क्या आपने एकांत का सुख भोगा है..?
एकांत में बैठना श्रेष्ठ व्यक्तियों का महत्वपूर्ण गुण हैं। जितना संसार अथवा अध्यात्म में आप ऊपर जाएंगे उतना अकेले होते जाएंगे। आपके आस-पास लोग तो होंगे किंतु वे आपके पीछे चलेंगे, साथ नहीं चल पाएंगे। श्रेष्ठ व्यक्ति हमेशा अकेला रहता है। भीड़ से अलग।
एकांत में बैठना श्रेष्ठ व्यक्तियों का महत्वपूर्ण गुण हैं। जितना संसार अथवा अध्यात्म में आप ऊपर जाएंगे उतना अकेले होते जाएंगे। आपके आस-पास लोग तो होंगे किंतु वे आपके पीछे चलेंगे, साथ नहीं चल पाएंगे। श्रेष्ठ व्यक्ति हमेशा अकेला रहता है। भीड़ से अलग।
लोगों के बीच में भी वह लोगों से अलग ही रहता है। श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल करता है और सोचता है। परंतु आम आदमी मन का इस्तेमाल करता है और सोचता नहीं। भावुकता में जीता है आम आदमी। किसी भी दफ़्तर में एक ही हाल कमरे में दस से पंद्रह क्लर्क काम करते हैं, मैनेजर को छोटे केबिन में बिठाया जाता है परंतु एम.डी. का कमरा बहुत बड़ा और आम स्टाफ से दूर होता है।एकांत में रहने को कई लोग अहंकार मान लेते हैं। शायद यह बात सच भी हो। परंतु यह भी सत्य है कि जब कभी हम अपने दिल में झांकें तो पाएंगे कि एकांत में हम सोचने लगते हैं, एकांत में हमें विचारों का समुद्र झेलना पड़ता है, जिसका हम कभी कभी सामना करना नहीं चाहते।
एकांत में हम अपने आपको सामने होते हैं। उस समय अपना आपा खुद के सामने होता है, और हम खुद जैसे भी हैं अपने आपके सामने हैं। अपने आपके सामने हम असली रूप में होते हैं। वह रूप जैसा होता है, वह औरों को दिखाई देने वाले स्वरूप से काफी अलग होता है। वह अलग और निपट रूप जैसा दिखाई देता है, वह काफी भयावह होता है। उस रूप से बचने के लिए ही हम अपने आप से तथा औरों से भागते रहते हैं। इसलिए एकांत आमतौर पर रास नहीं आता। लेकिन एकांत को अपना लिया जाए तो सुख चैन मिलता है।
आजकल तो अकेला कोई है ही नहीं। आपके पास टेलिविजन है, मोबाईल है, नेट है, रेडियो है। इतनी वस्तुएँ हैं कि हमने एकांत का सुख भोगा ही नहीं। जरा कोशिश करना- घर में बिना किसी गैजेट के रहना। और वो भी अकेला रहना। पाँच मिनट भी हम रह नहीं पायेंगे। किसी न किसी वस्तु का सहारा तो हमें चाहिए ही चाहिए।
कोई भी किताब भीड़ में नहीं लिखी जाती। एकांत में लिखी जाती है। कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय भीड़ में नहीं होता। उसे एकांत चाहिए। कोई भी प्रेम भीड़ में नहीं होता। उसे एकांत चाहिए। एकांत का मतलब है- जहाँ एक का अंत हो। जहाँ अहंकार बिलकुल ख़त्म हो जाए। क्योंकि किसी शायर ने कहा है, "कुछ इस तरह करो कि भीड़ में तन्हा दिखाई दो।" एकांत सजा नहीं है,एकांत मज़ा है। सोचिएगा इस बात पर