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शब्द पुष्प

वामा रूप धरे

  • 29 Jul 2021

वामा रूप धरे
श्रम साधती, स्वप्न पालती स्त्री
हर उस पुरुष को खटकती है
जो बाहर से छैला 
और भीतर से विषैला है

उम्मीद कोई क्या रक्खे...

  • 28 Jul 2021

ख़ुश्क मिट्टी ही ने जब पाँव जमाने न दिए
बहते दरिया से फिर उम्मीद कोई क्या रक्खे

निदा फ़ाज़ली

  • 26 Jul 2021
यूँ तो गुज़र रहा है हर इक पल ख़ुशी के साथफिर भी कोई कमी सी है, क्यों ज़िन्दगी के साथरिश्ता, वफ़ाएँ, दोस्ती, सब कुछ तो पास हैक्या बात है पता नहीं, दिल क्यों उदास है...

सर्दी रोकते हैं...

  • 24 Jul 2021
सर्दी रोकते हैं घर भर की.... मेरे बदन पर उसकी चादर है ......जितनी जेबें मिली मेरे घर में ....सबके अंदर तेरा ही पता निकला .... फेहमी बदायूँ...

नज़ीर बनारसी

  • 22 Jul 2021

अंधेरा मांगने आया था रौशनी की भीक
हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते

...दग़ा नहीं करते

  • 20 Jul 2021

तबीब हो के भी दिल की दवा नहीं करते
हम अपने ज़ख़्मों से कोई दग़ा नहीं करते

अब काम दीवाने से क्या...

  • 19 Jul 2021
सच है इन को मुझ से क्या और मेरे अफ़्साने से क्या कर दिया दीवाना तो अब काम दीवाने से क्या  इश्क़ का आलम जुदा है हुस्न की दुनिया जुदा मुझ को आबादी से क्या और तुम ...

...और शाम होते-होते

  • 17 Jul 2021

मैं गुजरे हुए पल को
तलाशता रहा हर पल
और शाम होते-होते
मेरा आज भी चला गया

मैं तो इक ‘चिराग’ हूँ

  • 16 Jul 2021

‘तंज’ करते रहो तुम ‘उम्र’ भर ‘धुंए’ की ‘कालिख’ पर...
मैं तो इक ‘चिराग’ हूँ मेरी ‘फितरत’ है ‘रौशनी’ देना...