एक जिज्ञासा......
बापू.... हम युवानों को आप बताएं कि हमारे पास क्या-क्या होना चाहिए ?.....
बापू बोले.... बाप ....हमारे पास 6 वस्तु होनी चाहिए....
1....हमारे जीवन में कोई संत होना चाहिए ....कोई ऐसा साधु होना चाहिए ...कोई ऐसा मार्गदर्शक होना चाहिए ...जो परम तत्व की बगिया में घूम कर आया है... अनुभव करके आया है ....परमानंद में डूबा है ...जो सहज हो... भजनानंदी हो... परमानंद में डूबा रहता हो ... जो साधु हमें अपनी स्मृति का बोध करा दे.... अपने स्वभाव में स्थित कर दे ऐसे कोई संत की हमारे जीवन में जरूरत है.....
2.... हमारे जीवन में एक कंत की जरूरत है ...कंत माने इष्टदेव... हमारा मालिक ...हमारा स्वामी... हमारा नाथ ... हमारा सब कुछ.... एक कंत ...एक शरणागति ... एक परम तत्व के हम आश्रित हो जाएं....
3.... हमारा जीवन पूरा हो इससे पूर्व बाप... कोई एक सूत्र चाहिए ...जीवन का कोई एक सूत्र ...एक विचार हम पकड़ लें ...जैसे कई लोग कहते हैं हम सेवा में ही मानते हैं ...हम भजन नहीं करते... हम लोग सेवा... देश सेवा ...समाज सेवा....
बहुत अच्छी बात है.....
हम ना प्रार्थना करते हैं... ना जप तप करते हैं.... सेवा हमारा सूत्र है ......
लेकिन मुझे कभी-कभी लगता है कि परमात्मा के स्मरण के बिना.... भगवान के भजन के बिना की गई सेवा भी.... हम ना चाहते हो.... हमें पता ना चले ऐसे हमें अभिमानी बना सकती है .....
हम माला नहीं घुमाते ...हम जप नहीं करते.... हम कथा नहीं सुनते ....ऐसे कई लोग मुझे मिलते हैं.... हम मंदिरों में नहीं जाते .....आप की मौज .....
हम तो सेवा करते हैं.....
लेकिन दूसरा जो कुछ कर रहा है उसकी आलोचना तो ना करो... उसकी निंदा तो ना करो .....
4.....जीवन में एक मंत्र होना चाहिये ....गुरू का दिया हुआ ...जिसने मंत्र का दर्शन किया है ... मन का दृष्टा है... जो मंत्र में डूबा रहता है ...मंत्र को सिद्ध किया है.... और शुद्ध भाव से जपता है ऐसे महापुरुष से हमारे जीवन में कोई एक मंत्र होना चाहिए.....
मंत्र का एक अर्थ विचार भी होता है.... एक परम जो हम दोहराएं बार बार... जप करें ....जपात सिद्धि....
5... जीवन में एक पंथ हो... एक मार्ग निश्चित हो.... हमारे वेद भगवान ने हमें तीन मार्ग बताए... ज्ञान मार्ग... कर्म मार्ग... उपासना मार्ग ....हमें कोई एक मार्ग निर्णित करना चाहिए ....एक पंथ निर्णित हो.... हम भटकाव में ना रहे ....ज्ञान मार्गी को ....कृपया वह भक्ति मार्ग की आलोचना ना करे....भक्ति मार्ग का पथिक कर्म मार्ग की आलोचना ना करे.... क्योंकि अंततोगत्वा तीनों चाहिए.....
6... हमारे जीवन में कोई ग्रंथ हो ...एक ग्रंथ हमारा इष्ट हो...जैसे भगवान वेद तो हमारा मूल है ...आदि अनादि है .....और उसके बाद सदग्रंथ हमारे यहां आए ...जिसको जिस ग्रंथ में श्रद्धा हो ...श्रीमद् भागवत... श्रीमद् रामचरितमानस ...महाभारत कोई भी....
।। रामकथा ।। मानस गुरू वंदना ।।