केवल आज ही नहीं, हर दिन, हर पल हो नारी शक्ति का सम्मान
इंदौर। अपनी हिम्मत और जज्बे से नारी शक्ति ने हर मुकाम पाया है। फिर चाहे मां अहिल्या की नगरी में पहली महिला बस चालक हो या फिर पुलिस विभाग में भर्ती होकर देशभक्ति जनसेवा करने वाली महिला अधिकारी हो या फिर देश की रक्षा में तैनात महिला पुलिस अधिकारी। हर किसी ने कड़ी मेहनत से सफलता पाई है और अपने परिवार व देश का नाम रोशन किया है। महिला दिवस पर डीजीआर (डिटेक्टिव गु्रप रिपोर्ट)परिवार सभी मातृशक्तियों को नमन करता है और महिला दिवस की सभी को शुभकामनाएं देता है। केवल आज ही के दिन नहीं, बल्कि हर दिन मातृशक्ति पूजी जाती है और उनका सम्मान हर दिन, हर पल होना चाहिए।
सीएम शिवराज सिंह चौहान की सुरक्षा में आज महिला पुलिसकर्मी तैनात
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सुरक्षा में महिला पुलिसकर्मी तैनात हैं। भोपाल में मुख्यमंत्री के सभी कार्यक्रमों की कमान महिला अधिकारी संभालेंगी। कारकेट चालक और जनसंपर्क अधिकारी तैनात हैं। इसके अलावा अन्य अधिकारी भी महिला ही हैं। सीएम शिवराज ने भोपाल में महिलाओं के साथ पौधारोपरण किया। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर भोपाल में निर्भया बाइक्स को फ्लैग आफ किया। इसके पहले उन्होंने ट्वीट कर लिखा, समाज और राष्ट्र के सशक्तिकरण के लिए नारी का सम्मान, उत्कर्ष एवं उत्थान आवश्यक है। नारी शक्ति स्वरूपा हैं, इन्हें उचित अवसर और यथोचित सम्मान दीजिये। इनकी उन्नति, खुशहाली और सशक्तिकरण में ही मानवता का कल्याण निहित है। महिला दिवस की माताओं, बहनों और बेटियों को शुभकामनाएं। भारत में प्राचीन काल में अपाला, घोषा, लोपामुद्रा, गार्गी, जैसी विदुषियों ने वर्चस्व कायम किया तो आधुनिक काल में रानी लक्ष्मी बाई, लोकमाता अहिल्याबाई, झलकारी बाई, सरोजिनी नायडू, कल्पना चावला, मेरी काम, रेखा पंदराम जैसी बहन-बेटियां देश को गौरवान्वित कर रही हैं। मध्य प्रदेश में पोषण आहार संयंत्रों को संचालन महिला स्व-सहायता समूहों के परिसंघों द्वारा किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देवास में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में समूहों को संयंत्र की चाबी सौंपेंगे। इसके साथ ही तीन सौ करोड़ रुपये के बैंक ऋण का वितरण भी करेंगे। कार्यक्रम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल होंगे। कार्यक्रम में प्रदेश के संकुल स्तरीय संघों को उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रशंसा पत्र भी दिए जाएंगे। प्रदेश में महिला स्व-सहायता समूहों से 40 लाख महिलाएं जुड़ी हैं और विभिन्न् व्यवसायिक गतिविधियों का संचालन कर रही हैं।
झाड़ू बनाकर महिलाओं ने दूर की बेरोजगारी, अब पुरुषों को भी देंगी रोजगार
मुरैना। करोना महामारी के दौर में लाखों लोगों का रोजगार छिन गया। लोग काम-धंधे के लिए मोहताज हो गए थे, उस विकट हालात में मुरैना जिले के अंबाह के गोठ गांव की अल्पना तोमर ने सफलता की नई कहानी रच दी। झाडू बनाने का काम करके अल्पना ने खुद के अलावा गांव की महिलाओं को रोजगार दिया। यह महिलाएं अब गांव के बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार देंगी। अल्पना तोमर के स्वजन मजदूरी व खेती करते हैं। कोरोना काल में रोजगार नहीं मिला तो उन्होंने महिलाओं का समूह बनाकर झाडू बनाने का काम शुरू किया। कच्चे माल के लिए महिलाओं के पास रुपये नहीं थे, तब अजीविका मिशन के जरिए बैंक से एक लाख रुपये का लोन लिया। इस राशि से ओडिशा से फूल झाड़ू और नारियल के झाडू बनाने की सामग्री मंगवाई। घर बैठकर मजदूरी करने का काम कई महिलाओं को रास आया और धीरे-धीरे करके गोठ गांव की 45 महिलाएं झाडू बनाने का काम करने लगीं। एक झाडू बनाने की मजदूरी चार रुपये तय की गई। एक दिन में एक महिला 40 से ज्यादा झाडू आसानी से बना लेती हैं। यानी महीने में साढ़े चार से पांच हजार रुपये की मजदूरी घर बैठे मिलने लगी। इसे देखकर पड़ोसी गांव बरेह की भी 15 महिलाओं ने झाडू बनाने का काम शुरू कर दिया है। ये महिलाएं हर महीने तीन से साढ़े तीन हजार झाडू बनाकर बाजार में सप्लाई कर रही हैं। रोशनी तोमर बताती हैं, कि इस काम में कोई मशीन नहीं लगती, बिजली पर कोई निर्भरता नहीं है। जब भी घर के काम-काज से फुर्सत हो जाते हैं तो झाडू बनाने का काम करते हैं। समूह से जुड़ी अनीता तोमर बताती हैं, कि इस काम में नुकसान की संभावनाएं कम हैं। क्योंकि झाडू बनाने के बाद स्टाक को कई दिन या महीनों तक रख सकते हैं।
बाजार से 50 फीसद सस्ते और मजबूत हैं हमारे झाड़ू
अल्पना तोमर बताती हैं, कि झाडू की मांग बाजार में हमेशा रहती है। हमारे झाडू ब्रांडेड कंपनियों से मजबूत और 50 फीसद तक सस्ते हैं। ब्रांडेड कंपनी का जो फूल झाडू बाजार 90 से 100 रुपये का आता है, वही झाडू हम 40 रुपये में तैयार कर रहे हैं, जिन्हें दुकानदार, ग्राहकों को 45 से 50 रुपये में बेच रहे हैं। अल्पना के अनुसार गांव की महिलाओं के बाद अब वह एक युवा व बुजुर्ग पुरुषों को भी झाडू बनाने का रोजगार देंगी, जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिल रही और घरों पर बेरोजगार बैठे हैं। इसके अलावा युवाओं के जरिए झाड़ुओं की सप्लाई बाजारों में करवाएंगी, जो गांव की महिलाओं के लिए मुश्किल काम है।
प्रभावित होकर अन्य महिलाएं भी इस काम से जुड़ रही हैं
गोठ गांव के माया आजीविका स्व सहायता समूह की सदस्य अल्पना तोमर ने झाडू बनाकर गांवों की कई महिलाओं को रोजगार दिया है। अल्पना और उनके समूह की सभी महिलाएं पूरी मेहनत से इस काम को आगे बढ़ा रही हैं और इनसे प्रभावित होकर अन्य महिलाएं भी इस काम से जुड़ रही हैं।
बक्की कार्तिकेयन, कलेक्टर, मुरैना
दोनों किडनियां फेल; 7 दिन में कोरोना को हराया, ढाई साल से डायलिसिस के दम पर थामे है सांसों की डोर
सागर कहते हैं कि आपमें जिंदगी जीने का जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी मुसीबतों को आसानी से हराया जा सकता है। ये कहानी ऐसी ही महिला के जज्बे की है। सागर की पुष्पा साहू। उम्र 36 साल। दोनों किडनियां फेल हो चुकी हैं। पिछले पांच सालों से इलाज चल रहा है। ढाई सालों से डायलिसिस के दम पर सांसों की डोर थामें हैं। कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमित हुई तो 7 दिनों में कोरोना को मात देकर घर लौट आई। उसने हिम्मत नहीं हारी। पढि़ए महिला की जिद और जज्बे की कहानी... सभी की लाइफ में मुसीबतें आती रहती हैं। इसका मतलब ये नहीं कि हम मुसीबतों से घबराकर जिंदगी जीना ही छोड़ दें। अपने बच्चों और परिवार के लिए आखिरी सांस तक जिंदगी को जज्बे के साथ जीना चाहिए। कुछ भी हो जाए कभी हिम्मत नहीं हारना चाहिए। इस जुनून और जज्बे के साथ मैं भी जी रही हूं। जब मुझे बीमारी का पता चला तो मैं घबराई। टेंशन भी हुआ था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन मैंने बीमारी को ही अपनाना लिया। जीना है तो परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा। इसलिए कोई भी मुसीबत आए तो उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए।
पत्नी का सप्ताह में दो दिन डायलिसिस
पति दिनेश साहू ने बताया कि 2016 में पत्नी की तबीयत खराब हुई थी। हाइपरटेंशन से परेशान रहती थी। अस्पताल ले जाकर इलाज कराया। जांचें कराई तो पता चला कि उसकी दोनों किड़नियां 60 प्रतिशत खराब हो गई हैं। इलाज शुरू कराया। लेकिन कुछ समय बाद किड़नियां पूरी तरह खराब हो गई। डॉक्टर्स ने कहा डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट ही इलाज है। जनवरी 2020 से उसका डायलिसिस शुरू कराया। सप्ताह में दो दिन डायलिसिस होता है। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर में मई 2021 में वह कोरोना संक्रमित हुई। तबीयत बिगडऩे पर तुरंत भोपाल ले गए और इलाज कराया। 7 दिन वे कोरोना को मात देकर घर लौट आईं। हमारे दो बेटे हैं। 14 वर्षीय सक्षम साहू और 9 वर्षीय सार्थक साहू। दोनों पढ़ाई कर रहे हैं। ज्वाइंट फैमिली होने से बच्चों की देखभाल व अन्य काम में मदद मिल जाती है।
डोनर की तलाश, आखिरी सांस तक नहीं मानेंगे हार
पति दिनेश ने बताया कि मुसीबतों से हमने हार नहीं मानी। हम आखिरी सांस तक हार नहीं मानेंगे। हम किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की तलाश कर रहे हैं। लेकिन अब तक मिला नहीं है। अब मैंने ही अपनी किडनी पत्नी को देने का निर्णय लिया है। इलाज में अब तक शासन से कोई मदद नहीं मिली है। आयुष्मान कार्ड भी नहीं बना है।
DGR विशेष
महिला दिवस पर विशेष .... अपनी हिम्मत और जज्बे से पाया हर मुकाम
- 08 Mar 2022