इंदौर। तीन दशक से ज्यादा समय से अपने हक के लिए न्यायालयों के चक्कर काट रहे हुकमचंद मिल के छह हजार मजदूर अब न्याय पाने के लिए शहर की सड़कों पर उतरेंगे। नवरात्रि के बाद से इसकी शुरूआत होगी। मजदूर आंदोलन के जरिए अपने संघर्ष की कहानी शहरवासियों के समक्ष रखकर उनसे मदद की गुहार लगाएंगे।
गौरतलब है कि 12 दिसंबर 1991 को हुकमचंद मिल बंद हुआ था। इसके बाद से मिल के 5895 मजदूर बकाया भुगतान के लिए भटक रहे हैं। करीब एक दशक पहले कोर्ट ने मिल की जमीन बेचकर मजदूरों का भुगतान करने के आदेश दिए थे लेकिन बार-बार नीलामी के लिए निविदा निकालने के बावजूद जमीन बिक नहीं सकी। कोर्ट के आदेश के बाद शासन ने मिल की जमीन का लैंड यूज भी बदल दिया। इसके बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि जमीन अच्छे दाम पर बिक जाएगी और मजदूरों का भुगतान हो जाएगा, लेकिन जमीन बिक नहीं सकी। मामले में उस वक्त पेंच आ गया जब करीब पौने दो साल पहले महामारी के ठीक पहले हुई निगम परिषद की अंतिम बैठक में नगर निगम ने जमीन की लीज निरस्त करने का प्रस्ताव पास कर दिया।
हालांकि यह प्रस्ताव भोपाल में अटका हुआ है। मजदूरों ने इस प्रस्ताव को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में आवेदन प्रस्तुत किया था। इसमें कहा था कि मिल की जमीन की लीज ही निरस्त कर दी गई तो मजदूरों का भुगतान कैसे होगा। पिछली सुनवाई पर लीज निरस्ती पर बहस होना थी लेकिन कोर्ट ने यह कहते हुए सुनवाई आगे बढ़ा दी थी कि पहले तो यह तय होना चाहिए कि जमीन की लीज निरस्ती को लेकर कोर्ट सुनवाई कर सकती है या नहीं। इसके बाद से मामला अटका हुआ है।
मजदूर नेता हरनामसिंह धालीवाल और नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि मजदूरों का सब्र अब जवाब देने लगा है। ऐसा लगता है कि इस साल भी मजदूरों की दीवाली काली ही रहेगी। हाल ही में हुई मजदूरों की बैठक में तय हुआ कि मजदूर अपने हक के लिए अब शहर की सडकों पर उतरेंगे। नवरात्रि के बाद आंदोलन की शुरू कर दिया जाएगा। आंदोलन के तहत मजदूर नुक्कड नाटकों के जरिए मजदूरों के संघर्ष को लोगों के सामने रखा जाएगा।
इंदौर
हक के लिए सालों से न्यायालय में लड़ रहे हुकमचंद मिल मजदूर अब सड़कों पर उतरेंगे
- 05 Oct 2021