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इंदौर

इंदौर के अस्पताल चूहों से परेशान

  • 23 Jun 2021

हर साल कागजों में मारे जा रहे चूहे, फिर भी राहत नहीं
इंदौर। करीब सवा साल से शहर विश्वव्यापी कोरोना महामारी से जूझ रहा है। वर्तमान में ब्लैक फंगस से सैकड़ों मरीज ग्रस्त हैं जबकि ग्रीन फंगस ने भी आमद दे दी है। इन सबके बीच अस्पताल में मरीजों के लिए चूहे बड़ी मुसीबत बन गए हैं। चूहे कभी मरीज के हाथ-पैर कुतर देते हैं तो कभी शव को। अस्पतालों में हजारों की तादाद में चूहों की मौजूदगी है। जिम्मेदार अधिकारी और निजी अस्पताल संचालक भले ही नियमित फ्यूमिगेशन (चूहे मारने) के लाख दावे करें लेकिन यह परेशानी दूर नहीं हो रही है।
हाल ही में जिला अस्पताल के पोस्टमॉर्टम रूम में कृष्णकांत पांचाल नामक व्यक्ति का शव चूहों ने बुरी तरह कतर दिया। इसके पहले भी यहां ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। बकौल पोस्टमॉर्टम यूनिट के प्रभारी डॉ. भरत वाजपेयी खुला क्षेत्र होने से अकसर चूहे यहां घुस जाते हैं। पोस्टमॉर्टम रूम में नियमित फ्युमिगेशन किया जाता है। पिछले साल ही यूनिक अस्पताल में बुजुर्ग नवीनचंद जैन का शव चूहों ने कतर दिया। इसके पूर्व एमवायएच में नवजात के पैर कुतरे जाने जैसे मामले हुए। उधर,कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल में भी आसपास खुला क्षेत्र होने से चूहों की भरमार है। ऐसी ही स्थिति कई निजी अस्पतालों की है। कुछ मामले तो ऐसे हैं जिसमें परिजन शहर से बाहर के थे इसलिए उन्होंने शिकायत नहीं की और शव ले गए। ये घटनाएं बयां कर रही है कि नियमित फ्युमिगेशन के दावे खोखले हैं।
ऐसे तेजी से बढ़ रही है संख्या
चूहों की भरमार सिर्फ अस्पतालों में ही नहीं है बल्कि इनके आसपास के शासकीय आवासों, होटलों, गोदामों, सीमावर्ती क्षेत्र के खेतों आदि में भी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जोड़ी चूहा से साल में 8 से 10 बार बच्चे होते हैं। एक बार में 6 से 12 बच्चे देने की क्षमता होती है। यानी साल में एक जोड़ी चूहे से 1200 तक बच्चे पैदा होते है। फिर इन्हीं 1200 से आगे इनकी संख्या बढ़ती जाती है। इससे शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में चूहों की भरमार से इनकी बढ़ती संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।