Highlights

इंदौर

समूह लोन- कहीं सुविधा, तो कहीं कर्ज का दलदल

  • 21 Nov 2022

हर दूसरी, तीसरी महिला समूह लोन के चक्कर में
इंदौर।  कहा जाता है कि जिस पर कोई कर्ज या ऋण नहीं है वह आज के समय में सबसे सुखी है, ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि सभी जानते हैं कि कर्ज होने के चलते अधिकांश लोग तनाव में रहते हैं और इसका सीधा असर व्यक्ति के स्वास्थ पर पड़ता है। कर्ज में डूबे व्यक्ति को बस एक ही चिंता सताती है कि वह किस तरह अपना कर्जा चुका दें। इन सब बातों को जानने के लिए बावजूद कुछ लोग कर्ज लेने में पीछे नहीं हटते हैं और अपनी आवश्यकता होने पर किसी न किसी प्रकार का लोन लेते हैं।
इन दिनों देखने में आ रहा है कि शहर हो या गांव बीसी, समूह लोन जमकर बांटे जा रहे हैं और महिलाएं यह लोन ले भी रही है। इस लोन की राशि का कुछ तो अपने व्यापार में उपयोग कर रही है, जबकि कुछ को आवश्यकता होने पर राशि उपयोग में ले रही है, लेकिन इनमें कुछ ऐसी भी हैं, जो इस कर्ज के जाल में फंसकर अपने परिवार व स्वयं का सुख-चैन छीन रही है। दरअसल देखा जाए तो समूह लोन जहां सुविधाओं वाला होता है, वहीं यह कर्ज का दलदल भी बनता जा रहा है।
इसलिए मिलता है यह लोन
दरअसल  महिलाओं की आत्मनिर्भरता के लिए बैंक व फाइनेंस कंपनियां ग्रुप लोन देती हैं। 8-10 महिलाओं का ग्रुप बनाओ और 30 से 50 हजार के बीच साल दो साल की अवधि का लोन पाओ। ब्याज भी डेढ़ दो फीसदी लगता है। महिलाओं को शुरुआत में यह बड़ा आसान लगता है, लेकिन वे जब कर्ज के दलदल में फंसती हैं तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है। बहुत बार ये गलतियां जानलेवा सिद्ध होती है।
यह है प्रक्रिया
निजी कंपनियां और संस्था महिलाओं को ग्रुप लोन देती है। इसमें 8-10 महिलाओं का ग्रुप बनाया जाता है। दो महिलाएं ग्रुप की सर्वेसर्वा होती है। बैंक या फाइनेस कंपनी का कर्मचारी आता है और सभी महिलाओं से आधारकार्ड, मतदाता परिचय पत्र, बिजली बिल, पेन कार्ड व बैंक डायरी एकत्र कर पति-पत्नी का फोटो लेता है और एक-दो दिन में लोन मंजूर होकर खाते में आ जाती है। पत्नी का ग्यारंटर पति और विधवा का उसका बेटा ग्यारंटर बनाया जाता है।
किश्त चूके तो दंड
लोन मंजूर होने के बाद पखवाड़े या मासिक किस्त बनाई जाती है जिसे वसूलने हर माह बैंक कर्मी आता है। ग्रुप की किसी भी सदस्य की किस्त चूकती है तो 200 से लेकर 500 रु. दंड वसूला जाता है। ग्रुप की मुखिया की जिम्मेदारी रहती है कि वह सारी किस्त वसूल कर जमा कराए। ऐसे में कोई महिला किस्त नहीं भर पाती है तो सब मिलकर वो किस्त भर देते हैं।
ऐसे फंसती हैं कर्ज के दलदल में
पढऩे सुनने में यह लोन स्कीम आसान लगती है। मगर है नहीं। आमतौर पर महिलाएं ऋण ले तो लेती हैं, लेकिन कई कारणवश समय पर किस्तें नहीं भर पाती। इस वजह से डिफाल्टर होने से बचने के लिए वे इधर-उधर से 5-10 फीसदी ब्याज पर पैसा लेकर किस्तें भरना शुरू करती हैं और कर्ज के दलदल में फंसती जाती है। घरेलू, कामकाजी, नौैकरीपेशा, झाड़ू पोछा करने वाली महिलाएं लोन लेती है। उन्हें दो से ढाई हजार रु. मासिक चुकाना आसान लगता है। लेकिन कई बार ये बोझ भारी हो जाता है। कर्ज न भर पाने से घर में कलह होती है और परिवार की सुख शांति छीन जाती है। कई बार प्रताडऩा से तंग होकर महिलाएं मौत को गले लगा लेती है।
अनेक महिलाएं हुई आत्मनिर्भर
कोई भी महिला यदि लोन लेने के बाद खर्च में कटौती कर रेगुलर किस्तें भरे तो समूह ऋण योजना सबसे बेहतर है। इन ऋण योजनाओं के बल पर हजारों महिलाएं  आत्मनिर्भर हुई है। छोटा मोटा ऋण लेकर उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया और आज हंसी खुशी जीवन व्यतीत कर रही है। कई महिलाओं ने बच्चों की शिक्षा, बेटियों के हाथ पीले इसी ऋण के सहारे किए है। बहुत से लोगों ने अपने आशियानों का सपना पूरा किया है।
जान तक दे देते हैं
कर्ज का जाल जब जी का जंजाल बन जाता है तब न घर में शांति रहती है न परिवार में...। कर्ज के तकादों का बोझ कभी-कभी इतना भारी पड़ता है कि व्यक्ति अपनी जान तक गंवा देता है। ऐसा ही पिछले दिनों हुआ  है जब एक डिजाइनर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।  इसी प्रकार आए दिन कई ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें कर्ज के दबाव में या नहीं चुका पाने के चलते कुछ लोग अपनी जान तक दे देते हैं।