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इंदौर

लगा रखा है प्रतिबंध फिर भी चोरी-छिपे बिक रहे ... चीनी पटाखे ...!, नहीं हो रही कार्रवाई

  • 22 Oct 2022

इंदौर। प्रतिबंध के बावजूद शहर में जगह-जगह पर चीनी पटाखों की बिक्री हो रही है। हालांकि प्रशासन और पुलिस की सख्ती का असर यह है कि अनेक स्थानों पर चोरी छिपे इन पटाखों की बिक्री की जा रही है, तो वहीं कहीं-कहीं पर पर खुलेआम इन पटाखों को बेचा जा रहा है। इस वर्ष अब तक कहीं पर भी जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा इन पटाखों के विक्रय को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
वर्ष 2018 में सरकार ने चाइनीज पटाखों पर बैन लगा दिया। इस मामले में जारी नोटिस में साफ लिखा है कि चीन से पटाखों का आयात पूरी तरह से मना है। अगर कोई भी चाइनीज पटाखे रखता है, बेचता या किसी भी तरह से इससे डील करता है तो उसे 3 साल की कैद और 5000 रुपयों का जुर्माना हो सकता है।
किसलिए लगा है बैन
चीन से आए पटाखे कम कीमतके तो होते ही हैं, साथ ही इनकी आवाज भी देसी पटाखों से जोरदार होती है। इसमें कई तरह के प्रयोग भी होते रहते हैं। यही वजह है कि देश में चीन से आए पटाखों का बाजार तेजी से फैला। हालांकि इसका दूसरा पक्ष काफी वक्त तक नजरअंदाज किया गया। ये देश के विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 2008 का खुलेआम उल्लंघन करता है। चीनी पटाखों में खतरनाक केमिकल्स जैसे लेड, कॉपर, ऑक्साइड और लीथियमजैसे खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है। ये रसायन पर्यावरण के साथ-साथ इंसानी सेहत के लिए भी खराब हैं, इसी के मद्देनजर इन रसायनों के पटाखे या आतिशबाजी में एक स्तर से ज्यादा इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया गया।
जनता की भागीदारी की अपील
चाइनीज पटाखों में इसकी खुलकर अनदेखी की जाती है। यही वजहें हैं, जिनके चलते भारत में चाइना के पटाखा मार्केट को खत्म करने की पहल की गई। नोटिस में आम जनता और दुकानदारों से चाइनीज पटाखों न लेने-देने की अपील की गई। साथ ही ये सलाह भी दी गई कि पटाखों की लेबलिंग डीटेल देखकर ही उनकी खरीददारी करें।
चोरी-छिपे हो रहा चाइनीज पटाखों का व्यापार
वैसे सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद दिवाली पर चाइनीज पटाखों का आयात हो रहा है। चोरी-छिपे ये पटाखे बुलवाए जाकर गोदामों में भरकर रखा जा रहा है। यहीं से दुकानदार इन्हें उठा और अपनी दुकानों में सजा रहे हैं। इनमें चकरी, अनार, रॉकेट, रोमन कैंडल और तरह-तरह नाम वाले बम जैसे पटाखे हैं। हालांकि पुलिस और जिला प्रशासन इस पर कड़ी नजर रखे हुए हैं
क्यों रहती है चाइनीज पटाखों की कम कीमत
चीन से आयात होने के बावजूद पटाखों की कीमत कम क्यों है, ये सवाल भी उठा। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने इस पर बाकायदा रिसर्च की और पाया कि ड्रैगन से आए पटाखों में पोटैशियम क्लोरेट और पेराक्लोरेट का इस्तेमाल होता है, ये दोनों ही रसायन सस्ते हैं लेकिन पर्यावरण और सेहत के लिए काफी खतरनाक हैं।  इन्हीं सस्ते केमिकल्स के कारण वहां से आए पटाखे सस्ते होते हैं। वहीं भारत में निर्मित पटाखों में पोटैशियम नाइट्रेट और एल्युमिनियम पाउडर रहता है, जो अपेक्षाकृत महंगा लेकिन सुरक्षित है। चीन के सस्ते पटाखों की वजह से दिल्ली में खासकर प्रदूषण का स्तर मानकों से काफी ऊपर हो गया।  तभी सबसे पहले साल 2004 में इनका विरोध शुरू हुआ जो अब जाकर रंग ला रहा है।
ग्रीन पटाखों को बढ़ावा देने पर जोर
चाइनीज पटाखों की जोड़ पर सरकार ने देसी ग्रीन पटाखों को बढ़ावा देने की पहल की है। केंद्र सरकार द्वारा जारी ग्रीन क्रेकर में कई तरह के प्रचलित पटाखे शामिल हैं, जैसे कि अनार, पेंसिल, चकरी, फुलझड़ी और सुतली बम।  इन्हें इकोफ्रेंडली पटाखे भी कहा जा रहा है, क्योंकि ये पर्यावरण के लिए अपेक्षाकृत काफी कम नुकसानदेह हैं। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद या काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने इसका फॉर्मूला तैयार किया है। जिसपर करीब 230 सहमति-पत्रों और 165 नॉन डिसक्लोजर एग्रीमेंट्स हुए हैं, जो पटाखा कंपनियों की तरफ से हैं।
क्या हैं इकोफ्रेंडली पटाखे
ग्रीन पटाखे असल में सामान्य पटाखों की तरह ही दिखते और आवाज करते हैं लेकिन इनमें रसायनों की वजह से प्रदूषण लगभग आधा रह जाता है। ग्रीन पटाखे मुख्य तौर पर तीन तरह के होते हैं। एक जलने के साथ पानी पैदा करते हैं, जिससे सल्फऱ और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें इन्हीं में घुल जाती हैं। इन्हें सेफ़ वाटर रिलीजऱ भी कहा जाता है।  दूसरी तरह के स्टार क्रैकर के नाम से जाने जाते हैं और ये सामान्य से कम सल्फऱ और नाइट्रोजन पैदा करते हैं। इनमें एल्युमिनियम का इस्तेमाल कम से कम किया जाता है। तीसरी तरह के अरोमा क्रैकर्स हैं जो कम प्रदूषण के साथ-साथ खुशबू भी पैदा करते हैं।
चाइना की पिस्तौल भी  
यही नहीं, बच्चों के लिए चाइना की पिस्तौल भी बाजार में दिखाई दे रही है, जिसमें से मिसाइल निकलती है और ये मिसाइल खतरनाक साबित होकर बड़ी दुर्घटना का कारण भी बन सकती है। हालांकि लगातार प्रतिबंध के चलते अब बच्चों के अभिभावकों भी इन खतरनाक पिस्तौल से बच्चों की दूरी बनाए हुए हैं।
करवा दिया था बहिष्कार
एक साल तो हिन्दू संगठनों ने चाइना के माल का बहिष्कार तक करवा दिया था, जिसमें सजावटी सामान , घर की आवश्यक वस्तुओं से लेकर पटाखे भी शामिल थे। उसके बाद कोरोना काल में चीन के विरोध के कारण पिछले साल ग्रीन पटाखों को तवज्जो दी गई और चाइना के पटाखे बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
लस्सन बम की डिमांड  ज्यादा
सूत्रों के अनुसार शहर में कुछ व्यापारी ऐसे हैं, जो चाइना से पटाखे मंगाते थे और उन्हें बाजार में खपाते थे। इसको बेचने पर फायदा अच्छा होता है और आम पटाखों से ये पटाखे सस्ते भी मिलते हैं। इस कारण चाइना के पटाखों को आम लोग भी खरीदते हैं, लेकिन प्रतिबंध के बावजूद अब यह पटाखे चोरी-छिपे बाजार में बिक रहे हैं। विशेषकर लस्सन बम, जो फेंकने पर फूटता है, की ज्यादा डिमांड है। यह पटाखा अभी बच्चों की पहली पसंद बना हुआ है।
जो बच गए वह माल खपा रहे
इस प्रकार के खतरनाक पटाखों पर पहले ही प्रतिबंध है, लेकिन पटाखा दुकानों के अलावा ये पटाखे गली-मोहल्लों की छोटी-छोटी दुकानों में आसानी से मिल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि जो पटाखे बच गए थे वे भी बाजार में खपाए जा रहे हैं, ताकि नुकसान से बचा जा सके। चूंकि इस बार कोरोना है नहीं और चाइना का विरोध भी नजर नहीं आ रहा है, इसलिए व्यापारी इस मौके का लाभ लेकर पुराने पटाखे बाजार में बेच रहे हैं।
इसलिए नहीं पहचान सकते
अपने यहां बनने वाले पटाखों से इन पटाखों के कवर एक जैसे दिखते हैं, इसलिए पहचाना नहीं जा सकता कि ये चाइना के पटाखे हैं। इसके साथ ही चाइना की पिस्तौल भी खूब चल रही है। सामान्य तौर पर 20 रुपए में मिलने वाली ये पिस्तौल बाजार में 50 से 200 रुपए में मिलती है और इसके माध्यम से मिसाइल छोड़ी जाती है, जो फूट जाती है। अगर ये मिसाइल सीधे किसी के ऊपर छोड़ी जाए तो उससे नुकसान भी हो सकता है और ज्वलनशील पदार्थ ह्यह्वड्ढह्यह्लड्डठ्ठष्द्गह्य) पर गिर जाए तो कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है।