(विधायक महोदय के खास लोग हैं गुरुर में... कर रहे हैं खराब व्यवहार...)
एल एन उग्र (स्वतंत्र लेखक)
मो. 9425039071
जी हां पहले मेरा परिचय... राजनीति में कितना है वह देता हूं...मैंने भी राजनीतिक वातावरण को... बहुत नजदीक से जिया... उस दौर में भी राजनीति होती थी परंतु गंदगी नहीं...सौहद्रता कायम रहती थी... गंदगी होती थी... लेकिन इतनी नहीं...जो लोग कहते हैं की राजनीति में गंदगी है... जी नहीं भाई साहब जहां राज + नीति होती है...वहां कतई गंदगी नहीं होती है... लेकिन जहां सिर्फ राजनीति होती है... वहां गंदगी होती है... वर्तमान में भी यही हो रहा है... मैं राजनीति में सेवा देखता था...विधायक आम आदमी होता था...आम आदमी जहां भी चाहे...वहां मिल सकता था... चाय पान की दुकान या चौराहे पर...ना कोई पी ए...न कोई और सीधे संपर्क होता था... शिष्य की परंपरा को अवश्य मैंने देखा है... खैर...आज मैं "डिटेक्टिव ग्रुप रिपोर्ट" दैनिक समाचार पत्र का... पी आर ओ हूँ... कोई समाचार पत्र बड़ा-छोटा नहीं होता है... सब समान है यदि वे मूल उद्देश्य पर है तो...।
मैंने चुनौती स्वीकार की... और सोच सोचा क्यों ना इंदौर की राजनीति के...जो मुख्य चेहरे जन प्रतिनिधि हैं...उनके साथ संवाद स्थापित किया जाए... यहां यह भी उल्लेखनीय है कि... अधिकतम चेहरे जो मंचों पर दिखते हैं... मुस्कुराते हुए... वे वे नहीं होते हैं... जी हां बहुत रुखे चेहरे देखने को मिले हैं...खैर इसी क्रम में मैं...क्षेत्र क्रमांक 5 के विधायक... माननीय श्री महेंद्र हडिया जी से... संपर्क करने हेतु उनके कार्यालय पर गया... एक बार हारडिया जी को कहीं जाना था...वह आए मैंने अपना कार्ड दिया... उन्होंने जेब में रखते हुए कहा...11:00 बजे मिलूंगा... उस दिन उनकी व्यस्तता रही होगी... सो भेंट नहीं हो पाई... दो बार फिर उनसे संपर्क हुआ...लेकिन बात नहीं बनी... पिछले दिवस उनके कार्यालय पर... लगभग 9:30 पर पहुंचा...वहां जो घटना घटी... उसने मुझे लिखने पर मजबूर किया... मैं घटना लगभग जस की तस लिखने की कोशिश करता हूं...शायद उनको पता भी नहीं हो कि... उनके बाद उनके लोग कैसा व्यवहार कर रहे हैं... कार्यालय पर एक सज्जन मिले... उन्होंने मुझसे पूछा...तब मैंने अपना परिचय दिया... उन्होंने कहा आप तो घर पर ही चले जाओ... वहीं मिलेंगे... मैंने कहा भी... नहीं नहीं आएंगे तब मिलूंगा... फिर उन्होंने कहा कि... नहीं नहीं आप वहीं चले जाइए... मैं हार्डिया जी के घर के बाहर जाकर खड़ा रहा...कुछ समय बाद एक सज्जन...अपने किसी साथी के साथ नीचे उतरे... तो उनने मुझसे कहा " कहिए " मैंने कहा "विधायक महोदय से मिलना है" " क्या काम है" मैंने कार्ड देते हुए कहा "मैं एक अखबार से हूं" " हां तो" "अरे भाई मैं एक अखबार स हूँ..."हां तो क्या काम है" बड़े अनमने मन से कार्ड हाथ में लिया... मैंने कहा "अखबार वाले क्यों आते हैं" विधायक जी से मिलना है" तब वे बोले" हां तो काम बताइए ना " मैंने कहा "भाई एक छोटा सा संवाद परिचर्चा करनी है" उन्होंने कहा... चलते-चलते... "नहीं अभी कोई चर्चा नहीं करेंगे" उनके व्यवहार से दुखी होकर...उनके व्यवहार से दुखी होकर मैं बोला "अरे भाई क्या अखबार वालों से विधायक जी मिलेंगे नहीं"..."नहीं मिलेंगे" तब मैंने कहा "कुछ खास कारण" वे बोले" नहीं मिलेगे तो नहीं मिलेंगे" तब मैंने इस फिर से.. उनके व्यवहार से दुखी होकर पूछा..."आपका नाम क्या है सर"? (मैं चाहता तो उन्हें सर नहीं कहता...) तो उन्होंने जिस ठसके... अदा और पावर सेअपना नाम बताया... (तब भी में चौका...) एक विधायक के खास व्यक्ति या पी.ए. का या वो जो भी हो...उनका व्यवहार कैसा होना चाहिए...उन्होंने अपना नाम बताया... हर शब्द पर जोर और पावर की अदा...और गुरुर की बू आ रही थी..."डॉकटर धीरज चौधरी" यूं लगा...कि जैसे में पहली बार "डॉक्टर "शब्द सुन रहा हूं...या फिर वह पहली बार... डॉ रूप में अपना परिचय दे रहे हो...मैं निशब्द हो गया... उनकी शैली पर...मेरा कार्ड उन्होंने लौटाते हुए कहा..." ये उनकी कार खड़ी है...सामने उनका ऑफिस है...वह आए तब मिल लेना... तब मैंने अपनी पहचान बताई... (जो कि मुझे शायद नहीं बताना चाहिए थी...) परंतु उनकी गर्मी अधिक देखी... मैंने कहा "मिस्टर मेरे फादर दो बार के विधायक रहे हैं... पत्रकारिता शोकिया कर रहा हूं..." तब वह थोड़े नरम पड़े...कहने लगे "क्या नाम है उनका"... तब मैंने पिताजी का नाम ना बताते हुए... उनसे कहा कि "मैंने चाय से केतली गरम वाली कहावत सुनी थी" " आज देखने को भी मिली"...तब तक वह सज्जन डॉ...क्ट...र... धी...र...ज... चौ...ध...री... जी... जा चुके थे...मैंने थोड़ी देर वेट किया... और लौटकर...संपादक महोदय को विधायक जी का संवाद साक्षात्कार नहीं होने का और अब नहीं लेने का संदेश दिया...।
शेष फिर...