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चिंतन और संवाद

मोरारी बापू : हाथ में 108 मणके की तुलसी की... कोई भी माला... लेकिन हम तुलसी के रखते हैं

  • 29 Mar 2021

हाथ में 108 मणके की तुलसी की... कोई भी माला... लेकिन हम तुलसी के रखते हैं इसलिए बोल रहा हूँ ...वैष्णवों में .....हाथ में 108 मणके की तुलसी की माला रखो... तो आपके हाथ में वृंदावन है ....
आप आपके कंठ में 108 मणके की या जितने मणके की... तुलसी की माला पहने ...तो आपके कंठ में वृंदावन है .....
आपकी ज़ुबान से समय मिलते ही हरि नाम निकले ...तो ज़ुबान पर वृंदावन है....
हमारे हाथ ...समय मिलते ही ...आखरी व्यक्ति की सेवा करे ...गायों की सेवा करे ...गोवंश की सेवा करें ...ऐसे अकिंचनों की सेवा करे.... हमारे रोम रोम में.... हमारी हर चाल में... हमारे हर कदम में ...वृंदावन है....
कई लोग बोलते हैं ना कि हम उनको उंगली पर नचाते हैं.... दुनिया को उंगली पर नचाने से कुछ नहीं होता ....जिसकी उंगलियां बेरखा के मणके को नचाये .... उसकी उंगली पर वृंदावन है.....
हमारे अयोध्या के कई महात्मा ...त्यागी महात्मा... जटाजूट होते हैं... वो माला भी बड़ी रखते हैं ...और सिर पर बांधते हैं.... हैं ना ?....जब तुलसी की माला सिर पर धारण करें तो सिर पर वृंदावन....
अरे यार... ठाकुर जी को भोग लगाते समय भोग में तुलसी पत्र डाले ....और ठाकुर जी का भोग फिर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.... तो प्रसाद वृंदावन ....
श्री राधे .........
हरि बोल.......
छाप तिलक सब छीनी.... तोसे नैना मिलाइके.....
भगवान श्री कृष्ण का नाम लेते हुए ....गौर हरि का नाम लेते हुए.... जो भी नाम में रुचि आपकी हो ....उसका नाम लेते हुए आंख में से दृग बिंदु निकलने लगे ....तो समझो आंख में वृंदावन आ गया है .....

वृंदावन केवल भूमि नहीं है ....
हर एक साधक की भूमिका है......

रामकथा । मानस वृंदावन