मुरैना में हुआ खुलासा, पूरे प्रदेश में नजर
मुरैना। जिस दूध को हम बच्चों को पिलाते हैं और खुद भी अधिकांश चाय और मिठाइयों को बनाने में उपयोग करते हैं उसकी दूध का काला कारोबार किया जा रहा है। यानि मिलावटी दूध बाजार में बेचा जा रहा है। पूर्व में प्रदेश में चले अभियान के दौरान मिलावट माफियाओं ने कार्रवाई के डर से यह काम लगभग बंद कर दिया था, लेकिन एक बार फिर से प्रदेश में ये माफिया सक्रिय हो गए हैं। मुरैना जिले में 3.50 लाख दुधारू मवेशी हैं, जिनसे अधिकतम 12 लाख लीटर दूध के उत्पादन के साथ मुरैना प्रदेश में नंबर-1 का तमगा हासिल कर चुका है। लेकिन श्वेत क्रांति की इस उपलब्धि को माफिया ने अपना हथियार बना लिया।
यह हम नहीं कहते आंकड़े कहते हैं। जिले में गर्मी के सीजन में 7 से 8 लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। लेकिन 20 लाख की आबादी यानि 4 लाख परिवार 1.5 लीटर प्रतिदिन के हिसाब से 6 लाख 10 हजार लीटर दूध की खपत कर रहे हैं। वहीं शादी-समारोह व गर्मी के सीजन के चलते 2 लाख लीटर दूध का उपयोग दही, पनीर, मट्ठा बनाने में उपयोग हो रहा है। इसके अलावा रोज 3 से 4 लाख लीटर दूध ग्वालियर, धौलपुर, आगरा, फतेहाबाद सहित अन्य जिलों में विभिन्न चिलर सेंटर के माध्यम से हो रहा है। इस लिहाज से दूध की स्थानीय खपत 8 लाख लीटर रोज है और इतना ही रोजाना उत्पादन। फिर 4 लाख लीटर दूध बाहर कैसे निर्यात हो रहा है। इसके पीछे वजह भी साफ है...जिले में सिंथेटिक दूध बनाने का कारोबार।
फिर भी नहीं थमा कारोबार
2018 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद शुद्ध के लिए युद्ध अभियान शुरू हुआ। जिलेभर में दो दर्जन से अधिक छापामार कार्रवाईयों में लाखों रुपए का घातक कैमिकल, डिटरजेंट व अन्य सामग्री मिली। इस दौरान 40 से अधिक सिंथेटिक दूध कारोबारियों व घातक कैमिकल बेचने वाले आरोपियों पर एफआईआर दर्ज हुई। 10 से अधिक लोगों को रासुका के तहत जेल भेजा गया। लेकिन रासुका की कार्रवाई के बाद भी अधिकांश लोग जेल से छूटकर दोबारा सिंथेटिक दूध बनाने के कारोबार में जुट गए।
सरकार बदली तो विभाग सुस्त, सीजन में पहली कार्रवाई
मुरैना जिले में सिंथेटिक दूध बनाने वालों के खिलाफ सबसे अधिक 30 कार्रवाईयां वर्ष 2018 में कांग्रेस सरकार के समय हुई। इसके बाद सरकार बदलने और कोरोना संक्रमण के नाम पर फूड सेफ्टी विभाग सुस्त हो गया। जिससे यह कारोबार पनप रहा है।
इसलिए सिर्फ 5 हजार लीटर दूध पहुंच रहा
जिले में दूध खरीदने वाली बड़ी कंपनी सांची है। सांची को दुग्ध संघ बानमोर से दूध की सप्लाई होती है। लेकिन यहां दूध के भाव 35 से 37 रुपए लीटर और टेस्टिंग कठिन है। इसलिए किसान सिर्फ 5 हजार लीटर दूध ही इस कंपनी को दे रहे हैं। जबकि घी बनाने वाली कंपनी नोवा, पारस, भोलेशंकर आगरा सहित कानपुर, फतेहाबाद की कंपनियां दूध के भाव 38 से 40 रुपए लीटर दे रही हैं और यहां टेस्टिंग गुणवत्ता भी सामान्य है। इसलिए सिंथेटिक दूध कारोबारी अपने यहां बना दूध अधिकांशत: यहीं सप्लाई कर रहे हैं।
इन जिलों में निर्यात हो रहा दूध
मुरैना के अंबाह-पोरसा, जौरा, कैलारस क्षेत्र से मालनपुर, ग्वालियर, धौलपुर, आगरा, फतेहाबाद, कानपुर तक दूध की सप्लाई हो रही है। वहीं मुरैना शहर के ग्रामीण इलाकों में उत्पादित दूध का एक तिहाई हिस्सा नोवा, सांची फैक्टरी में भेजा जा रहा है।
3.50 मवेशी, सर्दियों में 12 लाख लीटर दूध उत्पादन का रिकॉर्ड
हमारे जिले में 7 लाख 11 मवेशी पंजीबद्ध है। इनमें दुधारू मवेशी 3.50 लाख के करीब हैं। अधिकतम 12 लाख लीटर दूध उत्पादन के साथ मुरैना प्रदेश में नंबर एक है। लेकिन यह बात भी सही है कि गर्मी के सीजन में दूध का उत्पादन 30 से 40 प्रतिशत घटकर यानि 7से 8 लाख लीटर ही रह जाता है। -आरके त्यागी, उपसंचालक पशु चिकित्सा सेवाएं
पाम कर्नेल ऑइल बरामद किया
जिले में सिंथेटिक दूध कारोबारियों के यहां जब-जब छापे डाले गए, उनके यहां पॉम कर्नेल ऑइल ही बरामद किया गया। इस संबंध में प्राणी वैज्ञानिक डॉ. विनायक सिंह तोमर का कहना है कि पाम कर्नेल ऑइल घी की तरह आधा लिक्विड व आधा गाढ़ा होता है। दूसरा इसको सपरेटा दूध में कैमिकल के साथ मिलाने पर चिकनाहट तो आती है लेकिन इसकी बीआर रीडिंग यानि चिकनाहट को जांच में ट्रेस नहीं किया जा सकता। जैसे दूध में घी मिलाने पर ऊपर उतराने लगता है। लेकिन पॉम कर्नेल ऑइल दूध में अच्छी तरह मिक्स हो जाता है और इससे मिलावट का पता नहीं चलता।
DGR विशेष
माफिया कर रहे हैं ...दूध का काला कारोबार, पूरे प्रदेस पर नजर..!

- 28 Jun 2021