जो स्वीकार कर ले..... कृष्ण ने कितना स्वीकार किया साहब..... इतनी महिलाओं को बंदीग्रह से मुक्त किया.... कौन स्वीकारेगा ?... गोविंद ने सबका स्वीकार किया....
मैं कहता रहता हूँ .... सुधारने की जरूरत नहीं ...स्वीकार करने की जरूरत है ...कोई कैसा भी हो... तुम यदि बड़े हो और सामने वाला कोई मलीन है तो तुम्हारी सिद्धि से उसको पवित्र कर दो ना....
हटो.. हटो... भागो ..भागो.. ऐसा क्यों करते हो ?...उसको पवित्र कर दो ...स्वीकार करो ....
कौन सुधरा है यहां ?... सुधार सुधार करो ...कोई सुधरा नहीं है ....स्वीकार करो.....
मुझे कई लोग कहते हैं बापू ... अब कथा बंद करो ना... इसमें कोई सुधरे ऐसा नहीं है....
तू तो श्री गणेश कर ....तू तो शुरुआत... एक तेरे से तो शुरू कर ...एक तो कम हुआ ....
लेकिन मेरा ...मिशन शब्द ठीक नहीं है अपने लिए... सुधारने की कोई सपने में भी नहीं.....
स्वीकार कर लो ...जैसे हो कुबूल... बस.... बाहू पसार रहो ...आ जाए सब ....महापुरुषों ने यही तो किया ....
देखो आप मंत्र जाप करो तो कितना करना पड़ता है ...भूमिशयन करना पड़ता है.... जो नियम से मंत्र जाप करो तो.... कितने कितने लक्षण लागू होते हैं.... भूमि शयन करो ...संयम पालो ...एक टाइम खाओ... गुरु से मंत्र लो.... मौन रखो... भूमि शुद्ध करो... कितने कितने.....
और गौरांग कहते हैं ...कैसे भी हो ...ऊर्द्वबाहु होकर "हरि बोल"....
साधु पुरुष के मुख से निकला "हरि बोल" त्रिभुवन को दीक्षित कर देता है... त्रिभुवन को दीक्षा दे देता है उसके मुख से निकला ....एक व्यक्ति नहीं.... तीनों भुवन... साधु मुख से निकला हुआ होना चाहिए ....जिसने मंत्र को शुद्धता से प्राप्त किया ....मंत्र सिद्धि को भी अर्जित कर ली .....
और ऐसा महापुरुष जब कोई मंत्र उच्चारण करता है तब..... आप 500 साल पहले का साहब.... कोई संख्या कम नहीं रहती थी गौरांग के साथ.... हजारों लोग ऊर्द्वबाहु होकर नाचते थे साथ ....और उसके बाद बिलग बिलग धारा में ....अमेरिका में भी जब हरे कृष्ण का वो शुरू हुआ तो झुंड के झुंड निकलते थे ....भगवान के नाम की महिमा थी ये साहब .....
राम कथा । मानस वृंदावन