बापू
रामकथा ।। मानस मंदिर
( गुजराती से हिंदी अनुवाद )
देह मंदिर .....
हमारा देह हमारा मंदिर है....
शरीर रूपी मंदिर जो है उसकी मूर्ति कौन सी ?...उसकी मूर्ति हमारा प्राण है... जब तक ये है तब तक हम हैं ....प्राण हो तो ही मंदिर है ......मूर्ति प्राण है.... आज की परिस्थिति में ही प्राण वायु नहीं मिलता और आदमी चला जाता है .....
देह मंदिर का पुजारी कौन ?....
संकल्प विकल्प करता हमारा मन .....
जैसे पुजारी होते हैं मंदिर में बारी-बारी से सेवा में ...वैसे संकल्प और विकल्प ये हमारे शरीर रूपी मंदिर के पुजारी हैं....
संकल्प ये शाश्वत पुजारी है ....
विकल्प ये काम चलाऊ पुजारी है ...वो थोड़े समय के लिए किसी की जगह पर... जैसे मूल पुजारी कहे कि मुझे अपने गांव जाना पड़ेगा तो तू 8 दिन आरती उतार लेना....
संकल्प ये कायमी पूजारी है ....
इस देह मंदिर की ध्वजा कौन सी ?....
जागृति पूर्वक... ईमानदारी ना छोड़ना उसका नाम ध्वजा है .....