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संवाद और परिचर्चा

संवाद और परिचर्चा : श्री इंद्रेश त्रिपाठी थाना प्रभारी-आजाद नगर

  • 22 Feb 2022
  • "हम जागरूक करते हैं,कि अपराध बुरी बात है छोटे बच्चों को समझाते हैं। आपने देखा अभी गुड टच बैड टच के आधार पर एक बच्ची ने कंप्लेंट की एक थाने में और आरोपी पकड़ा गया और पुलिस हर मोर्चे पर सामाजिक बदलाव के लिए जाकर प्रेरित करती है"
  • "निश्चित रूप से फोर्स अमला  बढ़ा है पावर बढे हैं तो निश्चित रूप से जिम्मेदारियां बड़ी है  तो हम लोग इसे पूरा करने का प्रयास भी कर रहे हैं और आप इसे महसूस भी कर रहे होंगे,कि पब्लिक में पुलिस की उपस्थिति मौजूदगी बढ़ रही है"
  • "जरूरी नहीं कि उसे डंडे  से ही मारा जाए,बातों का , कानून का भय पर्याप्त होता है। अगर किसी ने किसी व्यक्ति की रिपोर्ट की है कि फलां आदमी उसे छेड़ता है, परेशान करता है, कमेंट करता है, या वह गाली दे रहा है उसे पुलिस द्वारा फोन भी कर दे तो इतना भय पर्याप्त होता है।"

DGR @ एल.एन.उग्र (PRO ) 


इंदौर में कमिश्नर प्रणाली जो लागू हुई है इसे आप किस तरह से देखते हैं ?
इंदौर चूंकि महानगर है और जनसंख्या के साथ-साथ यहां पर अपराध भी बढ़ते हैं और अपराधियों पर नियंत्रण के लिए यह आवश्यक था कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू हो और इसके फायदे भी निश्चित रूप से हैं। जैसे 151 में हमारे यहां से 144 के आर्डर पुलिस जारी करेगी और जो प्रतिबंधात्मक कार्यवाही होती है, उसमें अब हमको ही पेश करना है, हमारे यहां पर यह काम होगा और एक ही जगह से केंद्रित होने से इसमें सुविधा से काम हो पाएगा। कार्यवाही जल्दी हो पाएगी जो एनएसए हैं, जिला बदर है, हमको मालूम है कि कौन अमुक व्यक्ति का रिकॉर्ड खराब है, वह खतरनाक है, किसकी अपराधिक प्रवृत्ति है, उस पर नियंत्रण आवश्यक है तो तुरंत इन पर नियंत्रण हो पाएगा।


इससे आम जनता को लाभ मिलेगा ?
अब इस विषय में हमारे द्वारा बोला जाना ठीक नहीं है। जनता हमारे सीधे सीधे संपर्क में है, अधिकारी हमारे बढ़  गए हैं जनता का परीक्षण भी बहुत अच्छा हो रहा है। स्टाफ  भी बढ़ गया है और इसमें सभी की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की जा रही है। तो निश्चित रूप से इसमें पब्लिक को फायदा मिलेगा।


पुलिस प्रशासन में पहले की अपेक्षा और भी अधिक कसावट आएगी ?
निश्चित रूप से फोर्स अमला  बढ़ा है पावर बढे हैं तो निश्चित रूप से जिम्मेदारियां बड़ी है। तो हम लोग इसे पूरा करने का प्रयास भी कर रहे हैं और आप इसे महसूस भी कर रहे होंगे,कि पब्लिक में पुलिस की उपस्थिति मौजूदगी बढ़ रही है। ट्राफिक के मामले में हो अपराध के मामले में हो सामुदायिक पुलिस के मामले में हो ,तो हर मोर्चे पर पुलिस के जिम्मेदारियों में अंतर आ रहा है और सुधार लगातार किया जा रहा है।

नए साल में क्या अपराध का ग्राफ बढ़ा है या कम हुआ है ?
इस विषय में मैं यही कहना चाहूंगा कि अपराधों में अभी निश्चित रूप से कमी तो आई है, क्योंकि हम लोग जब रोज निकलते हैं और नया अमला भी मिला हुआ है तो जब बड़े बड़े अधिकारी और एसीपी साहब , यहां तक कि एडिशनल कमिश्नर साहब, कमिश्नर साहब खुद भी रोड पर निकलते हैं,मौके पर जाते हैं तो निश्चित रूप से प्रभाव दिखाई देता है। छेड़खानी के मामले हो या लड़ाई झगड़े के मामले हो इनमें बहुत कमियां भी आई है।


इंदौर में ड्रग्स का व्यापार बड़ा पैर पसार रहा है इस पर पुलिस प्रशासन किस तरह से सख्ती कर पाएगी?
मेरा ऐसा मानना है कि ड्रग्स के भी बहुत सारे मामले पकड़े हैं। हर जगह कार्यवाही हो रही है, ड्रग्स  के मामले में हर थाने पर कार्यवाही की जा रही है,बल्कि अब तो वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश भी हैं इसे डेवेलप किया जाए,  अपराधी राजस्थान के हो खरगोन के हो या कहीं के भी हो, पूरी लिंक डेवलप करके कार्यवाही की जा रही है थाने में और उसमें हमारी हेल्पलाइन भी जारी हुई है। नारकोटिक्स,क्राइम ब्रांच भी काम कर रही है। सभी थाने काम कर रहे हैं और इसको हमारा प्रयास है  की जड़ से समाप्त करेंगे।


सामाजिक बदलाव के लिए पुलिस की क्या भूमिका रहती है?
अभी कुछ घटना हुई है छोटी बच्ची के साथ छेड़खानी, दुष्कर्म के मामले हैं हम लोग  उन लोगों को समझाते हैं,कुछ सामाजिक संस्थाओं की मदद भी लेते हैं। उन को जागरूक करते हैं सामाजिक सुधार के लिए शिविर भी लगाते हैं अभी आजाद नगर की बातें कुछ लोगों को हमने हमारे वरिष्ठ अधिकारियों से बात करके उनको नशा मुक्ति केंद्र पर  भर्ती किया।  उनको हम जागरूक करते हैं,कि अपराध बुरी बात है छोटे बच्चों को समझाते हैं। आपने देखा अभी गुड टच बैड टच के आधार पर एक बच्ची ने कंप्लेंट की एक थाने में और आरोपी पकड़ा गया और पुलिस हर मोर्चे पर सामाजिक बदलाव के लिए जाकर प्रेरित करती है कि आप गलत व्यवहार ना करें और बच्चों को समझाते हैं, बच्चों के लिए जागरूक करते हैं कि बच्चों का ध्यान रखें जिससे कि इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके।


घरेलू हिंसा के मामले में पुलिस का क्या रोल रहता है ?
घरेलू हिंसा में कई बार यह देखा जाता है कि पति पत्नी के झगड़े हैं उसमें समझाइश देने से भी मान भी जाते हैं,तो हम लोगों की पहली कोशिश होती है कि पति को डांट -डपट कर समझा दे। उसको एक डर रहे  पुलिस का  कि उसको बंद न करें पर उस पर एक डर बना रहे और दोबारा उस से लिखवा कर बांड ओवर करवा कर उसको समझाते हैं जिससे उसका घर भी ना टूटे फिर भी ना माने तो फिर हम समस्त प्रतिबंधात्मक कार्यवाही करते हैं। प्रयास रहता है कि घर परिवार भी ना टूटे और महिला प्रताड़ित भी ना हो। तो कह सकते हैं कि इसमें पुलिस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

एक कहावत है "भय बिना प्रीति नहीं होती है "क्या इसको  आप सही मानते हैं ?
मेरा मानना है कि भय दो चीज का होता है,लोग स्पीड से गाड़ी चला कर जा रहे हैं, छोटा बच्चा गाड़ी चला रहा है,ऐसे में हम उस के पिता को बुलाते हैं, आपका बेटा गाड़ी चला रहा है, एक्सीडेंट हो जाएगा,फिर उसको बैठा लेते हैं  यह एक  भय हो गया। जरूरी नहीं कि उसे डंडे  से ही मारा जाए,बातों का , कानून का भय पर्याप्त होता है। अगर किसी ने किसी व्यक्ति की रिपोर्ट की है कि फलां आदमी उसे छेड़ता है, परेशान करता है, कमेंट करता है, या वह गाली दे रहा है उसे पुलिस द्वारा फोन भी कर दे तो इतना भय पर्याप्त होता है। निश्चित रूप से इन प्रयासों के फायदे मिलते हैं।

आदतन जो अपराधी है उन पर आपका क्या रवैया रहता है  ?
अभी हमारे यहां कुछ घटनाएं हुई है,जो आदतन अपराधी थे उनके खिलाफ रासुका की कार्रवाई की गई कुछ जिला बदर भी हुए हैं बांड ओवर भी कराते हैं और उन्हें एहसास कराते हैं कि अगर तुम गलत काम करोगे उसका नतीजा बुरा होगा।

अगर कोई राजनीतिक हस्तक्षेप प्रशासनिक काम में आता है या किसी अपराधी को छुड़वाने के लिए आपके पास फोन आता है तो आप कैसे देखते हैं, आप क्या करते हैं  ?
 ऐसा देखा जाता है कि उन लोगों की भी कुछ मजबूरी होती है वह हमें फोन करते हैं लेकिन यह हमारा सोचना है कि, जो लीगल है विधि सम्मत है वही कार्यवाही करना है और हमारे द्वारा बताए जाने पर कई बार वह लोग समझ भी जाते हैं, तो ठीक है। नहीं तो फिर हमें कानूनी कार्रवाई के साथ से तो काम करना ही होता है और बाद में उन्हें यह एहसास हो भी जाता है कि यह चीज इस तरह से ही होना थी। तो हम लोग कानून से बंधे हुए हैं। हमारा पहला काम है कि पीड़ित को न्याय दिलाना 


आमजन को आप क्या संदेश देना चाहेंगे  ?
 आमजन को हम यही संदेश देना चाहेंगे कि आप लोग छोटे-छोटे बातों को अपने लेवल पर निपटा लें, किसी तरह का गुस्सा ना करें। अन्य कोई बात है  तो 100 नंबर पर खबर करें। पुलिस को अपना मददगार समझे यह ना समझे कि पुलिस हमारी सुनेगी की नहीं।  हमारे वरिष्ठ अधिकारी हमको हर मीटिंग में प्रोत्साहित करते हैं  इसीलिए पुलिस को अपना मित्र समझे परिवार का सदस्य समझे और जो भी समस्या उसमें घबराए बिल्कुल ना और ना कोई निर्णय स्वयं ले अगर आपके साथ कुछ गलत हुआ है तो आप तत्काल मारपीट ना करें बल्कि सीधे 100 नंबर पर फोन कर दें थाने पर आकर रिपोर्ट करें आपको न्याय मिलेगा।


आमजन  की पहुंच आप तक आसानी से है या कोई प्रतिबंध रहता है ?
आप देख सकते हैं हमारे यहां थाने पर जो भी आता है सीधे हमारे पास तक आ सकता है। हमारे यहां के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं,कोई भी व्यक्ति हो हमें 24 घंटे कभी भी फोन कर सकता है और  इंदौर में सभी थानों पर इस तरह की व्यवस्था है हमारे वरिष्ठ अधिकारी जब सब लोगों से सामान्य रूप से  मिल रहे हैं तो हमारे स्तर पर तो कोई प्रतिबंध है ही नहीं। आमजन आसानी से कभी भी हमसे मिल सकता है शिकायत कर सकता है उसके साथ हम न्याय करने का प्रयास करते हैं।