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चिंतन और संवाद

मोरारी बापू : आदि सक्ति जेहिं जग उपजाया...

  • 17 Oct 2020

श्रीरामचरितमानस में जानकीजी जनकपुर के उपवन में मां भवानी की स्तुति करती है :
नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
हे मां, तुझसे पहले कोई नहीं था। तेरा न आदि है, न मध्य है, न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। ईश्वर के बारे में कहा जाता है कि उनका कोई आदि-अंत नहीं है। ईश्वर और अंबा दो नहीं हैं। प्रकृति और परमेश्वर तत्वत: एक ही हैं। नवरात्र क्या है? हम सबमें जो आंतरिक-बाह्य शक्ति-तत्व हैं, उन्हें गतिशील बनाने के दिन हैं। मां शक्तिरूपिणी हैं। हम शक्ति को गतिशील करने के लिए उनका अनुष्ठान करते हैं। इनमें एक अनुष्ठान राम कथा है। ग्रंथकार मां को शक्ति रूपेण कहते हैं। श्रीरामचरितमानस में है:
आदि सक्ति जेहिं जग उपजाया।
जग को उत्पन्न करने वाली आदिशक्ति हैं। दूसरी हैं महाशक्ति , तीसरी शिवशक्ति, चौथी ज्ञानशक्ति, विचार श्क्ति हैं। शंकराचार्य कहते हैं- ज्ञान शक्ति कौशल्य। रामायण में कौशल्या ज्ञानशक्ति की प्रतीक हैं। एक क्रिया शक्ति है। हर एक की क्रियाशक्ति अलग-अलग होती है। एक दिव्यशक्ति है। एक पराशक्ति है। कितने ही रूप हैं मां भगवती के। हमारे भीतर इनमें से कुछ न कुछ मौजूद है। उन्हें गतिशील करने का यह समय है। शक्तिरूप के जितने प्रकार हैं, उन्हें हम धीरे-धीरे अपने आंतरिक विकास और विस्तार के लिए देखें।
रामकथा का एक क्रम है। बालकांड में प्रधान शक्ति पराम्बा भवानी है। केंद्र में पार्वती है। बिना पार्वती के रामकथा आगे नहीं बढ़ पाती। अयोध्या कांड  की केंद्रीय शक्ति मां जानकी हैं। अरण्यकांड के केंद्र में मां शबरी हैं। किष्किंधाकांड में थोड़े समय के लिएआई तारा हैं। सुंदरकांड का केंद्र बिंदु स्वयंप्रभा हैं। लंकाकांड के केंद्र में मंदोदरी हैं। उत्तरकांड की केंद्रीय शक्ति स्वयं भगवती हैं। मानस के सभी सात सोपानों के केंद्र में शक्ति विराजमान हैं। उसी में से जगत को  प्रकाश मिला है, अभय प्राप्त हुआ  है। जो चाहा, सो मिला है।
अरण्यकांड में राम की प्रतिज्ञा है कि समस्त पृथ्वी को राक्षस विहीन कर दंगा। यह प्रतिज्ञा सुनकर जानकी का चेहरा बुझ गया। कहा, आप पिता हैं तो मैं माता हूं। क्या ये असुर हमारे बच्चे नहीं है? क्या केवल देवता ही मेरे पुत्र हैं? मैं तो जगतजननी हूं। असुर भी हमारे हैं। हमें असुरों का नहीं, आसुरी तत्वों का हनन करना है। इनके अंदर की बुराइयों को मारना है। एक मां ही ऐसा कह सकती है। वे सबको समान रूप से देखती हैं।
शक्ति के रूप अलग-अलग होते हैं। हर एक को ज्ञान चाहिए। ज्ञान भी शक्ति है। शंकराचार्य का शब्द है- ज्ञानशक्ति। सभी को आनंद शक्ति चाहिए। उपनिषदीय सूत्र है-आनंद ब्रह्मोती त्यजानात। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं- राम स्वयं दुर्गा हैं। राम अंबा हैं,अंबिका हैं। वह कहते हैं: 
दुर्गा कोटि अमित अरिमर्दन।
अमित दूपर्णों को नष्ट करने वली अमित दुर्गा रूप, अनेक हाथों वाली दुर्गा राम हैं। राम तत्व दुर्गा है। राम की कृपा अंबा हैं:
तुलसीदास प्रभु कृपा कालिका।
गोस्वामीजी कहते हैं- राम कथा स्वयं अंबा है:
महर्षि याज्ञत्क्य महाराज के शब्द हैं- हे भरद्वाज, राम कथा दुर्गा है, अंबिका है। राम का नाम भगवती है, अंबा है।
जगत के मूल में आदि शक्ति दुर्गा हैं। हम दुर्गा के चरणों की पूजा करते हैं। आज के समय की सच्चे अर्थों में मांग है कि भारत की बहनन-बेटी के गर्भ में पुत्री हो तो गर्भपात न कराएं। यह भी दुर्गा की पूजा होगी। दुर्गा के चरणों की पूजा कर सुखी होना हो तो दहेज प्रथा न अपनाएं। दुर्गा के चरणों की पूजा करनी है तो समाज की सभी बहन-बेटियों को सम्मान दें। उनका अपमान न करें और न किसी को करने दें।
नवरात्र में कुछ लोग तंत्र-पूजा भी करते हैं, मगर लोगों को इसमें नहीं पड़ना चाहिए। मां को सात्विक भाव से भजें। मां बलि नहीं चाहतीं। मां का रूप अहिंसा रूपी है। किन्हीं  विशेष कारणों में ही मां ने खड्ग धारण किया। दुनिया का कोई भी डॉक्टर हिंसक नहीं होता, मगर आॅपरेशन करने के लिए चाकू-कैंची लेनी ही पड़ती है। मरीज के शरीर से गैर जरूरी तत्व निकालने के लिए ये उठाने पड़ते हैं। ऐसे ही मां ने कभी चंड-मुंड के लिए, कभी महिषासुर के लिए, कभी रक्तबीज के लिए तो कभी शुंभ-निशुंभ के लिए शस्त्र उठाए।
साभार - राज कौशिक के सोशल मीडिया एकाउंट से