Highlights

विविध क्षेत्र

39 करोड़ साल पुरानी गोंडवाना की मर्डर मिस्ट्री वैज्ञानिकों ने सुलझाई

  • 01 Nov 2023

गोंडवाना महाद्वीप में माल्विनोक्सहोसन बायोटा नाम का जानवरों समूह रहता था। पानी में रहने वाले ये जानवर बड़ी संख्या में पाए जाते थे। फिर ये रहस्यमय तरीके से मर गए। इनके गायब होने के बारे में कई तरह की थ्योरी रही हैं। कुछ में इनके किसी दूसरे जानवर समूह के हमले में मारे जाने की बात कही जाती है तो कुछ में पानी कोई जहरीली चीज घुल जाने की। इन सभी को नई रिसर्च ने नकार दिया है और दुनिया की सबसे पुरानी मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व कर देने की बात कही है।
केप टाउन: वैज्ञानिकों ने आखिरकार 390 मिलियन साल पहले हुई उन हत्याओं के रहस्य से पर्दा हटा दिया है। जिसे दुनिया की सबसे पुरानी मर्डर मिस्ट्री भी कहा जाता है। ये गोंडवाना में रहने वाले जानवरों की रहस्मयी मौत से जुड़ा था। अब एक शोध में सामने आया है कि प्राचीन महाद्वीप गोंडवाना में विलुप्त हो चुके समुद्री जानवरों के समूह के साथ आखिरकार क्या हुआ था और कैसे ये मर गए थे। ये रिसर्च करीब 39 करोड़ साल पहले इन जानवरों के खत्म हो जाने के पीछे जलवायु परिवर्तन में बदलाव की ओर इशारा करती है।
शोध के मुताबिक, पानी में रहने वाले जानवरों का एक प्राचीन समूह माल्विनोक्सहोसन बायोटा 5 मिलियन साल पहले ही गोंडवाना से गायब हो गया क्योंकि समुद्र का स्तर धीरे-धीरे कम हो गया था। ये दावा 13 अक्टूबर को जर्नल अर्थ-साइंस में प्रकाशित हुए शोध में कहा गया है। रिसर्च में कहा गया है कि जिस जलवायु परिवर्तन ने जानवरों के इस समूह को खत्म किया, उसमें आज हो रहे परिवर्तनों जैसी समानताए हैं।
भारत भी था इसी गोंडवाना का हिस्सा
जोहान्सबर्ग में विटवाटरसैंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और अध्ययन के लेखक कैमरन पेन-क्लार्क ने अपने बयान में कहा कि इन जानवरों के लापता होने का कारण करीब दो शताब्दियों तक एक पहेली बना हुआ था। अब 390 मिलियन वर्ष पुरानी हत्या के रहस्य का पता चल गया है।
शोध में कहा गया है कि विलुप्त होने के समय दक्षिणी ध्रुव के पास का क्षेत्र गोंडवाना का घर था। इसमें आज के समय में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, भारतीय उपमहाद्वीप और अरब प्रायद्वीप के हिस्से आते हैं। गोंडवाना करीब 600 मिलियन वर्ष पहले सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया के टूटने के साथ बना और 180 मिलियन वर्ष पहले अलग होना शुरू हुआ। गोंडवाना विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों का घर था। इसके निवासी माल्विनोक्सहोसन बायोटा भी थे। पानी में सरहने वाले इस समूह में मुख्य रूप से ट्रिलोबाइट्स और बाइवेल्व-जैसे ब्राचिओपोड्स, साथ ही कुछ मोलस्क और इचिनोडर्म शामिल थे। ये सभी 390 मिलियन से 385 मिलियन वर्ष पहले रहस्यमय तरीके से मर गए।
रिसर्च टीम ने लंबे समय तक किया शोध
इस रहस्य को सुलझाने के लिए रिसर्च टीम ने माल्विनोक्सहोसन बायोटा से संबंधित सैकड़ों जीवाश्मों का पुनर्विश्लेषण किया। इसमें प्रत्येक जीवाश्म पाए जाने वाले चट्टानों के स्थान, गहराई और भूवैज्ञानिक गुणों पर विशेष ध्यान दिया गया। इससे उन्हें एक साथ टुकड़े करने में सक्षम बनाया गया। टीम को माल्विनोक्सहोसन बायोटा की सात से आठ प्रमुख जीवाश्म परतें मिलीं। पेन-क्लार्क ने बताया कि जीवाश्म परतों की तुलना स्थानीय समुद्र स्तर के आंकड़ों से करने के बाद, शोधकर्ताओं ने देखा कि प्रत्येक परत समुद्र के स्तर में मामूली कमी के अनुरूप है। इन गिरावटों से वे महासागर नहीं सूखे, जहां ये जानवर रहते थे, लेकिन संभवतः जलवायु परिवर्तन शुरू हो गया, जिसे जीव अनुकूलित नहीं कर सके।
शोधकर्ताओं का मानना है कि माल्विनोक्सहोसन बायोटा ठंडे पानी में जीवित रहने के लिए विकसित हुआ था। लेकिन समुद्र के स्तर में गिरावट से दक्षिणी ध्रुव के आसपास समुद्री धाराएं बाधित हो गईं, जिन्हें "सर्कम्पोलर थर्मल बैरियर" के रूप में जाना जाता है। इससे जिससे भूमध्य रेखा से गर्म पानी को ठंडे दक्षिणी पानी के साथ मिलने में मदद मिली। ये बदलाव ही माल्विनोक्सहोसन बायोटा के खत्म होने की बड़ी वजह बना। पेन क्लार्क ने कहा है कि इस शोध की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि जैव विविधता का ये संकट उसी तरह का है, जिसका हम वर्तमान समय में सामना कर रहे हैं। यह समुद्र के स्तर और तापमान में बदलाव और पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता को दिखाता है।
साभार नवभारत टाइम्स