1.....वेदो नित्यमधीयतां....
हमारे जैसे संसारी जीवों को वेद का नित्य पाठ करना... स्वाध्याय करना चाहिए... मैंने जब इसकी विस्तृत व्याख्या की होगी तब कहा होगा कि यहां वेद माने अपना अपना इष्ट ग्रंथ ...आप रामचरितमानस के आश्रित है तो उसका वो करो ...ये वेद है... अरे वेद क्या... मानस की आरती वेद उतारता है.... कोई भगवत गीता को इष्ट माने ... कई दुनिया में धर्म है जो अपने अपने इष्ट ग्रंथ का निरंतर अध्ययन करें ...पाठ करें ...पारायण करें... स्वाध्याय करें....
अब राम नाम क्या है ?..तुलसी तो कहते हैं मेरा गुरु राम नाम है ...मेरा धर्म राम नाम है... मेरा वेद राम नाम है.... मेरा मंत्र राम नाम है... मेरा सब कुछ राम नाम है ...और मानस में कहते हैं ये राम नाम वेद का प्राण है... वेद निष्प्राण हो जाए यदि राम निकाल दिया जाए... यदि कृष्ण निकाल दिया जाए ...यदि शिव निकाल दिया जाए... यदि परम को निकाल दिया जाए ....
इसलिए मानस का... गीता का ...भागवत जी का ...कोई भी ग्रंथ हो ....जो अपने-अपने धर्म के इष्ट ग्रंथ हो ...पाठ करें.....
लेकिन नित्य वेद का ...यानि राम नाम का निरंतर स्मरण तो माँ जानकी करती हैं.... जो राम नाम रूप वेद का निरंतर वो करती है.... (गोस्वामीजी कहते हैं)मेरे बारे में उसको पूछ लीजिए कि मैं तुम्हारा नाम लेकर अपना काम निकालने वाला सही हूं ...कि गलत हूं... उसका वो बताएं.......
2...बुधजनैर्वादः परित्यज्यताम्....
दूसरा सूत्र ...जो समझदार है ...बुध जन है... पंडित है... विद्वान है ...माहिती के रूप में भी जिसके पास ज्यादा सामग्री है ...उसके साथ कभी वाद-विवाद में मत उतरना.... और वो काम करते हैं बुद्धिमतांवरिष्ठं श्री हनुमान जी..... मैं तो कहता हूँ छोटे-छोटे अबोध के साथ भी वाद-विवाद में मत करना....
जो विद्वान है उसके साथ वाद विवाद ना करे ऐसा हनुमान है ....उसको मेरे बारे में पूछ लीजिए .....
3.....प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यतां.....
ये भरत लालजी जो है ये रोज पादुका का पूजन करते हैं... पादुका कभी स्थूल नहीं होती ....आकार स्थूल है.... बुद्ध पुरुष की पादुका सदैव अचेतन और बहुत सूक्ष्म होती है... प्रश्न आस्था का है ....
भरत लाल जी निरंतर पादुका का पूजन करते हैं... आप उसको पूछ लीजिए मेरे बारे में.....
4....प्रतिदिनं भिक्षौषधं भुज्यतां
रोज भिक्षा के रूप में...भिक्षा औषधि है ...ऐसा मानकर भोजन करो ...युक्त आहार... सम्यक आहार ...वो है लक्ष्मण.... कंदमूल फल लेने जाते हैं ...ठाकुर को देते हैं... प्रभु खा लें....
नहीं खाऊंगा भिक्षा तो ठाकुर को अच्छा नहीं लगेगा... इसलिए भिक्षावृत्ति को औषधि लेना ही चाहिए... जागरूक पुरुष को भी औषधि लेना चाहिए.... वही जागृत बेहोश हो जाए तो कोई दूसरा औषधि लाता है....
5....एकान्ते सुखमास्यतां....
ये शत्रुघ्न है ...दिखता नहीं ये आदमी... किस आड़ में छुपा रहता है ...एकांत में.... मानस में कम दिखा ...प्रगट ही नहीं होता है.....
तो इन पांचों को पूछ करके आप निर्णय कीजिए....
।। राम कथा ।।मानस बिनय पत्रिका ।