जम्मू। हर साल 10 हजार से ज्यादा बच्चों में थैलेसीमिया मिल रहा है। वहीं, सिकलसेल की बात करें तो थैलेसीमिया से करीब तीन गुना अधिक मरीज सामने आ रहे हैं। रविवार को अपोलो अस्पताल में आयोजित जागरूकता कार्यक्रम के दौरान डॉक्टरों ने अस्पताल आए तीमारदारों से अपील की है कि थैलेसीमिया और सिकलसेल रोग का समय से पता चल जाए तो इसका उपचार संभव है। इस दौरान बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट एवं सैल्युलर थेरेपी के बारे में भी बताया गया।
डॉ. गौरव खारया ने बताया कि जांच होते ही उनका उपचार शुरू हो जाता है, जिसके बाद जीवन भर ब्लड ट्रांसफ्यूजन या फिर आयरन चिलेशन आदि की जरूरत पड़ती है। इन दोनों ही मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट एक मात्र स्थायी उपचार होता है। दुर्भाग्य से सिर्फ 25-30 फीसदी मरीजों को ही उनके परिवार से आनुवांशिक एचएलए दाता मिल पाता है, जबकि 70 फीसदी मरीज इससे वंचित रह जाते हैं।
साभार अमर उजाला
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सालाना 10 हजार से ज्यादा बच्चों में मिल रहा थैलेसीमिया
- 14 Mar 2022