जबलपुर। हाई कोर्ट की युगलपीठ ने साफ कर दिया है कि पीएससी परीक्षा-2019 की चयन प्रक्रिया के मामले में पूर्व में पारित आदेश की यदि गलत व्याख्या की गई है तो उसका निराकरण एकलपीठ ही करेगी। न्यायमूर्ति सुजय पाल व न्यायमूर्ति द्वारकाधीश बंसल की युगलपीठ ने स्वयं के आदेश की पुन: व्याख्या करने से इन्कार कर दिया। साथ ही व्यवस्था दे दी कि इस सिलसिले में एकलपीठ आदेश की व्याख्या करने पूरी तरह स्वतंत्र है।
उल्लेखनीय है कि जबलपुर निवासी हर्षित जैन, सागर निवासी जय प्रताप भदौरिया सहित, उमरिया, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, पन्ना व राज्य के अन्य जिलों के उम्मीदवारों ने याचिकाएं दायर की थीं। इनके जरिए पीएससी के उस रवैये को अवैधानिक बताया गया था, जिसके तहत पीएससी परीक्षा-2019 की समूची प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया था। इन याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह व जुबिन प्रसाद सहित अन्य ने दलील दी कि पीएससी के उक्त आदेश से हजारों उम्मीदवारों का भविष्य खतरे में पड़ गया है।
जिन अभ्यर्थियों ने प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार की तैयारी की है, उन्हें फिर से परीक्षा देनी होगी, जो कि पूरी तरह अनुचित है। इससे पहले वर्ष 2011, 2013 व 2015 में हाई कोर्ट द्वारा परीक्षा के लिए पात्र पाए गए उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित की गई हैं। लिहाजा, वर्ष 2019 की पीएससी परीक्षा के बाद समूची चयन प्रक्रिया निरस्त करने के स्थान पर कुछ उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षा आयोजित की जाए।आरक्षण प्रक्रिया को दी थी चुनौती : ओबीसी वर्ग की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद सिंह व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने पूर्व में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा गया था कि आरक्षित वर्ग के उन आवेदकों को सामान्य श्रेणी में स्थान मिलना चाहिए जिनके अंक कट-आफ से अधिक आए हैं। सरकार का यह नियम था कि ऐसे उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया के अंतिम चरण में शामिल किया जाएगा। ओबीसी संघ का कहना था कि प्रत्येक चरण यानी (प्रारंभिक, मुख्य व साक्षात्कार) में इसका लाभ मिलना चाहिए। हाई कोर्ट ने अप्रैल माह में पीएससी रिजल्ट को निरस्त कर उक्त उम्मीदवारों को शामिल करते हुए नए सिरे से चयन प्रक्रिया अपनाने की व्यवस्था दे दी थी।
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हाई कोर्ट की युगलपीठ ने कहा- यदि पूर्व आदेश की गलत व्याख्या हुई है, तो उसका निराकरण एकलपीठ ही करेगी
- 19 Nov 2022