Highlights

चिंतन और संवाद

ओशो : दुनिया बहुत बुद्धिमान होती चली गयी है। उसी बुद्धिमानी में बुद्धू हो गयी है। कीर्तन खोता चला गया है..!

  • 29 May 2021

कीर्तन तो उन्माद है! बुद्धिमान तो हंसेंगे। इसलिए दुनिया से कीर्तन खोता चला गया है। दुनिया बहुत बुद्धिमान होती चली गयी है। उसी बुद्धिमानी में बुद्धू हो गयी है। कीर्तन खोता चला गया है। नाच गुम हो गया है।
_लोग अगर नाचते भी हैं अब तो बहुत निम्न तल पर नाचते हैं। वह कामोत्तेजना का नृत्य होता है। अब प्रभु-उन्माद का नृत्य कहीं भी नहीं होता। अब ऊर्जा ने उन ऊंचाइयों को छूना बंद कर दिया है। अब यहां तूफान भी उठते हैं, आंधियां भी आती हैं, तो भी जमीन का दामन नहीं छूटता। आकाश में नहीं उठ पाते! पक्षी उड़ते भी हैं, तो ऐसा घर के चारों तरफ चक्कर लगाकर फिर वहीं बैठे जाते हैं। दूर-दूर कि खो जाए पृथ्वी, दूर कि खो जाये नीड़--इतने दूर आकाश में नहीं जाते! कीर्तन बड़ी दूर यात्रा है। यह परमात्मा के साथ नाचना है। जैसे तुम कभी किसी स्त्री के साथ नाचे, जिसे तुमने प्रेम किया, तो नृत्य में एक प्रसाद आ जाता है, एक गुणधर्म आ जाता है। 
किसी के साथ तुम नाचो, सिर्फ नाचने के लिए, औपचारिक, तो नाच तो हो जायेगा, क्रिया पूरी हो जायेगी; लेकिन भीतर प्राणों में कोई रस न बहेगा। फिर किसी के साथ नाचो, जिससे तुम्हें प्रेम है, तो कामोत्तेजना का, वासना का रस बहेगा!_
कीर्तन है परमात्मा के साथ नाचना, उस परम प्यारे के साथ नाचना!
 तो जैसे साधारण कामोत्तेजना का नृत्य काम-केंद्र के आसपास भटकता है, वैसे कीर्तन सहस्रार के आसपास। तुम्हारे जीवन की आखिरी ऊंचाई पर, नृत्य के फूल खिलते हैं, हजार-हजार कमल खिलते हैं।
कीर्तन अवसर है-अस्तित्व के प्रति अपने आनंद और अहोभाव को निवेदित करने का। उसकी कृपा से जो जीवन मिला, जो आनंद और चैतन्य मिला, उसके लिए अस्तित्व के प्रति हमारे हृदय में जो प्रेम और धन्यवाद का भाव है, उसे हमें कीर्तन में नाचकर, गाकर, उसके नाम-स्मरण की धुन में मस्ती में थिरककर अभिव्यक्त करते हैं।
कीर्तन उत्सव है—भक्ति-भाव से भरे हुए हृदय का। व्यक्ति की भाव-ऊर्जा का समूह की भाव ऊर्जा में विसर्जित होने का अवसर है कीर्तन।
इस प्रयोग में शरीर पर कम और ढीले वस्त्रों का होना तथा पेट का खाली होना बहुत सहयोगी है।
कीर्तन ध्यान एक घंटे का उत्सव है, जिसके पंद्रह-पंद्रह मिनट के चार चरण हैं।
संध्या का समय इसके लिए सर्वोत्तम है।
पहले चरण में कीर्तन-मंडली संगीत के साथ एक धुन गाती है—जैसे ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, राधा रमण हरिं गोपाल बोली।'
इस धुन को पुनः गाते हुए आप नृत्यमग्न हो जाएं। धुन और संगीत में पूरे भाव से डुबें, और अपने शरीर और भावों को बिना किसी सचेतन व्यवस्था के थिरकने तथा नाचने दें। नृत्य और धुन की लयबद्धता में अपनी भाव-ऊर्जा को सघनता और गहराई की ओर विकसित करें।

 

दूसरे चरण में धुन का गायन बंद हो जाता है, लेकिन संगीत और नृत्य जारी रहता है।

अब संगीत की तरंगों से एकरस होकर नृत्य जारी रखें। भावावेगों एवं आंतरिक प्रेरणाओं को बच्चों की तरह निस्संकोच होकर पूरी तरह से अभिव्यक्त होने दें।

 

तीसरा चरण पूर्ण मौन और निष्क्रियता का है।

संगीत के बंद होते ही आप अचानक रुक जाएँ। समस्त क्रियाएं बंद कर दें और विश्राम में डूब जाएँ। जाग्रत हुई भाव-ऊर्जा को भीतर ही भीतर काम करने दें।
चौथा चरण पूरे उत्सव की पूर्णाहुति का है।
पुनः शुरू हो गए मधुर संगीत के साथ आप अपने आनंद, अहोभाव और धन्यवाद के भाव को नाचकर पूरी तरह से अभिव्यक्त करें।