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किसकी होगी सत्ता, कौन बनेगा सरताज ?

  • 31 Oct 2020

मौन मतदाताओं की चुप्पी को लेकर असमंजस, उपचुनाव में दोनों दलों ने झोंक दी पूरी ताकत
इंदौर। प्रदेश मेें होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस के छोटे से लेकर बड़े नेताओं तक ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और सारे प्रयास करते हुए मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाई है, लेकिन मौन मतदाताओं का रूख किसकी ओर होता है यह तो आने वाले 10 नवंबर को पता चलेगा कि प्रदेश की सत्तार आखिर किसके हाथ में होगी और कौन सरताज बनेगा। हालांकि दोनों दलों के प्रमुख भाजपा से शिवराजसिंह चौहान और कांग्रेस से कमलनाथ यह दावा कर रहे हैं प्रदेश की जनता एक बार फिर से उन्हें ही चुनेगी, लेकिन जिस तरह से इंदौर की सांवेर सीट सहित अन्य सीटों पर मतदाता मौन है उससे दोनों ही दलों में घबराहट भी है आखिर चुनाव परिणाम क्या होगा?
 जनता नहीं खोल रही पत्ते, प्रत्याशी असमंजस में
उपचुनाव को लेकर जहां कांग्रेस सरकार को गिराने वाले लोगों को गद्दार बताकर जनता से फिर समर्थन देने की गुहार लगा रही है, वहीं सत्ता में काबिज भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि सिंधिया और उनके साथियों ने इसलिए कांग्रेस का साथ छोड़ा क्योंकि  वचन-पत्र में किए गए वादे वह पूरे नहीं कर रहे थे। सांवेर सीट पर भी गद्दार का मुद्दा कांग्रेस द्वारा बनाया जा रहा है, लेकिन ग्राउंड जीरो पर उतरने पर यह समझ में आ रहा है कि सांवेर सीट पर होने वाले उपचुनाव में गद्दार नहीं बल्कि विकास प्रमुख मुद्दा है। कई विधायक आए और चले गए लेकिन आज भी सांवेर की सड़कें बदहाल हैं, वहीं किसानों का आरोप है कि किसी भी पार्टी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। हालांकि जनता पत्ते अपने नहीं खोल रही है। ऐसे में प्रत्याशियों के साथ पार्टियां भी असमंजस में हैं।
गद्दार बनाया मुद्दा
   जिन सीटों पर उपचुनाव होना हैं उनमें वही नेता पुन: प्रत्याशी बनकर इन 15 महीनों के अंदर जनता के बीच पहुंचे हैं। जहां कांग्रेस यह कह रही है कि भाजपा ने सिंधिया के साथ मिलकर लोकतंत्र की हत्या की है, तो वहीं भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान जो वादे किए थे और जिन वादों को लेकर सरकार बनाई थी, वह उसे पूरा नहीं कर रहे थे।  यही वजह रही कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने साथियों के साथ कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस उपचुनाव में गद्दार का मुद्दा बना जनता के माथे पर फिर से चुनाव थोपने की बात कह रही है।  वहीं भाजपा यह कह रही है कि प्रदेश को बचाने के लिए सिंधिया ने ऐसा किया।
सांवेर में विकास का हर बार प्रलोभन
अब तक कहा जा रहा था कि सभी सीटों पर गद्दार प्रमुख मुद्दा बनकर उभरेगा, लेकिन सांवेर की स्थिति का जायजा लेने पर स्थिति कुछ अलग ही हट कर सामने आई है। यहां की जनता का कहना है कि किसने लोकतंत्र की हत्या की और किसने नहीं।  इससे हमें कोई लेनादेना नहीं है। पिछले कई सालों में सांवेर में कई विधायक आए और चले गए, लेकिन विकास के मामले में सांवेर अभी भी पिछड़ा हुआ है। चुनाव के समय प्रत्याशी हर बार विकास का प्रलोभन देते हैं, लेकिन परिणाम आने के बाद यहां झांकने तक नहीं आते हैं। इस बार सांवेर में मुकबाला कड़ा बताया जा रहा है। जहां भाजपा से तुलसीराम सिलावट मैदान में तो वहीं कांग्रेस से प्रेमचंद गुड्डू चुनावी रण में हैं। दोनों नेता अपनी -अपनी जीत का ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन जनता कह रही है कि इस बार हम उसे ही चुनेंगे जो सांवेर का विकास करेगा और किसानों के मुद्दों पर भी ध्यान देगा।
  दोनों रह चुके हैं विधायक
 भाजपा प्रत्याशी तुलसीराम सिलावट सांवेर से कई बार विधायक रह चुके हैं, वहीं प्रेमचंद गुड्डू  एक बार सांवेर से विधायक चुने गए थे। जनता इन दोनों पर भरोसा कर चुकी है और अब यह एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं।  ऐसे में जनता किसे अपना प्रतिसाद देगी, यह कह पाना मुश्किल है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने सांवेर के लिए अपना अलग-अलग वचन पत्र जारी किया है और दोनों ही सांवेर के विकास की बात कह रहे हैं। अब जनता किस पर विश्वास करेगी यह तो आने वाले परिणाम ही बताएंगे।
  खस्ता हाल सड़कें सबसे बड़ी समस्या
 सांवेर की जनता का कहना है कि यहां की सड़कें खस्ता हाल हैं। कई सड़कें तो आज तक नहीं बनीं और जो बन भी गईं वह साल भर के अंदर उखड़ गईं। नेता चुनाव में सड़कों का जाल बिछाने की बात करते हैं, लेकिन अभी तक जो पुरानी सड़कें स्वीकृत हुई थीं, वहीं नहीं बन पाई हैं। ऐसे में एक बात तो साफ है कि सांवेर में विकास ही सबसे बड़ा मुद्दा है।
सांवेर में बदलाव के भी आसार
वहीं जिस हिसाब से जनता का मूड है उस हिसाब से संकेत यह भी मिल रहे हैं कि सांवेर की जनता बदलाव भी कर सकती है, क्योंकि पिछली बार जब कांग्रेस से तुलसीराम सिलावट जीते थे, तब महज भाजपा और कांग्रेस में जीत का अंतर केवल 2900 मतों का था। इन पन्द्रह महीनें में जनता के विश्वास पर सिलावट कितने खरे उतरे यह तो जनता ही जानती है, लेकिन मुकाबाला गुड्डू और सिलावट के बीच कांटे का है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
दोनों का राजनीतिक भविष्य दांव पर
दोनों का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है। भाजपा-कांग्रेस की तो अपनी चुनावी लड़ाई है ही, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है जो भी हारा उसका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है। खासकर तुलसीराम सिलावट के लिए सबसे ज्यादा चुनौती है, क्योंकि भाजपा में इंट्री के बाद यदि वे अपना करिश्मा नहीं दिखा पाते हैं, तो फिर अगले चुनाव में उनके लिए मुश्किल हो सकती है। खैर, आगे का भविष्य नेताओं का क्या रहेगा यह तो परिणाम आने के  बाद  ही तय हो पाएगा और इसके लिए सभी को 10 नवंबर तक का इंतजार करना होगा।
जोड़तोड़ की राजनीति करने में दोनों दल
पहले सरकार गिराने का खेल चला और अब जोड़तोड़ की राजनीति सांवेर में देखने को मिल रही है। कहीं भाजपा नेता कांग्रेस कार्यकर्ताओं को तोड़कर पार्टी में शामिल कराने में जुटे हुए हैं, तो वहीं कांग्रेसी भी पीछे नहीं है।  वह भी भाजपा के कई कार्यकर्ताओं से संपर्क साधकर कांग्रेस ज्वाइन कराने का काम कर रहे हैं। इस तरह से दोनों ही प्रमुख दल चुनाव से पहले जोड़तोड़ कर नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने में हैं। सांवेर विधानसभा सीट के लिए तीन नंवबर को उपचुनाव होना है। उपचुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। आमना-सामना कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच है। एक कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए तो दूसरे भाजपा छोड़ कांग्रेस में घर वापसी की। मुकाबला तुलसीराम सिलावट और प्रेमचंद गुड्डू के बीच हो रहा है, लेकिन इस बीच जोड़तोड़ की राजनीति सांवेर में देखने को मिल रही है। मनाने और नाराजगी के दौर के बीच पार्टी में तोडफ़ोड़ करने का काम दोनों ही प्रमुख दल कर रहे हैं। दल बदलने का खेल सांवेर में लगातार जारी है। क हीं भाजपा कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़कर पार्टी की सदस्यता दिला रही है तो कहीं कांग्रेस नेता भाजपा कार्यकर्ताओं को तोड़  कांग्रेस ज्वाइन करा रहे हैं। सांवेर की जनता भी नेताओं की इस जुगलबंदी को खूब देख रही है। चुनाव से पहले अहम मुद्दों को छोड़ पार्टी ज्वाइन कराने पर नेता अहम ध्यान दे रहे हैं। जो कल तक भाजपाई थे वो सांवेर चुनाव में कांग्रेस हो गए और जो कांग्रेसी थे, वह अब भाजपाई हो गए हैं। जोड़तोड़ की राजनीति के बीच नेता चुनावी मुद्दों से भटक भी गए हैं।