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भोपाल

‘शिक्षा के विकास के साथ भ्रष्टाचार,आतंकवाद बढ़ रहा

  • 07 Oct 2024

संघ प्रचारक सुरेश सोनी बोले- अमेरिका जैसे देशों में बच्चे एक-दूसरे को गोली मार देते हैं
भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सर कार्यवाह सुरेश सोनी बोले- शिक्षा के विकास के साथ समस्याएं भी बढ़ रही है। दुनिया में सभी देश विकास चाहते हैं। उस विकास की यात्रा पर आगे बढ़ना है तो शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षा की पद्धति दुनिया में चल रही है। तुलनात्मक रूप से विकास तो हो रहा है, तो समस्याएं भी बढ़ रही हैं।
भोपाल के रवीन्द्र भवन में शिक्षा भूषण अखिल भारतीय सम्मान समारोह में सीएम डॉ. मोहन यादव, संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी, स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह, राज्य सभा सांसद बालयोगी उमेश नाथ महाराज मौजूद बतौर अतिथि शामिल हुए। समारोह में प्रो. केके अग्रवाल, प्रो. रामचंद्र आर, प्रो. कुसुमलता केडिया को 'शिक्षा भूषण' सम्मान से सम्मानित किया।
शिक्षा के साथ-साथ भ्रष्टाचार का भी विकास हो रहा
सुरेश सोनी ने कहा- शिक्षा का विकास हो रहा है तो साथ-साथ भ्रष्टाचार का भी विकास हो रहा है। शिक्षा के विकास के साथ जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है। महिलाओं के प्रति व्यवहार, मानवीय संविधान की बात करें तो जो अच्छे संपन्न अमेरिका जैसे देश माने जाते हैं। वहां बच्चे ही एक दूसरे को गोली मार देते हैं। इसलिए सारी दुनिया में यह बात चल रही है कि शिक्षा, साक्षरता बढ़ रही है, सब कुछ हो रहा है लेकिन साथ-साथ आतंकवाद भी बढ़ रहा है। मूल्य क्षरण भी बढ़ रहा है। सामाजिक विखंडन भी बढ़ रहा है, विभिन्न मानव समूहों के बीच में संघर्ष भी बढ़ रहा है। कहीं ना कहीं मौलिक गड़बड़ी है, जब तक हम उसको ध्यान में रखकर कुछ नहीं करेंगे। इसीलिए एक समग्र शिक्षा के चिंतन को लेकर मंथन चल रहा है।
शिक्षा के साथ मानवीय मूल्यों का भी विकास हो: सोनी
सुरेश सोनी ने कहा- जो पहली विसंगति ध्यान में आ रही है कि बाहर के परिवेश का विकास हो रहा है, लेकिन मानव पिछड़ता जा रहा है। वास्तविक विकास तभी हो सकता है। जब हमारे आसपास के परिवेश का विकास हो। और साथ ही साथ मानव का भी विकास हो। मानव के जीवन मूल्यों का विकास हो। इस नाते से इसके बीच की जो विसंगति है, उसको पाटने की जरूरत है। यह अगर करना है तो सबसे पहले शिक्षा है क्या?, इसके संदर्भ में एक स्पष्टता बनना चाहिए। शिक्षा का मतलब टेक्नोलॉजी है? क्या इन्वेंशन है? क्या मनुष्य अधिक से अधिक अंकोपार्जन करने में सक्षम हो जाए, यही शिक्षा है क्या? या शिक्षा इससे कुछ अलग है? बहुत सी परिभाषाएं हैं। मैं उसमें नहीं जाना चाहता हूं।
99% माताएं बच्चे का जन्म होते ही कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं: उमेशनाथ
डॉ. उमेश नाथ महाराज ने कहा- हम आज की शिक्षा पद्धति की ओर जब देखते हैं तो कष्ट होता है। जिसे हम ना चाहते हुए भी सहन कर रहे हैं। हमारी प्राचीन परंपरा में शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल में गुरुजी के हाथ में होती थी। आज हम गुरु परंपराओं से बहुत वंचित होते चले जा रहे हैं।
आज स्थिति ऐसी है कि जब कोई मातृ शक्ति गर्भवती होती है तो वह अपने गर्भस्थ बालक-बालिका के लिए सोचती है कि मेरे बच्चे का कब जन्म हो और वह थोड़ा सा पैदल चलने लगे तो मैं उसे इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजूं। 99% माताओं का यह प्रयास रहता है कि वह अपने बच्चे को कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं। लेकिन, उसके मन में यह कभी नहीं रहता है कि उसका बच्चे का जन्म हुआ है तो उसे मैं गुरु की शरण में भेजूं। यहीं से हमारे मानवीय जीवन का पथ बिगड़ जाता है। वह मानवीय जीवन का पथ लगातार बिगड़ते - बिगड़ते ऐसी स्थिति में चला जाता है कि हम पाश्चात्य सभ्यताओं में चले जाते हैं।
'कॉन्वेंट की व्यवस्था को नकारात्मक स्थिति में लाकर खड़ा करने की भावना'
उमेश नाथ महाराज ने कहा- नवरात्रि में मेरे 9 दिन के मौन व्रत चलते हैं। मैंने पिछले 50 सालों में यह संकल्प ले रखा है। मैं 9 दिन उपासना करता हूं। इस देश में लगभग 25 लाख संन्यासी है और वह संन्यासी मात्र केवल संन्यास धारण करके अपने कल्याण और बाकी व्यवस्थाओं में उलझ जाते हैं और सामाजिक सुधार का काम नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में निरंतर समाज के साथ खड़े होकर समाज का परिवेश कैसे बदलें और समाज आध्यात्मिक तरीके से जिए। पाश्चात्य सभ्यताओं को खत्म करने के साथ ही कॉन्वेंट की व्यवस्था नकारात्मक स्थिति में लाकर खड़ा हो ऐसी मेरी भावना रहती है।
सीएम बोले- गुरुजी और शिक्षकों में अंतर चुनौती पूर्ण है
कार्यक्रम में सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा- गुरु पूर्णिमा पर हमेशा यह प्रश्न आता है। गुरु पूर्णिमा पर शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए या नहीं? गुरु और शिक्षक में जो अंतर है, यह बड़ा चुनौती पूर्ण मामला है। जिसको उठाकर मैंने गलती कर दी है। लेकिन महाराज की उस बात का उत्तर ढूंढ रहा था, महाराज ने बताया कि मैं अपने धाम में रहकर अलग धारा में रहता था। हमने कहा महाराज…आपने घर छोड़ा, संसार के सुधार के लिए आप इसी मार्ग पर चलो, मुझे लगता है कि नवरात्रि में आज हमारे बीच में दो शब्द बोलना यह इस मार्ग पर चलने का उदाहरण है। जब-जब इस देश पर प्रश्न खड़े हुए कुछ प्रश्नों की तरफ हम देखेंगे तो ध्यान में आएगा रामायण काल में गुरु वशिष्ठ अगर दशरथ जी के घर नहीं जाते और राम लक्ष्मण को उठाकर जंगल में नहीं ले जाते तो हम क्या कल्पना कर सकते थे कि रामायण का ऐसा रूप हो सकता था।