जबलपुर। हाई कोर्ट ने राज्य शासन के उस रवैये पर आश्चर्य जताया जिसके अंतर्गत एक कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के साढ़े नौ साल बाद वसूली निकाल दी गई। हाई कोर्ट ने साफ किया कहा कि ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के रफीक मसीह वाले न्यायदृष्टांत के उल्लंघन की परिधि में आता है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने आठ प्रतिशत ब्याज के साथ सभी देयकों व वसूली की राशि का भुगतान करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने वसूली भी निरस्त कर दी। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार दोषी अधिकारियों से ब्याज की राशि वसूलने के लिए स्वतंत्र है।
याचिकाकर्ता सीधी निवासी शिवचरित्र तिवारी ने वकीलों के न्यायिक कार्य से विरत रहने की अवधि में अपना पक्ष स्वयं रखा। उन्होंने दलील दी कि वे लोक निर्माण विभाग में टाइमकीपर के पद पर कार्यरत थे। विभाग की गलती के चलते 2007 की जगह 2009 में सेवानिवृत्त किया गया। कालांतर में दो वर्ष अतिरिक्त दी गई वेतन से कटौती का आदेश जारी कर दिया गया। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
अदालत ने गृह निर्माण समिति को राहत से किया इनकार
व्यवहार न्यायाधीश तबस्सुम खान की अदालत ने डा.बाबा साहब आंबेडकर गृह निर्माण समिति की वह याचिका निरस्त कर दी, जिसके जरिये भूखंड को लेकर अज्ञापक निषेधाज्ञा संबंधी राहत चाही गई थी। मामला गोहलपुर स्थित भूखंड को वादग्रस्त संबोधित करते हुए दायर किया गया था। आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी पक्ष मुकेश कुमार गुप्ता व सुषमा गुप्ता ने मनमाने तरीके से जिस भूखंड पर मकान बना लिया है, वह गृह निर्माण समिति की संपत्ति है। मकान निर्माण से पूर्व आवश्यक अनुमति आदि हासिल नहीं की गई। इसलिए निर्मााण अवैध है। लिहाजा, कार्रवाई के निर्देश जारी किए जाएं। जबकि प्रतिवादी पक्ष ने दस्तावेजी प्रमाणों के जरिये साबित किया कि वादी पक्ष के आरोप बेबुनियाद हैं।
जबलपुर
सेवानिवृत्ति के साढ़े नौ वर्ष बाद वसूली राशि लौटाएं
- 31 Mar 2023