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संवाद और परिचर्चा

श्री राजेंद्र सोनी, थाना प्रभारी बाणगंगा

  • 26 Apr 2022

हमारे जो वरिष्ठ अधिकारी हैं बहुत संजीदा - संवेदनशील है, कि हमें वरिष्ठ नागरिकों,महिलाओं और बच्चों के लिए पुलिस को बहुत सतर्कता , सावधानी और संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए।
अभी हमारे अधिकारियों ने  दो-तीन मीटिंग  ली है उन मीटिंग में हमने जो पिछले सालों की तुलना में अध्ययन किया तो आईपीसी के अपराधों में गिरावट आने लगी है,अमूमन  पहले अपराध बढ़ते थे ,इस बार अपराध कम हुए हैं। यही कमिश्नरी प्रणाली का प्रभाव है ।
हमारी हंड्रेड डायल सुविधा ऐसी सुविधा है जिसे आप डायल करते हैं । पूरे इंदौर का मैक्सिमम जो रिस्पांस टाइम है मुश्किल से 7 से 12 मिनट है। तो आप समझिए  10 मिनट में पुलिस की सहायता मिल रही है, यह कमिश्नर प्रणाली का लाभ है। 
बॉन्ड ओवर  की कार्यवाही भी बहुत तेजी से कर रहे हैं। एक सामान्य अपराधी को इस बात का एहसास होने लगा है कि,कोई गड़बड़ किया तो मुझे बांड ओवर  के लिए भेजा जाएगा।  तब उसको इस बात का रिलाइज हो जाएगा कि मैं पुलिस के निगाहों  में आ चुका हूं, तो वह बड़ा अपराध करने से बचेगा। यही मुख्य बात है कि कमिश्नर  प्रणाली में अपराध को होने से रोक ले। 
पुलिस प्रशासन में  हर छोटे से लेकर बड़े कर्मचारी तक, सभी का यह प्रयास है,पूरी ताकत लगा रहे  है कि यह जो सिस्टम लागू हुआ है,इसमें बेहतर से बेहतर कर सकें। वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में सुधार निश्चित रूप से हो रहा है।
DGR @ एल.एन.उग्र (PRO )
हमारे शहर में कमिश्नर प्रणाली का प्रयोग किया गया है आप कैसे देखते हैं...?
इंदौर में जो कमिश्नर प्रणाली लागू हुई है । इसे में बहुत सकारात्मक रूप से देखता हूं, यह परिवर्तन बहुत जरूरी था, इस परिवर्तन से शहर के नागरिक को जो अपेक्षा हैं,उनको हम शायद बेहतर तरीके से पूरा कर पाएंगे। बेहतर पुलिसिंग दे पाएंगे। हमारे कमिश्नर साहब, हमारे डीसीपी साहब और सभी अधिकारी इस दिशा में लगातार प्रयासरत भी हैं कि बेहतर पुलिसिंग हो,हर चौराहे हर गली में पुलिस की उपस्थिति हो। बहुत शॉर्ट नोटिस पर और बहुत शॉर्ट ड्यूरेशन मैं पुलिस की अगर किसी को आवश्यकता है तो पुलिस वहां पहुंचे और उचित कार्यवाही करें  ।
पुलिस प्रशासन की कार्यवाही में राजनीतिक हस्तक्षेप कितना होता है ?
नहीं कोई राजनीतिक हस्तक्षेप मेरी नजर में नहीं आया, कि जिसे मैं हस्तक्षेप कह सकूं, वे जनप्रतिनिधि है उनके पास भी पीड़ित व्यक्ति जाता है, वरिष्ठ अधिकारियों के पास  भी आता है हमारे पास भी आता है, उसको लगता है कि यहां मेरी सुनवाई नहीं हो रही है तो वह हमसे बड़े अधिकारी के पास जाता है, क्योंकि जनप्रतिनिधि  का काम है आम आदमी की टच में रहना उनकी बातें सुनना, तो जब कोई पीड़ित व्यक्ति उनके पास पहुंचता है तो यह सामान्य से बात रहती है कि वह हमारे पास आए और यह किसी की मदद हो सकती है तो इसको कम से कम  पुलिस प्रशासन में हस्तक्षेप  मैं  नहीं मानता हूँ  । जनप्रतिनिधि का भी काम है उनके जो क्षेत्र के मतदाता है नागरिक हैं उनकी बात सुने और उनकी मदद करें।
वरिष्ठ जनों की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन का क्या सहयोग होता है?
वरिष्ठ जनों की सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन सालों से प्रयास में है, कि जो सिटीजंस अकेले रहते हैं, जिनके बच्चे बाहर चले गए हैं, उनको हमारे बीट के अधिकारी कर्मचारी जाते हैं हमारे मोबाइल नंबर देकर आते हैं और इनको दो तीन प्रकार की ओर सावधानी के बारे में बताया जाता है।  उनको समझा देते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर वह हमसे संपर्क करें।   
इंदौर में ड्रग्स  का व्यापार बहुत बढ़ रहा है इस पर आपकी क्या टिप्पणी है?
देखिए मेरा ऐसा मानना है कि यह एक सामाजिक बुराई है, और सामाजिक बुराई को हम समाज के द्वारा ही दूर कर सकते हैं, इसकी शुरुआत घर से होती है,  घर में बच्चों को संस्कार कैसे मिल रहे हैं, माता-पिता उनके ऊपर कितना ध्यान देते हैं यदि बच्चे को घर में पूरा समय माता-पिता का नहीं मिल रहा है तो वही अपेक्षा फिर वह अपने दोस्तों में तलाश करता है, और कई बार वह ऐसी तलाश में गलत सोहबत में पड़ जाता है।  और समाज के लोगों को भी यह ध्यान देना पड़ेगा और मोहल्ले पड़ोस का कोई बच्चा भी अगर गलत काम कर रहा है तो उसको उसके माता-पिता को इस बात का आगाह  करना पड़ेगा कि वह आपका बच्चा गलत दिशा में जा रहा है। हम लोग यही कोशिश करते हैं। 
अभी रीसेंट एक केस मेरे पास आया था कि एक 17 साल के लड़के ने एक महिला का पर्स छीना उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी और उसकी बहन उससे मिलने के लिए थाने आई बहन ने बताया कि वह 21 साल की है भाई 17 साल का है। मां बाप है नहीं वह कमाती और भाई के शौक पूरे  करती है।तो मैंने उस लड़की को यहां बैठा कर तथा सामाजिक रूप से जो काम करने वाले लोग हैं उनसे मैंने बात की और कहां  कि इस बच्ची की मदद करें। और एक डॉक्टर साहब है उनको बुलाया फिर उनके यहां उसको नौकरी दिलवाई जिस लड़की को ₹2700 मे काम कर रही थी वह लड़की ₹6000 में काम कर रही है, लड़की मजबूत होगी तो अपने भाई को सुधारने में मदद करेगी। उसकी इच्छा है कि वह उसके भाई को रिहैब सेंटर में भेजे,तो पैसा होगा तो वह उसको वहां भेज सकें। तो हमसे जो मदद हो सकती थी वह हमने कि इस तरह से सामाजिक सुधार में मानवीय आधार पर  हम पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण होती है  ।
सामाजिक बदलाव में पुलिस की क्या भूमिका होती है?
सामाजिक बदलाव में पुलिस की बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मेरा  मानना है कि, समाज सुधार के लिए पुलिस एक बहुत बड़ा व बहुत आवश्यक अंग है। क्योंकि जो मापदंड नियम कायदे कानून  भारत के संविधान में, आईपीसी में, सीआरपीसी में दिए गए हैं, उनको पुलिस ही एक ऐसी एजेंसी है जो आम आदमी पर लागू करती है। इन फोर्स एजेंसी है हम। आप कल्पना कीजिए कि 1 दिन के लिए पूरे शहर से पुलिस हटा ले, ट्रैफिक पुलिस हटा ले, तो क्या कोई लाल सिंगल पर रुकेगा? क्या कोई नियम का पालन करेगा?सड़क पर बैठे मिलेंगे शहर के पूरे लोग। कोई खौफ नहीं रह जाएगा। तो समाज को सुधारना और उसको सही दिशा में  लगातार लेकर चलने का काम पुलिस सालों से करती चली आ रही है।।आज भी कर रही हे और आगे भी करती रहेगी। 
मेरा मानना है कि पुलिस ने मानवीय संवेदनाएं छोड़ी नहीं है  । विगत वर्षों की तुलना में आने वाले वर्षों में लगातार पुलिस इस दिशा में लगातार अपने आप को सुधार करते हुए बहुत अच्छे मुकाम पर हैं। पुलिस के द्वारा बहुत अच्छे-अच्छे काम  किए हैं। आप देखेंगे प्रत्येक थाना में दिन भर में एक न एक कोई अच्छा काम अवश्य ही होता है  ।
आपकी सर्विस के दौरान ऐसा कोई प्रकरण याद आता है जिसमें आपको अपराध ने चौंकाया  ?
जब मैं रिश्तो को तार तार होते हुए देखता हूं, तो मुझे बहुत तकलीफ होती है। मैंने ऐसा कोई रिश्ता नहीं देखा जिसमें उसको दाग ना लगाया हो। यह सोच कर तकलीफ होती है कि, कोई बाप ऐसा कैसे कर सकता है ? कोई बेटी अपने पिता के साथ ऐसा कैसे कर सकती है? क्या दो ही भाई आपस में ऐसा कुछ कर सकते हैं?  अभी एक  पत्नी ने अपने पति को मारकर जमीन में गाड़ दिया? तो यह जो स्थिति है मुझे चौंकाने वाली बात है? लेकिन यह दुनिया है,ऐसे कुकृत्य सालों से होते चले आ रहे हैं और जब इस प्रकार की घटनाएं होती हैं तो मुझे चौंकती है  ।
घरेलू हिंसा में आप किसे दोषी मानते हैं? और अक्सर पुरुषों के खिलाफ झूठे प्रकरण दर्ज हो जाते हैं पुरुष पीड़ित होता है ?
घरेलू हिंसा में मेरा बहुत साफ मानना है कि मेरा भी घर है मेरा भी परिवार है पड़ोसियों के भी घर है और घर घर जोड़कर ही समाज बनता है यह घर घर की कहानी है अब देखेंगे हम जिसको घरेलू हिंसा परिभाषित करते हैं वह 12 घर छोड़कर कहीं ना कहीं कभी ना कभी देखने को मिलती है उसके पीछे तात्कालिक कारण भी होते हैं और सामाजिक कारण भी होते हैं सोशी और इगो प्रॉब्लम कहलाता है कि एक आदमी दिन भर में ₹400 कमाता है   और  वह 180 रुपए का एक क्वार्टर खरीद कर पी जाता है 50 अंडे मछली पर  खर्च कर देता है अब बचे हुए ₹200 में उसे घर भी चलाना है स्कूल के बच्चों की फीस भी देना है अब पत्नी होती है तो वह उसे मारता है लो साहब यह घरेलू हिंसा शुरू हो गयी ईगो की प्रॉब्लम होती है जिसे वह सब परिवार के सदस्य अपना स्वाभिमान समझते हैं जबकि वास्तव में वह अभिमान होता है स्वाभिमान नहीं तीसरी बात रिश्तेदार नाते दारों का अनावश्यक दखल और सबसे ऊपर में कानून मानता हूं कि पारिवारिक संस्कार कैसे हैं रिश्तो के मूल्य कैसे हैं लड़की की शादी जहां हुई है उस लड़की के संस्कार क्या है उस लड़की की  शादी हुई है उस परिवार के संस्कार क्या है एक संस्कारी बच्ची एक असंस्कारी परिवार को भी संस्कारित कर सकती है  यह मेरा अनुभव है और पारिवारिक हिंसा में हम सीधे किसी भी व्यक्ति पर केस दर्ज नहीं करते हैं पहले काउंसलिंग करते हैं और फिर भी अगर किसी महिला की शिकायत है तो हमारे द्वारा उसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है सीधे कोई केस पंजीकृत नहीं होता है परिवारों को टूटने से बचाने का पुलिस का बहुत महत्वपूर्ण उद्देश होता है मेरा ऐसा पक्का  मानना है कि अगर संस्कारी परिवार है तो इस तरह के बहुत कम प्रकरण आएंगे कोई ऐसी समस्या आएगी भी तो छोटी मोटी और घर में जब चार चूड़ी होती है तो वह मैं कहीं ना कहीं खनकती भी है और कोई घटना होगी भी तो सड़क पर नहीं आएगी।
किसी भी महिला के द्वारा शिकायत  किए जाने पर परिवार के सदस्यों सास ससुर जेठ जेठानी अन्य के खिलाफ न्यायालय के निर्देशानुसार सीधे दर्ज नहीं किया जाता है।
अगर आप पुलिस में ना होते तो कहां होते हैं  ?
मैं अगर पुलिस में नहीं होता तो निश्चित रूप से कॉलेज में प्रोफ़ेसर होता।