीसदी तक होती है। अस्पतालों में मांग बढ़ने के साथ आई ऑक्सीजन की शुद्धता क्या थी उस पर भी फंगस के लिए संदेह कर सकते हैं।
ब्लैक फंगस पर संदेह इससे भी गहराया
भारत मधुमेह की राजधानी है, यहां 30 से 40 फीसदी ऐसे लोग जिन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें मधुमेह है।
ऐसे लोगों को स्टेरॉयड की डोज दी जा रही है, शुगर लेवल बढ़ जा रहा है जो फंगस का एक कारण हो सकता है।
वार्ड, एचडीयू, आईसीयू, वेंटिलेटर यूनिट की नियमित साफ सफाई जरूरी है। गंदगी से फंगस को बल मिल सकता है।
ऑक्सीजन मास्क का गलत इस्तेमाल यानी एक मरीज का ऑक्सीजन दूसरे मरीज को लगाना भी एक बड़ा कारण।
आरटी-पीसीआर सैंपल लेने के लिए इस्तेमाल हो रही कॉटन स्टिक की हाईजीन पर भी संदेह किया जा सकता है।
क्यों अस्पतालों में तेजी से बढ़ रहा फंगस
लखनऊ के लोहिया संस्थान के फिजिशियन डॉ. संदीप चौधरी बताते हैं कि अस्पताल में भर्ती मरीजों में फंगस के मामले अधिक दिख रहे हैं। ऑक्सीजन डिलीवरी सिस्टम में गंदगी, उक्त ऑक्सीजन में पर्याप्त मात्रा में नमी का न होना, ऑक्सीजन पाइपलाइन में गंदगी भी इसका एक कारण हो सकता है। इसके अलावा वेंटिलेटर और आईसीयू मरीजों को लगी नली (ट्यूब) की समय पर सफाई न होने या बदलने से भी फंगस का खतरा संभव है।
फंगस को खत्म करना मुश्किल हो जाएगा
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना भविष्य में खत्म हो सकता है लेकिन फंगस ने अपना दायरा बढ़ा लिया तो इसे खत्म करना मुश्किल हो जाएग। फंगस का अंत तभी संभव है जब इसके पनपने का सही कारण पता चले और समय रहते उसका निदान हो।
नाक की क्रीब्रीफॉर्म प्लेट तो नहीं हो रही चोटिल
डॉ. विजयनाथ मिश्रा बताते हैं कि न्यूरो के मरीजों को छह से आठ महीने तक स्टेरॉयड चलाई है। उनमें ऐसा कोई संक्रमण नहीं दिखा है। अचानक केस बढ़ने से आंशका की फेहरिस्त भी बढ़ रही है। वह बताते हैं कि नाक में क्रीब्रीफॉर्म प्लेट (नाक की छत) होती है। आरटी-पीसीआर का सैंपल लेते वक्त अगर गलती से चोटिल हो जाए तो फंगस का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि फंगस चोटिल स्थानों पर आसानी से अपनी जगह बनाता है। सवाल ये है कि फंगस के जो भी मामले अब तक सामने आए हैं उनमें क्या क्रीब्रीफॉर्म प्लेट चोटिल हुई है, इसका पता लगाना जरूरी है। वे बताते हैं कि हेड इंजरी होने पर सबसे पहले यही हड्डी टूटती है।
गंदे पानी से तो नहीं कर रहें जलनीति क्रिया
एम्स ऋषिकेश के ईएनटी विभाग के प्रो. एसपी अग्रवाल बताते हैं कि फंगस से बचाव के लिए जल नीति क्रिया कारगर है। इससे नाक को साफ रखा जा सकता है। डर और भय के बीच लोग जलनीति क्रिया तो कर रहे हैं लेकिन ध्यान देने की बात है कि ये सामान्य या गंदे पानी से तो नहीं कर रहे हैं। जलनीति क्रिया के लिए पानी को अच्छे से उबाल लें और ठंडा करने के बाद ही इस प्रक्रिया को करें।
सुझाव.... ब्लैक फंगस को भयावह महामारी होने से कैसे रोकें
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लैक फंगस महामारी को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बॉडी का गठन हो, उसके निर्देशों के मुताबिक कोरोना मरीजों के लिए दवा दी जाए। मनमाने ढंग से दवा का इस्तेमाल बंद हो। मेडिकल ऑक्सीजन की गुणवत्ता इस्तेमाल से पहले जांची जाए। ब्लैक फंगस की तह तक जाने के लिए सभी अनुमानित कारणों के आधार पर एक विशेष पैनल नामित किया जाए जो शोध के जरिए इसकी तह तक पहुंचे।
पैन्क्रियाज को प्रभावित तो नहीं कर रहा वायरस
महाराष्ट्र के डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल रिसर्च एंड एजुकेशन के निदेशक डॉ. तात्यराव लहाने का कहना है कि कोरोना के इलाज को ब्लैक फंगस के लिए जिम्मेदार ठहराना गलत है। संभव है कि कोविड-19 म्यूटेंट पैन्क्रियाज में मौजूद बीटा सेल्स को प्रभावित कर रहा है। इस कारण ब्लड शुगर लेवल में बढ़ोतरी हो रही है और कम इम्युनिटी के कारण ब्लैक फंगस शरीर पर हमला बोल अपना दायरा बढ़ा रहा है।
credit- Amar Ujala
देश / विदेश
ब्लैक फंगस भारत में ही महामारी के साथ क्यों फैल रहा?
- 26 May 2021