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खरगोन

मध्य प्रदेश: चार साल के कार्यकाल में आठ तबादले पा चुके आईएएस अफ़सर को लेकर बवाल ..!

  • 04 Jul 2021

मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ अप्रैल 2021 में बड़वानी के अपर कलेक्टर नियुक्त हुए थे, जिसके 42 दिनों के भीतर ही उनका तबादला हो गया. राज्य के आईएएस संघ के एक ऑनलाइन ग्रुप चैट के आधार पर कहा जा रहा है कि तबादले की असली वजह कलेक्टर के भ्रष्टाचार पर जांगिड़ का आपत्ति जताना था. मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी का भी नाम आया है.

अशोक खेमका, प्रदीप कासनी, सूर्यप्रताप सिंह ऐसे कुछ आईएएस अधिकारियों के नाम हैं, जिनके बगावती तेवर जब सरकारों के लिए परेशानी का सबब बन गए, तो इनके बार-बार इतने तबादले हुए कि रिकॉर्ड ही बन गए. सरकारों द्वारा आईएएस अधिकारियों के मनमाने तबादलों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है, लेकिन हालातों में फिर भी हालात नहीं आया है.

मध्य प्रदेश कैडर के 2014 बैच के आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़. बीते 31 मई को उनका तबादला हुआ था. वे शासन द्वारा 20 अप्रैल 2021 को बड़वानी जिले में अपर कलेक्टर बनाए गए थे, लेकिन महज 42 दिन बाद ही मैदानी पोस्टिंग से हटाकर उनका तबादला भोपाल के राज्य शिक्षा केंद्र में कर दिया गया.

मध्य प्रदेश में लोकेश के साढ़े चार साल के कार्यकाल में यह उनका आठवां तबादला (नौवीं नियुक्ति) था, जो अफसर-अधिकारियों के तबादलों के संबंध में 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश का उल्लंघन है.

मध्य प्रदेश में लोकेश जांगिड़ की पहली नियुक्ति 3 नवंबर 2016 को श्योपुर जिले में बतौर विजयपुर एसडीएम हुई. सात महीने में ही तबादला करके 22 जून 2017 को वे राज्य मंत्रालय, भोपाल में अवर सचिव (राजस्व) बनाए गए.

दो महीने बाद ही 1 सितंबर 2017 को उन्हें शहडोल में एसडीएम बनाकर भेजा गया. सात महीने बाद 16 अप्रैल 2018 को उन्हें इस पद से भी हटा दिया और वापस भोपाल बुलाकर नगरीय प्रशासन विभाग में उप सचिव बनाकर बैठा दिया गया. अब तक उनके तीन तबादले हो चुके थे.

फिर दिसंबर 2018 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ. कांग्रेस ने सरकार बनाई. चौथा तबादला तब हुआ. 11 मार्च 2019 को नगरीय प्रशासन विभाग के उपसचिव से हटाकर उन्हें फिर से मैदानी नियुक्ति दी और हरदा में जिला पंचायत सीईओ बनाकर भेजा गया.

वहां भी उन्हें लंबे समय तक काम नहीं करने दिया. आठ महीने बाद ही 3 दिसंबर 2019 को उनका पांचवा तबादला गुना अपर कलेक्टर के बतौर हुआ.

मार्च 2020 में राज्य में फिर सत्ता-परिवर्तन हुआ. भाजपा ने सरकार बनाई, जिसके बाद 10 सितंबर 2020 को उन्हें फिर मैदानी नियुक्ति से हटाकर राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल में अपर मिशन संचालक का पद दे दिया.

वे सात महीने बाद 20 अप्रैल 2021 को अपर कलेक्टर बनाकर बड़वानी भेजे गए. यह सातवां तबादला था. आठवां और अंतिम तबादला 31 मई 2021 को हुआ. केवल 42 दिन बाद ही उन्हें वापस भोपाल के राज्य शिक्षा केंद्र में अपर मिशन संचालक बना दिया.

31 मई 2021 को लोकेश के पास मध्य प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ का फोन आया. कथित 30 सेकंड की बातचीत में उन्होंने तबादले की सूचना दी, लेकिन तबादले का कारण नहीं बताया और कहा कि भोपाल आओ तब बात करेंगे.

दो हफ्तों बाद तब तूफान उठ खड़ा हुआ जब सिग्नल ऐप पर बने मध्य प्रदेश आईएएस अधिकारी संघ (एमपीआईएएसओए) के ग्रुप में हुई चैट के कुछ अंश (स्क्रीनशॉट्स) सार्वजनिक हो गए.

वे अंश लोकेश जांगिड़ द्वारा ग्रुप में किए गए उन मैसेजेस के थे, जिनमें वे अपने तबादले के पीछे का असल कारण बता रहे थे, जिसके तार बड़वानी कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा के भ्रष्टाचार से जुड़ रहे थे और इसके दायरे में मुख्यमंत्री की पत्नी साधना सिंह भी आ रही थीं.

जिस भ्रष्टाचार की बात हो रही है वह कोविड के दौरान ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की खरीद से जुड़ा मामला बताया जाता है. आरोप हैं कि बड़वानी कलेक्टर ने 39,000 रुपये कीमत का एक कॉन्सेंट्रेटर 60,000 रुपये में खरीदा. लोकेश ने इस पर आपत्ति जताई तो उनका तबादला करा दिया.

इसी दौरान लोकेश ने कलेक्टर के पुराने कारनामों का भी उल्लेख किया. उन्होंने लिखा, ‘वे पहले अतिरिक्त आबकारी आयुक्त थे. विभाग में उनकी छवि और उनके कर्म सभी जिला आबकारी अधिकारी और आबकारी इंस्पेक्टर भी जानते हैं.’

लोकेश ने सोशल मीडिया पर भी एक पोस्ट लिखा. जिसके शब्द थे, ‘ईमानदारी तेरा किरदार है तो खुदकुशी कर ले, सियासी दौर को तो जी हुजूरी की जरूरत है.’ इसी कड़ी में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने सिविल सर्विस बोर्ड को भी मजाक बताया.

उनके बगावती तेवरों के चलते सरकार ने 16 जून को उन्हें कारण बताओ नोटिस थमा दिया लोकेश ने इस कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण बताया. हालांकि, लोकेश अब मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं.  इस फैसले के पीछे दो प्रमुख वजह देखी जा रही हैं. पहली वजह है, सरकार और आईएएस संघ का दबाव. दूसरी वजह है, मीडिया से बात करने पर उन्हें मिली जान से मारने की धमकी.

हालांकि, इस पर भी लोकेश का कहना है कि उन्होंने कोई नियम नहीं तोड़ा है. सब-कुछ नियमों के दायरे में किया है. नोटिस के जवाब में उन्होंने लिखा है कि वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए वे हमेशा फोन ‘ऑटो कॉल रिकॉर्ड’ पर रखते हैं, ताकि आदेश वापस सुन-समझकर अच्छी तरह लागू कर सकें. यह आम प्रक्रिया है जो कनिष्ठ अधिकारी अपनाते हैं. अलग से कॉल रिकॉर्ड करने का उनका कोई इरादा नहीं था.

इस संबंध में सरकार का पक्ष अभी सामने नहीं आया है लेकिन हैरान करने वाली बात यह भी है कि बड़वानी कलेक्टर पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच तो दूर, सरकार की ओर से किसी ने इस पर जबां तक नहीं खोली है.

गौर करने योग्य बात यह भी है कि प्रदेश के ही दो भाजपा सांसदों ने लोकेश के काम की प्रशंसा की है.

बड़वानी के सांसद सुमेंद्र सिंह सोलंकी का कहना है, ‘मुझे नहीं पता कि उनका क्यों तबादला हुआ? वे बहुत मेहनती थे और क्षेत्रीय लोगों से अच्छे संबंध थे.’

वहीं, खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल ने कहा, ‘कोविड के दौरान उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों के साथ मिलकर अच्छा काम किया था. किसी प्रशासनिक कारण से उनका तबादला हुआ होगा.’