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DGR विशेष

खुद असत्य छुपाते हैं और दूसरों का सच जानना जरूरी है...ऐसा क्यों ? सच जानना है तो स्वयं को भी सच्चा बनना पड़ेगा!

  • 15 Oct 2021

आज पूरा देश विजयादशमी का पर्व मना रहा है। यह पर्व हमें असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है। आज पुरी दुनिया में स्थिति यह है कि पूरी दुनिया के लोग हर किसी मामले मेें सच (सच)जानने को आतुर रहते हैं, भले वह खुद असत्य क्यों न हो, लेकिन यह क्या...? खुद असत्य छुपाते हैं और दूसरों का सच जानना जरूरी है...ऐसा क्यों ... खैर । भगवान राम की विजय प्रेम, भातृत्व, व्यावहारिकता और मानवीयता को मजबूत करने वाली विजय है। इसलिए विजयी तो बहुत से राजे-रजवाड़े-आततायी हुए होंगे, लेकिन सच्ची विजय राम की है, इसलिए विजयदशमी के आयोजन का पूरी मानवता के लिए विशेष महत्व है।
आज दुनिया का कोई कोना नहीं, जहां विजयदशमी से मिलने वाले संदेश का महत्व न हो। सबको सत्य, प्रेम और न्याय चाहिए। सबको सद्व्यवहार चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, विजयदशमी के दिन राम को जो जीत हासिल हुई थी, वह कितनी व्यावहारिक थी। किसी राज्य को जीतनेके बाद शासकों और उनके योद्धाओं में उस क्षेत्र को लूटने-हड़पने की जल्दी होती है, लेकिन राम जीतने के बाद भी लंका से एक छोटा सा उपहार तक नहीं लाए थे। उन्होंने रावण के भाई विभीषण का सप्रेम राज्याभिषेक कराया था। सत्ता का इतिहास भाई-भाई के बीच हिंसा, हत्या, अत्याचार, अन्याय, अमानवीयता, दुश्मन राज्य के लोगों के शोषण, दमन से अटा पड़ा है। संसार का कोई भी कोना हो, कोई भी जीव हो, हर किसी को सत्य की खोज है। झूठा से झूठा इंसान भी दूसरों से यही उम्मीद करता है, उसे हर बार पूरा सत्य बताया जाए। सत्य जानने के प्रति यह आग्रह ही सत्य की सबसे बड़ी जीत है। जिस मुद्रा के लिए लोग सर्वाधिक असत्य बोलते हैं, उस मुद्रा पर अंकित भारत केप्रतीक चिन्ह के नीचे लिखा होता है- सत्यमेव जयते।  सत्य की जीत अर्थात सहज मानवीय आशा की जीत। यदि किसी को पता लग जाए कि उससे असत्य बोला गया है, तो उसे बहुत निराशा होती है। असत्य दुख पैदा करता है और सत्य वास्तविक खुशी के  प्रति आश्वस्त करता है। राम और रावण में सबसे बड़ा फर्क यही था कि राम सत्य के पक्षधर थे और रावण को सीता हरण के लिए भी असत्य का सहारा लेना पड़ा था।  तब असत्य से न केवल साधु वेष बदनाम हुआ, भीक्षा मांगने वालों को भी लांछित होना पड़ा। वैसे असत्य को दंड देकर राम ने जब सत्य का मान बढ़ाया, तब मानवता विजयी हुई और विजयदशमी का पर्व साकार हुआ। विजयदशमी महापर्व से अगर हम प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें, तो निस्संदेह जल्दी ही अपने लक्ष्य तक पहुंचेंगे। आज देश दुनिया में जो हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है, लेकिन बात चाहे राजनीति की हो, दो देशों के बीच की हो, अपने प्रदेश या फिर अपने शहर, गांव और घर की क्यों न हो हर कोई बस सच यानि सत्य जानना चाहता है। यह सत्य जानने के लिए कई बार इंसान खुद असत्य का सहारा लेता है। आज विजयादशमी के मौके पर हम यह ठान लें कि सच जानना है तो स्वयं को भी सच्चा बनना पड़ेगा और असत्य का साथ छोडऩा पड़ेगा, तभी हम असत्य पर विजय पा सकेंगे।