तो आइए जानते हैं इस महान राजमाता महारानी अहिल्याबाई होलकर के बारे में –
लोकमाता अहिल्याबाई होलकर
पूरा नाम- अहिल्याबाई खंडेराव होलकर
जन्म- 31 मई 1725
जन्म स्थान - ग्राम चौंढी, जामखेड , अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत
पिता- मान्कोजी शिंदे धनगर
माता - शुशीलाबाई
पति- खंडेराव होलकर
ससुर - सूबेदार मल्हारराव होलकर
पुत्र- मालेराव होलकर
पुत्री - मुक्ताबाई
घराना - होल्कर
राजवंश - मराठा साम्राज्य
धर्म - हिंदू , धनगर
मालवा साम्राज्य- मालवा राज्य की महारानी
शासनावधि- 1 दिसंबर 1767 - 13 अगस्त 1795 )
राज्याभिषेक- 11 दिसंबर, 1767
पूर्वज - माळेराव होल्कर
उत्तराधिकारी - तुकोजीराव होल्कर
पति का निधन- पति की मौत कुंभेर युद्ध के दौरान 1754 में हुई थी।
देहांत- 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी।
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????जीवन परिचय
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म ग्राम चौंढी, जामखेड , जनपद- अहमदनगर, महाराष्ट्र के एक साधारण परिवार में था। उनके पिता मान्कोजीराव शिंदे धनगर समाज से थे और गाँव के पाटिल थे।
उनकी भौतिक शिक्षा -दीक्षा बहुत ही साधारण लेकिन संस्कार की शिक्षा बहुत ऊँची थी। उनकी जीवन बहुत साधारण तरीेके से गुजर रहा था।
लेकिन भाग्य ने एक दिन करवट बदला ,श्री मन्त सूबेदार मल्हार राव होल्कर उस समय जो पेशवा बाजीराव के सेना में एक कमांडर के रूप में नियुक्त थे, एक दिन पुणे जा रहे थे और रास्ते में चौंढी गाँव में अचानक उनकी नज़र अहिल्या बाई पर पड़ी जो एक मंदिर में सेवा का कार्य करती और आरती गाती थी, उसी से प्रभावित होकर , मल्हार राव ने उन्हें अपनी बहु बनाने का मन बना लिया था।
अहिल्याबाई 10 वर्ष की कम उम्र में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं।
सन् 1745 में अहिल्याबाई को पुत्र हुआ जिसका नाम मालेराव होलकर और तीन वर्ष बाद एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम मुक्ताबाई रखा गया।
अहिल्याबाई पर मुसीबत की घड़ी तब घिर आयी जब वर्ष 1754 में कुम्भेर के युद्ध के दौरान उनके पति खांडेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हुए।
अहिल्याबाई उनतीस (29 ) वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं।
इसके 12 साल बाद ही उनके ससुर मल्हार राव होल्कर की मृत्यु हो गयी।
वह जब 42 -43 वर्ष की थीं, तब ही उनके पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, तभी दौहित्र नत्थू उनका साथ छोड़ दिया।
उसके चार वर्ष पश्चात् ही उनके दामाद यशवंतराव फणसे की मृत्यु हो गयी और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई।
अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को 1767 वर्ष में अपना सेनापति नियुक्त किया।
विकास एवं निर्माण कार्य में योगदान
वह एक न्याय प्रिय रानी थीं।
चाहे अमीर हो चाहे गरीब सबको एक समान न्याय की व्यवस्था का प्रावधान था, उचित समय व कम खर्च पर न्याय दिलाने हेतु उन्होंने जगह-जगह पर न्यायालय स्थापित किए थे।
वे स्वयं अंतिम निर्णय करती थीं तथा निर्णय करते समय सत्य के प्रतीक के रूप में मस्तक पर सोने से बने शिवलिंग धारण करती थी।
रानी अहिल्याबाई अपनी राजधानी महेश्वर ले गईं। वहां उन्होंने 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। माहेश्वर, साहित्य, संगीत, कला और उद्योग के लिए जाना जाता था।
महेश्वर किला
हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के कोने-कोने तक उन्होंने इस पर खूब पैसा खर्च किया। काशी, गया, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनारायण,सोमनाथ, रामेश्वर और जगन्नाथ पुरी के ख्यात मंदिरों में उन्होंने खूब निर्माण कार्य करवाए।
रानी अहिल्याबाई ने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर, गया में विष्णु मन्दिर बनवाये।
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर हिंदुस्तान के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए।
घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया , मार्ग बनवाए-सुधरवाए।
अहिल्या घाट (बनारस )
भूखों के लिए अन्यक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं।
मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन करने की व्यवस्था किया ।
आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह माया का उन्होंने सर्वदा परित्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं।
अपने जीवन की अंतिम साँस तक उन्होंने अपना जीवन लोगो की भलाई के काम में समर्पण कर दिया।
ये एक ऐसी परंपरा की नींव रखीं थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और जिसका अनुपालन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया।
उनके जीवनकाल में ही उन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों से देखा ही था।
जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी और शासन- व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। ऐसे समय में प्रजाजन साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में अपना जीवन बिता रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति ही थी, न ही न्याय पर विश्वास। उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया, और बहुत किया। वह कभी भुलाया नहीं जा सकता है ।
इंदौर उस समय एक छोटे से गांव था उनके 30 साल के शासन में फलते-फूलते शहर में तब्दील हो गया। अहिल्याबाई ने ही मालवा में किले और सड़कें बनवाने का काम किया।
इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव मनाया जाता है।
अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।
उनके शासन के दौरान सभी उद्योग फले-फुले और किसान भी आत्म-निर्भर थे।
ऐनी बेसंट लिखती हैं, “उनके राज में सड़कें दोनों तरफ से वृक्षों से घिरी रहती थीं। राहगीरों के लिए कुएं और विश्रामघर बनवाये गए। गरीब, बेघर लोगों की जरूरतें हमेशा पूरी की गयीं। आदिवासी कबीलों को उन्होंने जंगलों का जीवन छोड़ गांवों में किसानों के रूप में बस जाने के लिए मनाया। हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के लोग सामान भाव से उस महान रानी के श्रद्धेय थे और उनकी लम्बी उम्र की कामना करते थे।
कहते हैं कि रानी अहिल्याबाई के स्वप्न में एक बार भगवान् शिव आये। वे भगवान शिव की भक्त थीं और इसलिए उन्होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
अहिल्या बाई का कुछविशेष कार्य -
आलमपुर (म.प्र) - हरिहरेश्वर, बटुक, मल्हीमर्थखंड, सूर्य, रेणुका, राम हनुमान मंदिर, श्रीराम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, मारुति मंदिर, नरसिंह मंदिर, खंडो मार्तंड मंदिर, मल्हारराव का स्मारक
अमरकंटक- श्री विश्वेश्वर मंदिर, कोटिथीर्थ मंदिर, गोमुखी मंदिर, धर्मशाला, वंश कुंड
अम्बा गाँव - मंदिर के लिए दीपक
आनंद कानन - विश्वेश्वर मंदिर
अयोध्या (U.P) - निर्मित श्री राम मंदिर, श्री त्रेता राम मंदिर, श्री भैरव मंदिर, नागेश्वर / सिद्धनाथ मंदिर, शरयू घाट, कुआं, स्वर्गद्वारी मोहताजखाना, धर्मशालाएँ
बद्रीनाथ मंदिर (यूपी) - श्री केदारेश्वर और हरि मंदिर, धर्मशाला (रंगदाटी, बीदरचट्टी, व्यासगंगा, तंगनाथ, पावली), मनु कुंड (गौरकुंड, कुंडचारी), देव प्रयाग में उद्यान और गर्म पानी का कुंड, गायों के लिए पादरी भूमि।
बीड - एक घाट का जिर्णोधार।
बेलूर (कर्नाटक) - गणपति, पांडुरंग, जलेश्वर, खंडोबा, तीर्थराज और अग्नि मंदिर, कुंड
भानपुरा - नौ मंदिर और धर्मशाला
भरतपुर - मंदिर, धर्मशाला, कुंड
भीमाशंकर - गरीबखाना
भुसावल - चांगदेव मंदिर
बिट्ठुर - भ्रामघाट
बुरहानपुर (एमपी) - राज घाट, राम घाट, कुंड
चंदवाड वैपगाँव - विष्णु मंदिर और रेणुका मंदिर
चौंडी - चौदेश्वरदेवी मंदिर, सिनेश्वर महादेव मंदिर,
अहिल्येश्वर मंदिर, धर्मशाला, घाट,
चित्रकूट - श्री रामचंद्र का प्राणप्रतिष्ठा
Cikhalda - अन्नक्षेत्र
द्वारका (गुजराथ) - मोहताजखाना, पूजा घर और पुजारी को कुछ गाँव दिए
एलोरा -ग्रिशनेश्वर रेड स्टोन का मंदिर
गंगोत्री - विश्वनाथ, केदारनाथ, अन्नपूर्णा, भैरव मंदिर, कई धर्मशालाएँ
गया (बिहार) - विष्णुपद मंदिर
गोकर्ण - रेवलेश्वर महादेव मंदिर, होल्कर वाड़ा, बगीचा और गरीबखाना
ग्रुनेश्वर (वेरुल) - शिवालय तीर्थ
हंडिया - सिद्धनाथ मंदिर, घाट और धर्मशाला
हरिद्वार (उत्तराखंड) - कुशावरथ घाट और एक विशाल धर्मशाला
हृषिकेश - कई मंदिर, श्रीनाथजी और गोवर्धन राम मंदिर
इंदौर - कई मंदिर और घाट
जगन्नाथ पुरी (ओरिस) - श्री रामचंद्र मंदिर, धर्मशाला और उद्यान
जलगाँव - राम मंदिर
जामघाट - भूमि द्वार
जामगाँव - रामदास स्वामी मठ के लिए दान दिया
जेजुरी - मल्हारगौतेश्वर, विठ्ठल, मार्तंड मंदिर, जनाई महादेव और मल्हार झीलें
कर्मनासिनी नदी - पुल
काशी (बनारस) - काशी विश्वनाथ मंदिर, श्री तारकेश्वर, श्री गंगाजी, अहिल्या द्वारकेश्वर, गौतमेश्वर, कई महादेव मंदिर, मंदिर घाट, मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेघ घाट, जनाना घाट, अहिल्या घाट, उत्तरकाशी धर्मशाला, रामेश्वर, रामेश्वर, रामेश्वर, रामेश्वर शीतला घाट
केदारनाथ - धर्मशाला और कुंड
कोल्हापुर - मंदिर पूजा की सुविधाएँ
कुम्हेर - वेल एंड मेमोरियल ऑफ प्रिंस खंडेराव
कुरुक्षेत्र (हरियाणा) - शिव शांतनु महादेव मंदिर, पंचकुंड घाट, लक्ष्मीकुंड घाट
महेश्वर - सैकड़ों मंदिर, घाट, धर्मशालाएँ और घर
ममलेश्वर महादेव हिमाचल प्रदेश - लैंप
मानसा देवी - सात मंदिर
मंडलेश्वर - शिव मंदिर घाट
मिरी (अहमदनगर) - 1780 में भैरव मंदिर
नईमबार (म.प्र) - मंदिर
नंदुरबार - मंदिर, खैर
नाथद्वारा - अहिल्या कुंड, मंदिर, खैर
नीलकंठ महादेव - शिवालय और गोमुख
निमिषारण्य (उ.प्र।) - महादेव माड़ी, निमसर धर्मशाला, गो-घाट, वक्रतुरी कुंड
निमगाँव (नासिक) - कुण्ड
ओंकारेश्वर (सांसद) - ममलेश्वर महादेव, अमलेश्वर, त्रयंबकेश्वर मंदिर (जिरनोधर), गौरी सोमनाथ मंदिर, धर्मशाला, कुएँ
ओजर (अहमदनगर) - 2 कुएं और कुंड
पंचवटी, नासिक - श्री राम मंदिर, गोरा महादेव मंदिर, धर्मशाला, विश्वेश्वर मंदिर, रामघाट, धर्मशाला
पंढरपुर (महाराष्ट्र) - श्री राम मंदिर, तुलसीबाग, होल्कर वाडा, सभा मंडप, धर्मशाला और मंदिर के लिए चांदी के बर्तन दिए, जिसे बागीराव कुएं द्वारा जाना जाता है।
पिम्पलस (नासिक) - कुंड
प्रयाग (इलाहाबाद यूपी) - विष्णु मंदिर, धर्मशाला, उद्यान, घाट, महल
पुणे - घाट
पूनमबे (महाराष्ट्र) - गोदावरी नदी पर घाट
पुष्कर - गणपति मंदिर, धर्मशाला, गार्डन
रामेश्वर (TN) - हनुमान मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर, धर्मशाला, वेल, गार्डन आदि।
रामपुरा - चार मंदिर, धर्मशाला और मकान
रावेर - केशव कुंड
सकरगाँव - कुंड
सम्भल - लक्ष्मी नारायण मंदिर और दो कुएँ
संगमनेर - राम मंदिर
सप्तश्रृंगी - धर्मशाला
सरधना मेरठ - चंडी देवी मंदिर
सौराष्ट्र (गुज़) - 1785 में सोमनाथ मंदिर। (जिरनोध और प्राण प्रतिष्ठा)
अहमदनगर जिले के सिद्धटेक में सिद्धिविनायक मंदिर का आंतरिक गर्भगृह
श्री नागनाथ (दारुखवन) - 1784 में पूजा शुरू की
श्रीशैलम मल्लिकार्जुन (कुरनूल, एपी) - भगवान शिव का मंदिर
श्री शंभु महादेव पर्वत शिंगनापुर (महाराष्ट्र) - खैर
श्री वैजनाथ (पराली, महा) - 1784 में बैजनाथ मंदिर का जिर्णोधार
श्री विघ्नेश्वर - दीपक
सिंहपुर - शिव मंदिर और घाट
सुलेश्वर - महादेव मंदिर, अन्नक्षेत्र
सुल्तानपुर (खानदेश) - मंदिर
तराना - तिलभांडेश्वर शिव मंदिर, खेड़ापति, श्रीराम मंदिर, महाकाली मंदिर
तेहरी (बुंदेलखंड) - धर्मशाला
त्र्यंबकेश्वर (नासिक) - कुशावरथ घाट पर पुल
उज्जैन (म.प्र।) - चिंतामन गणपति, जनार्दन, श्रीलाला उर्मोत्तम, बालाजी तिलकेश्वर, रामजानकी रास मंडल, गोपाल, चिटनीस, बालाजी, अंकपाल, शिव और कई मंदिरों, 13 घाटों, कुओं और कई धर्मशालाओं आदि।
वाराणसी, काशी विश्वनाथ मंदिर 1780.
वृंदावन (मथुरा) - चैन बिहारी मंदिर, कालियाडीह घाट, चिरघाट और कई अन्य घाट, धर्मशाला, अन्नकस्त्र
वैपगाँव (नासिक) - होलकर वाड़ा और एक कुआँ
देश में स्थान
स्वतंत्र भारत में अहिल्याबाई होल्कर का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्यों की पाठ्य पुस्तकों में अध्याय मौजूद हैं।
अहिल्याबाई होल्कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्होंनें भारत के अलग अलग राज्यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।
मृत्यु
राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका।
13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई।
अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजीराव होल्कर इन्दौर की गद्दी पर बैठा।
एनी बेसंट लिखती हैं, “इंदौर अपनी उस महान और दयालु रानी के लिए जितना शोक मनाये कम था। आज भी उनको सभी अपार सम्मान के साथ याद करते हैं।”
यह एक सत्य के रूप में कहा जा सकता है की “अहिल्याबाई एक न्याय और धर्म से परिपक्व शाशक थीं, हिन्दुस्तान के इतिहास में उन्होंने जो करके दिखाया यह एक बड़ा प्रभावशाली प्रयोग था। राज्य कार्य की मुख्य केंद्र एक उपासना परायण, धर्मनिष्ठ स्त्री के हाथ में आई थी। सारे भारत के इतिहास में यह एक विचित्र प्रयोग ही कहा जाएगा जो स्त्रियाँ निवृत्ति निष्ठ होती हैं, वे राज कार्य भी चला सकेंगी, सोची नहीं जा सकती थी | परन्तु मराठों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जो अहिल्याबाई के हाथ में राज्यसूत्र सौंपा। उन्होंने बहुत अच्छी तरह राज्य चलाया।
शस्त्रबल से दुनिया को जीतने का प्रयास बहुत सारे राजाओं ने किया, लेकिन प्रेम से, धर्म से जिन्होंने दुनिया को प्रभावित किया, उनमें अहिल्याबाई ही एक ऐसी निकलीं जो भारत के सब प्रांतों को धर्म, बुद्धि, प्रेम से जीत सकी। भारत के समूचे ज्ञात इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर का स्थान अद्वितीय है” I
इतिहास में तो राजरानी के बारे में तो बहुत कुछ पढ़ने को प्राप्त हो जाता है लेकिन उनके हमारे समाज में योगदान और लोकप्रियता के अनुसार काफी कम है।अहिल्या बाई हिंदुस्तान में वीरांगनाओं की प्रतीक हैं। उनके अदम्य साहसिक कार्य इस बात को प्रमाणित के लिए पर्याप्त हैं कि हिंदुस्तान की नारि समाज में साहस, सौर्य और समर्पण की भावना आदिकाल से चलती आई है। इनके बारे में जानने का अधिकार बच्चे, युवा या यूँ कहे की हमारे देश के हर नागरिक को है।