इंदौर। भाजपा-कांग्रेस, आप बसपा या फिर चुनाव मैदान में उतरने वाले किसी भी राजनैतिक दल के नेता हो उनके बीच चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप, रैलियां, जनसंवाद तो अपनी जगह हैं ही, लेकिन जनता तक कम समय में अपनी पहुंच बनाने के लिए नेताजी अब सोशल मीडिया के सहारे पर कुछ ज्यादा ही हैं। चुनाव लडऩे वाले नेताजी तो कम उनके समर्थक व्हाट्सएप, फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया नेटवर्क पर अधिक सक्रिय हैं, क्योंकि नेताजी को तो कार्यकर्ताओं की बैठकें लेना है, जनसंपर्क करना है तो फिर ऐसे में वे समय कैसे निकालेंगे। इसलिए यह काम हर नेता ने अपने प_ों को सौंप दिया है।
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
प्रचार के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए इंफ्लूएंसर्स, आइटी कंपनियों और पीआर एजेंसियों को हायर कर लोगों तक पार्टी के मुद्दे, वादे-दावे पहुंचाए जा रहे हैं। लाखों के पैकेज में कंपनियां कैंपेनिंग भी कर रही हैं। आइटी कंपनियां प्रत्याशियों के सोशल मीडिया अकाउंट हैंडल करने के साथ इनके लिए कंटेंट, वीडियो, डेली पोस्ट भी बना रही हैं। इन सामग्रियों को जनता तक डिजिटली पहुंचाने के साथ इनका एनालिसिस हो रहा है।
हो रहे वायरल
अपने कार्यों के प्रचार के साथ विपक्षी को घेरने के लिए मीम्स भी सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं। इस चुनाव में मीम्स के साथ रील्स का बड़ा क्रेज है। इसके लिए सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स से संपर्क किया जा रहा है। इंफ्लूएंसर्स उनकी बात रील्स से लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पार्टियां पॉडकास्ट भी करवा रही हैं।
समर्थक ज्यादा सक्रिय
एक ओर जहां राजनीतिक दलों और चुनाव मैदान में उतरने वाले नेताओं के द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए कंपनियों को काम सौंपा जा रहा है, वहीं उनके समर्थक सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा ही सक्रिय होकर प्रचार प्रसार में जुटे हैं। उनका प्रयास है कि किसी भी तरह बस अपने नेताजी और पार्टी की बात प्रत्येक मतदाता तक पहुंच जाए।
अलग से सौंपी जिम्मेदारी
नेताओं ने सोशल मीडिया अकाउंट हैंडल करने और फेस बुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्एएप आदि के जरिए अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने की जिम्मेदार पार्टी की आईटी सेल के कार्यकर्ताओं को सौंप दी है। ये कार्यकर्ता 24 घंटे किसी न किसी रूप में अपनी पार्टी की उपलब्धियां आमजन तक पहुंचा रहे हैं।
सोशल मीडिया के दौर में भी इनका क्रेज कम नहीं
भले ही विधानसभा चुनाव पूरी तरह से हाईटेक तरीके से लड़े जा रहे हैं और सोशल मीडिया का पूरा-पूरा उपयोग लिया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद इस डिजिटल दौर में भी पार्टियों के बिल्ले, टोपी, टॉवेल, गमछे का क्रेज बरकरार है। दरअसल देखा गया है कि चुनावी माहौल में झंडे-बैनर, मफलर, टोपी, बिल्ले न हों तो चुनावी माहौल फीका नजर आता है। यही कारण हैकि राजबाड़ा और रानीपुरा की दुकानों पर चुनावी झंडे-बैनर और चिह्न सहित अन्य सामग्री सज चुकी है, तो वहीं थोक में इन सामग्रियों का निर्माण करने वालों के पास भी आर्डर आने लगे हैं। कुछ मिलाकर देखा जाए तो चुनावी महासंग्राम में अब व्यापारी भी शामिल हो चुके हैं। गुजरात के साथ ही स्थानीय स्तर से भी सामग्री बाजार में पहुंची है। इस बार इंदौर में दिग्गज नेता मैदान में हैं। ऐसे में व्यापारी आस लगा रहे हैं कि उन्हें बड़े स्तर पर ऑर्डर मिलेगा। इंदौर के साथ ही खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, भीकनगांव, पंधाना आदि शहरों से भी प्रत्याशी समर्थक प्रचार सामग्री लेने इंदौर आते हैं। नाम घोषित होने से पहले कई संभावित प्रत्याशियों के समर्थकों ने दुकानदारों से संपर्क कर जानकारी जुटाई है, ताकि चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार सामग्री खरीद सकें।
इंदौर
सोशल मीडिया के सहारे नेताजी, रैलियों, जनसंपर्क और आमसभाओं से अधिक फोकस इंटरनेट पर फोकस
- 30 Oct 2023