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चिंतन और संवाद

हरिकथा

  • 19 May 2021

केदारनाथ को क्यों कहते हैं

‘जागृत महादेव’ ?,

 दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी "

 

एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला।

पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं,

वह पैदल ही निकल पड़ा।

रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता।

चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदारधाम पहुच ही गया।

केदारनाथ में मंदिर के द्वार ,

6 महीने खुलते है और

6 महीने बंद रहते है।

वह उस समय पर पहुचा

जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे।

पंडितजी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है।

पंडित जी से प्रार्थना की -

कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये ।

लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद।

नियम तो नियम होता है।

वह बहुत रोया।

बार-बार भगवन शिव को याद किया कि,

प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो।

वह प्रार्थना कर रहा था सभी से,

लेकिन किसी ने भी नही सुनी।

पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना,

 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे।

 यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है।

 और सभी जन वहाँ से चले गये।

 वह वही पर रोता रहा।

 रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया।

 उसने किसी की आने की आहट सुनी।

 देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है।

 वह सन्यासी बाबा उसके पास आया और

 पास में बैठ गया पूछा -

 बेटा कहाँ से आये हो ?

 उस ने सारा हाल सुना दिया

 और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबाजी।

 बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया।

 और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे।

 बाबाजी को उस पर दया आ गयी।

 वह बोले, बेटा मुझे लगता है,

 सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा।

 तुम दर्शन जरुर करोगे।

 बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी।

 सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली।

 उसने इधर उधर बाबा को देखा,

 किन्तु वह कहीं नहीं थे ।

 इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता

 उसने देखा पंडित जी आ रहे हैं,

 अपनी पूरी मंडली के साथ।

 उसने पंडित को प्रणाम किया और बोला -

 कल आपने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ?

 और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ,

 लेकिन आप तो सुबह ही आ गये।

 पंडित जी ने उसे गौर से देखा,

 पहचानने की कोशिश की और पुछा -

 तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ?

 जो मुझे मिले थे।

 6 महीने होते ही वापस आ गए !

 उस आदमी ने आश्चर्य से कहा -

 नही, मैं कहीं नहीं गया।

 कल ही तो आप मिले थे,

 रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया।

 पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।

 उन्होंने कहा -

 लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था

 और आज 6 महीने बाद आया हूँ।

 तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ?

 पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी।

 इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति

 कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है।

 तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के

 मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी।

  कि एक सन्यासी आया था -

  लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल

  और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था।

 पंडित जी और सब लोग

  उसके चरणों में गिर गये। बोले,

  हमने तो जिंदगी लगा दी,

  किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके,

  सच्चे भक्त तो तुम हो।

  तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है।

  उन्होंने ही अपनी योग-माया से

  तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया।

  काल-खंड को छोटा कर दिया।

  यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा

  और विश्वास के कारण ही हुआ है।   आपकी भक्ति को प्रणाम।   हर हर महादेव....