(जन्म: 16 अगस्त, 1904 - मृत्यु: 15 फरवरी, 1948)
हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं।
'चमक उठी सन् सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह, हमने सुनी कहानी थी
ख़ूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी।
वीर रस से ओत प्रोत इन पंक्तियों की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को 'राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला' का विरुद दिया गया था। यह वह कविता है जो जन-जन का कंठहार बनी। कविता में भाषा का ऐसा ऋजु प्रवाह मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता सुभद्रा जी के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। इनकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी ऊर्जा से भर सकता है। ऐसा नहीं कि कविता केवल सामान्य जन के लिए ग्राह्य है, यदि काव्य-रसिक उसमें काव्यत्व खोजना चाहें तो वह भी है।