सांता उत्सव ठीक है , अपमान ना करे.. लेकिन हम भारतीय "साधु-संत की संगत करें-अनुगामी बने" यही हनारी सनातन संस्कृति है ।
अन्य विचारों ,अन्य परंपराओं का सम्मान हमारी प्राचीन और सनातनी संस्कृति का मूलभूत अंग रहा है इसी कारण से हम भारतीय सदैव विनम्र और आदर भाव से युक्त रहे हैं
लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जिस प्रकार से हम अन्य परंपराओं का सम्मान करते -करते उसमे आबद्ध होते जा रहे है वो किसी भी प्रकार से उचित नही कहा जा सकता है।
हमारे यहाँ सदैव प्रकृति प्रदत्त संपदा वृक्षों नदियों पहाड़ों का वरदहस्त रहा है ।
हमारे यहाँ सदैव साधु - संत से अनुग्रह-संगत - सानिध्य का आकांशी भाव रहा है ।
जब सब कुछ हमारे पास समृद्ध और गौरवशाली स्वरूप में विद्यमान है तो क्यो हम अपनी पीढ़ियों को सिर्फ 'गिफ्ट' की लालसा के लिए अभिप्रेरित कर रहे है ।
विचार करे कि क्या यह पागलपन की हद तक जाना , बच्चों को सिर्फ लालसा से बहलाना कहाँ तक सही है ?
आज के दिन याद करे हमारे जीवनप्रद , औषधीय और पवित्रता से पूर्ण "तुलसी" को !
आज के दिन आओ "तुलसी" को पूजे !!
आज के दिन आओ "तुलसी" स्तुति का गान करें !!!
आज के दिन केवल और केवल 'संत - साधु' के अनुग्रह और कृपा प्रप्ति का आस्वादन करें ।
क्योकि तुलसी पूजन से ही स्मरण होगा हरि (विष्णु) का और हरी से स्मरण होगा हर(शिव) का ...और इनकी अहैतु कृपा से ही साधु - संत का सानिध्य और संगत होगी ।
सभी को आत्मीय भाव से तुलसी पूजन दिवस की शुभकामनाएं और बधाई ।
"आज इतनी ही हरिकथा " के साथ प्रणाम
-पुष्पेंद्र पुष्प-
चिंतन और संवाद
चिंतन और संवाद
- 25 Dec 2021