उज्जैन। विश्व में एक मात्र नागचंद्रेश्वर की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन कराने के लिए महाकाल मंदिर में तेजी से कार्य चल रहा है। इस दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी पर ही हो सकते है। नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन अब दूर नही है। 2 अगस्त को नागपंचमी के पहले ही दर्शन के लिए जाने वाले सेतु का निर्माण पूर्ण हो गया है। नए ब्रिज से सुगमता से दर्शन करेंगे श्रद्धालु।
विश्व प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर तीसरी मंजिल पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन 1 अगस्त की रात 12 बजे बाद से आम जनता कर सकेगी। नागपंचमी पर भक्तों को भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन कराने के लिए पहली बार फुट ओवर ब्रिज का निर्माण श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत विनित गिरि महाराज के अनुयायी द्वारा किया गया है। मंदिर के विश्राम धाम से नागचंद्रेश्वर मंदिर तक 91 फीट लंबा ब्रिज पांच पिलर पर बनकर तैयार हो चूका है। ब्रिज निर्माण के पहले मंदिर समिति द्वारा अस्थाई लोहे की सीढिय़ों का उपयोग करती थी। यह सीढ़ी मुख्य मंदिर परिसर से सटी होती थी। लोहे की सीढिय़ों से मंदिर के स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंच रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने मंदिर स्ट्रक्चर की मजबूती को बनाए रखने तथा भक्तों को सुविधा पूर्वक दर्शन कराने के लिए फुट ओवर ब्रिज का निर्माण कराने का सुझाव एएसआई ने दिया था। इसके बाद समिति ने फोल्डिंग फुट ओवर ब्रिज निर्माण का निर्णय लिया है।
दर्शनार्थियों के लिए मजबूत रहेगा ब्रिज
मंदिर परिसर स्थित श्री विट्ठल पंढरीनाथ मंदिर से श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर की छत तक सेतु 27 मीटर 422 एम.एम. (लगभग 91 फीट) लंबा व 10 फीट चौडा होगा, जिसमें 5 फीट आने व 5 फीट जाने का मार्ग होगा। सेतु के लिए 5 मजबूत खंबे तैयार किए है। जिसका कोई भार प्राचीन मंदिर पर नहीं होगा। सेतु को लगाने के लिए मंदिर परिसर में 5 खंबे के लिए बनाये जाने वाले फाउण्डेशन की गहराई ढाई फीट रखी गई है।
अधिकारियों ने देखा ब्रिज का कार्य
महाकाल मंदिर के शिखर से जोड़कर बन रहे ब्रिज का कार्य देखने के लिए प्रतिदिन मंदिर के अधिकारी पहुंच रहे है। गुरूवार को अखाड़ा महंत विनित गिरी महाराज, सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल ने ब्रिज पर चल रहे कार्य को देख कर संतोष जताया। वहीं नागचंद्रेश्वर मंदिर में भी रंगाई-पुताई और सफाई का काम शुरू हो गया है। वैसे तो अखाड़ा की ओर से इस मंदिर में पूजन कार्य किया जाता है, लेकिन आम दर्शनार्थियों के लिए वर्ष में एक बार ही खोला जाता है।