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अर्थव्यवस्था / 35 लाख बेरोजगार उत्पादन के क्षेत्र में

  • 20 Nov 2019

भारतीय अर्थव्यवस्था में तिमाही दर तिमाही सुस्ती आती जा रही है ऐसे में नौकरियों की संभावनाएं भी धूमिल होती जा रही हैं. लागत बचाने के लिए कंपनियां सीनियर और मध्यम स्तर के कर्मचारियों को निकाल रही हैं तथा ज्यादा से ज्यादा फ्रेशर्स को नौकरी दे रही हैं. साल 2014 से अब तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ही 35 लाख लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं.
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले वर्षों में बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर रही है और जीडीपी में बढ़त से भी नौकरियों के मोर्चे पर खास राहत नहीं मिली है.
अर्थव्यवस्था में सुस्ती से लाखों नौकरियों पर संकट है. आईटी कंपनियां, ऑटो कंपनियां, बैंक सभी लागत में कटौती के उपाय कर रही हैं. कर्मचारियों में डर का माहौल बना है कि हालात इससे भी बदतर हो सकते हैं. बड़ी-बड़ी आईटी कंपनियों ने या तो छंटनी की घोषणा कर दी है या ऐसा करने की तैयारी में हैं. इसका सबसे ज्यादा सर मध्यम या वरिष्ठ स्तर के कर्मचारियों पर पड़ रहा है.
आईटी सेक्टर में 40 लाख नौकरियों पर संकट
आईटी सेक्टर के मध्यम से सीनियर स्तर के 40 लाख कर्मचारियों की नौकरी पर संकट है. कंपनियां फ्रेशर की भर्ती पर इसलिए जोर दे रही हैं, क्योंकि इनको बहुत कम वेतन देना पड़ता है. आईटी कंपनी कॉग्निजैंट ने 7,000 कर्मचारियों को निकालने का ऐलान किया है. कैपजेमिनी ने 500 कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है.
ऑटो सेक्टर की हालत तो पिछले एक साल से काफी खराब है. इसकी वजह से मई से जुलाई 2019 में ऑटो सेक्टर की 2 लाख नौकरियों पर कैंची चली है. यही नहीं, अभी भी इस सेक्टर की 10 लाख नौकरियों पर तलवार लटक रही है. मारुति सुजुकी ने 3,000 अस्थायी कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया है. निसान भी 1,700 कर्मचारियों को बाहर निकालने की तैयारी कर रही है. महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने अप्रैल से अब तक 1,500 कर्मचारियों को बाहर निकाला है. टोयोटा किर्लोस्कर ने 6,500 कर्मचारियों को वीआरएस दिया है.