DGR @ एल.एन.उग्र (PRO )
अपराध होने के पीछे आपकी नजरों में क्या कारण है?
देखिए मेरा ऐसा मानना है कि समाज और अपराध दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य जो है उसमें स्वाभाविक रूप से दोनों ही प्रवृत्ति होती है। अपराधिक प्रवृत्ति होती है और सात्विक प्रवृत्ति भी होती है। एक बड़ा अच्छा उदाहरण है बहुत पहले लगभग 30 से 40 साल पहले मुंबई में एक रात पूरा ब्लैक आउट हुआ था ,तो बाद में अखबार ने लिखा था कि जो जन सामान्य है, सामान्य व्यक्ति जो है, वह भी चोर और लुटेरा हो गया था डकैत हो गया था। किंतु यह मानवीय प्रवृत्ति है अब हमारा जो समाज है, हमारे धर्म गुरु हैं, वह सब इसको किस प्रकार से देखते हैं। इस तरह से नियंत्रण का प्रयास करते हैं।अपराध एक सामाजिक बुराई है और इसमें सुधार मात्र पुलिस के कारण या पुलिस से नहीं हो सकता है। यह एक सामाजिक समस्या है हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में बदलाव करना पड़ेगा। हमारे जो भी धार्मिक गुरु हैं जो भी प्रवचन करनेवाले हैं ,उन्हें अपने क्षेत्रों के अंदर अलग-अलग स्तर पर लोगों को समझाइश देना होगी। तभी संभव है कि अपराध में कमी आए और समाज में परिवर्तन आए।
वर्तमान में शहरी थाना क्षेत्र - ग्रामीण थाना क्षेत्र की कार्य प्रणाली में क्या अंतर आया है ?
इंदौर शहर में कमिश्नर प्रणाली लागू होने से कार्यपालक दंडाधिकारी के अधिकार उन्हें मिले हुए हैं, तो इंदौर कमिश्नर प्रणाली अलग हे। क्योंकि इंदौर से देहात कटा हुआ है ,देहात की जो पुलिस की कार्यप्रणाली है वह एक सामान्य पुलिस की जो कार्यप्रणाली होती है वही है।
ग्रामीण क्षेत्र में किस तरह के अपराध अधिक होते हैं ?
ग्रामीण क्षेत्र में सभी प्रकार के अपराध है होते हैं ,बॉडी संबंधी अपराध और ग्रामीण परिवेश में संपत्ति संबंधी अपराध भी होते हैं। वर्तमान की बात करें तो जमीन संबंधी काफी शिकायतें आ रही है। लगभग हर दिन एक व्यक्ति इस तरह की शिकायत लेकर हमारे पास आता है। हमने पैसा दे दिया है एग्रीमेंट कर लिया है जिस व्यक्ति ने हमें जमीन बेची है वह उसे जमीन को देने से इंकार कर रहा है । तो यह बड़ा जटिल प्रश्न है इस को विधी अनुसार निराकरण करने का प्रयास करते हैं।
क्या ग्रामीण परिवेश में साइबर संबंधी अपराध की संख्या बढ़ रही है ?
देखिए ग्रामीण थाना क्षेत्रों के अंदर जो पूरे देश के साइबर बढ़ रहा है ,उसी अनुरूप में उसी अनुपात में ग्रामीण क्षेत्र में भी साइबर अपराध की संख्या बढ़ रही है। तो हम यह कह सकते हैं कि बहुत ज्यादा साइबर अपराध ग्रामीण क्षेत्र में नहीं है।
साइबर अपराध होने की स्थिति में क्या दक्ष स्टाफ ग्रामीण थानों पर उपलब्ध है ?
हमारे ग्रामीण थाना क्षेत्र में एक साइबर सेल है उसमें हमारे ट्रेंड कर्मचारी लोग हैं, वह लोग कार्य कर रहे हैं।और साइबर अपराध होने की स्थिति में यह पूरी टीम अपनी पूरी ताकत से इस पर काम करती है और सफलता भी साइबर सेल को मिलती है।
क्या ग्रामीण थाना क्षेत्र में बलों की कमी महसूस की जाती है ?
हां हम यह कह सकते हैं कि ग्रामीण थाना क्षेत्र जो है और वहां के जो थाने हैं उन पर बल की कमी कह सकते हैं। क्योंकि अभी शहरी क्षेत्र का पूरी तरह से बंटवारा हुआ , तो अभी हमारी पुलिस लाइन बनी नहीं है। हमारे यहां ट्रैफिक थाना क्षेत्र भी चिन्हित नहीं है, हमारी तमाम जो ब्रांच होती हैं वह भी ठीक नहीं है। फिर भी अभी बंटवारे का शैशव काल है। पुलिस अधीक्षक का कार्य भी बढ़ जाएगा। मैं ऐसा मानता हूं की बहुत जल्दी ही अच्छी स्थिति हो जाएगी, तब पुलिसिंग की व्यवस्था सुचारु रुप से चल पाएगी।
ग्रामीण थाना क्षेत्रों का क्षेत्रफल की दृष्टि से विस्तृत होता है और बल की कमी होती है कंट्रोल कैसे होता है ?
मेरा मानना है कि पुलिंग का सिस्टम है, जो हमारी ग्राम रक्षा समिति है, जवानों का बल है, डीजे साहब ने माइक्रोबिट सिस्टम लागू किया हुआ है, सिस्टम में हमारे अधिकारी कर्मचारी लगातार अपने क्षेत्र में जा रहे हैं। सूचना हमारे पास में आती है तो उस पर हम लोग काफी हद तक अपराध को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, और इसमें सफलता भी मिलती है।
क्या बेरोजगारी के कारण अपराध बढ़ रहे हैं ?
इस विषय में मेरा मानना है कि ऐसा कोई विषय परिलक्षित नहीं होता है ,कि हम कह सके कि बेरोजगारी के कारण अपराध में बढ़ोतरी हो रही है या अपराध बढ़ रहे हैं।
ड्रग्स की रोकथाम के लिए ग्रामीण पुलिस के प्रयास ?
मेरा ऐसा मानना है कि ड्रग्स अनेकों प्रकार के होते हैं, शराब भी ड्रग्स की तरह हैं, शासन भी उसको लाइसेंस देकर चला रहे हैं, गांजा अफीम चरस जो दूसरे तरह के डर से ड्रक्स है। उसमें सुधार के लिए हम लोग प्रयास करते हैं और आवश्यकता होने पर उस पर हम कार्यवाही भी करते हैं। समय-समय पर हम इस बुराई के खिलाफ स्कूलों में बच्चों को कॉलेज के बच्चों को अवेरनेस कर जानकारी देने का प्रयास करते हैं और ग्रामीण क्षेत्र में ड्रग्स जैसे व्यापार की रोकथाम के लिए काफी ग्रामीण पुलिस के द्वारा किया जाता है ।
ग्रामीण थाना क्षेत्र में क्या राजनीतिक हस्तक्षेप को भी आप देखते हैं ?
मेरा ऐसा विचार है कि ग्रामीण क्षेत्र की जो पुलिस है और हमारे यहां किसी तरह की भी राजनीतिक हम नहीं देखते हैं, पुलिस के साथ कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं है पुलिस अपना काम करती है। विधि अनुसार विधि सम्मत पुलिस को कार्य करना होता है। वही पुलिस करती भी है।
ग्रामीण क्षेत्र जो है इसमें पिछले वर्ष की तुलना में चोरी डकैती लूटपाट की घटनाओं का ग्राफ कितना है ?
आपकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहूंगा कि, इन सब घटनाओं के इस तरह के अपराध का जो ग्राफ पिछले साल की तुलना में काफी कम है और पुलिस के लगातार प्रयास के माध्यम से यह हमारे द्वारा एक विशेष उपलब्धि है ,कि इस तरह के अपराध पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है।
ग्रामीण परिवेश में सामाजिक सुधार के लिए ग्रामीण पुलिस के प्रयास ?
सामाजिक परिवेश को सुधारने के लिए पुलिस अकेली कुछ नहीं कर सकती है। पुलिस भी समाज से ही आती है इसलिए समाज सुधार के लिए सबको मिलजुल कर काम करना होगा। जब समाज सुधार हो पाएगा, पुलिस अपना काम करती है समाज को भी अपने दायित्व के अनुसार काम करना चाहिए ,सभी स्तर पर सुधार के प्रयास किया जाए तो निश्चित रूप से समाज में सुधार आएगा।
आपने पुलिस विभाग को ही क्यों चुना ?
पुलिस विभाग को चुनने के पीछे मेरा ऐसा कोई बहुत बड़ा आईडिया नहीं था कि पुलिस ही चुने। हम तो पी एस सी की परीक्षा दिए थे, उसमें हम सिलेक्ट हो गए और जब सिलेक्शन हो गया तो फिर हमने इस विभाग को ही जीवन का ध्येय मान लिया। तन और मन से इसमें समाहित होकर पुलिस की सेवा कर रहे हैं। यह एक अच्छा प्लेटफार्म है और मैं लोगों से कहा भी करता हूं, आपको भी बताना चाहता हूं कि " वी आर नॉट गुड गॉड" "बट नॉट लेस देन गॉड "। "हम ईश्वर नहीं है" " लेकिन ईश्वर से कम भी नहीं है"। क्योंकि सभी ने देखा होगा आदमी पुलिस को पानी पी पीकर गाली देता है। लेकिन जब तकलीफ में होता है तो सबसे पहले पुलिस के पास ही आता है। इससे अच्छी सेवा कोई और हो भी नहीं सकती है।
भ्रष्टाचार को आप किस तरह से देखते हैं ?
देखें जैसा कि मैंने आपको बताया है, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो समाज है उसी समाज से मनुष्य आया है, हर चीज समाज से ही आई है। भ्रष्टाचार एक शब्द समाज में कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, स्वीकार होना भी नहीं चाहिए। लेकिन हम इस बात का चिंतन करें,कि हम अपने बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं। क्या हम नैतिक शिक्षा अपने बच्चों को दे रहे हैं ? क्या हम बच्चों को बोल रहे हैं कि बेटा सुबह उठकर माता-पिता को प्रणाम करो ?क्या हम बता रहे हैं कि दादा दादी नाना नानी का सम्मान करो ? तो एक समय था जब कुटुंब व्यवस्था थी । उस समय सामाजिक परिवेश अलग था संयुक्त परिवार की व्यवस्था थी वह अब एकल परिवार में आ गई है। तो सामाजिक बंधनों में जो शिथिलता आ रही है ,मेरा ऐसा मानना है कि उसी से भ्रष्टाचार आ रहा है। तो मैं कह सकता हूं कि भ्रष्टाचार तो एक सामाजिक अनिवार्य बुराई है। इसका निवारण सामाजिक स्तर पर ही करना पड़ेगा।
हमारे " सतर्क रहें सजग रहें अभियान " पर आप क्या कहना चाहेंगे , यह हमारे अखबार का संकल्पसूत्र - ध्येयवाक्य है !
मैं यही कहूंगा कि हर नागरिक अपने कर्तव्य का पालन करें ,हमारे यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे संविधान में बाबा साहब ने और बाद के हमारे राजनेताओं ने भी, अधिकारों को अनिवार्य बना दिया कर्तव्य को ऐच्छिक बना दिया। यदि हर नागरिक कर्तव्यों का पालन करने लगे तो मैं ऐसा मानता हूं कि बहुत अच्छा समाज बनेगा। अभी भी बहुत अच्छा समाज है ,और बेहतर बन जाएगा यदि हम सब अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्य का पालन करें तो। और सतर्क रहें यह समय की आवश्यकता है, सजग रहें यह भी समय की आवश्यकता है, यह अभियान आपका जो है यह सराहनीय प्रयास है। यह सफल होना ही चाहिए।
अगर आप पुलिस में ना होते तो कहां होते ?
यह आपने अच्छा प्रश्न किया है मैं ऐसा मानता हूं कि अगर पुलिस में नहीं होता तो अपनी खेती बाडी कर रहा होता और अपने जीवन को परिवार को संचालित कर रहा होता। समाज के मुख्य अंग में होता।