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बाबा पंडित

Can You Know that...!

  • 13 Aug 2021

संस्कृत बहुत ही रहस्यमय भाषा है  जानिए इस उदाहरण से।
युधिष्ठिरस्य या कन्या, नकुलेन विवाहिता। 
पूजिता सहदेवेन, सा कन्या वरदा भवेत्। 
युधिष्ठिर की जिस पुत्री का विवाह नकुल के साथ हुआ था, और सहदेव के साथ जिसकी पूजा की गयी, 
वह कन्या हमारे लिए वरदायिनी हो। 
रहस्य है रहस्य। 
मानिये मत, जानिए। 
इसका सही अर्थ 
व्याकरण का कोई प्रकांड विद्वान् ही लगा सकता है। इसका सही अर्थ निम्न है। 
यहाँ पर्यायवाची और व्याकरण की सुंदरता को बड़ी कुशलता से रखा गया है।
युधिष्ठिर नाम हिमालय का भी है। 
वे सदा अविचल भाव से खड़े रहते हैं। 
अतः पर्वतों को संस्कृत में भूधर, अचल, महीधर, युधिष्ठिर आदि के नाम से भी कहा गया है। 
यहाँ युधिष्ठिर का अर्थ पर्वत (हिमालय) है।
नकुल शब्द पर आईये। 
यहाँ पर नञ् तत्पुरुष समास का नियम लगा है। जिसका कोई कुल नहीं, वही नकुल है। अर्थात्, शिव जी। उनका कोई जनक नहीं। वे अनादि अजन्मा महादेव हैं, अतः न कुल हैं।
सहदेवेन। 
इस शब्द के दो अर्थ हैं। 
शब्दरूप के अनुसार, सहदेव के द्वारा और कर्मधारय समास तथा तृतीया कारक के अनुसार अर्थ होगा, देव के साथ।  तो अर्थ हुआ देव के साथ । यहाँ देव भी शिव जी के लिए ही आया है।
अब सही तरीके से सही अर्थ लगाईये। 
युधिष्ठिर (हिमालय) की जिस पुत्री का विवाह  नकुल (शिव) के साथ हुआ, तथा (महा)देव के साथ जिसकी पूजा हुई, वह कन्या (पार्वती) हमारे लिए वरदायिनी हो।
अब समझ में आया की संस्कृत किस दिव्य भाषा का नाम है। 
ऐसे ही देवभाषा नहीं है।
ऐसे ऐसे कई रहस्यमय श्लोक हमारे ग्रंथों में पड़े हैं।
जिनका सही अर्थ न जानने के कारण कुतर्की जन हमारे ऊपर आक्षेप करते हैं कि तुम्हारे ग्रन्थ में यह गलत है, 
यह अधर्मयुक्त है, आदि आदि।
।। वंदेसंस्कृतम् ।।
--बाबपण्डित