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चिंतन और संवाद

Osho कहिन...

  • 29 Jan 2022

"शाकाहार का मतलब है कि तुम्हें थोड़े-से शाकाहार से काम न चलेगा, "
एक ही बार भोजन करनेवाले पशु मांसाहारी हैं; जैसे शेर, सिंह, वे एक ही बार भोजन करते हैं चौबीस घंटे में--वे मांसाहारी हैं।
अगर बंदर एक ही बार भोजन करे, मरे! बंदर शुद्ध शाकाहारी है!
शाकाहार का मतलब है कि तुम्हें थोड़े-से शाकाहार से काम न चलेगा, क्योंकि उससे उतनी ऊर्जा ही न मिलेगी शरीर को।
इसलिए बंदर दिन भर चबाता ही रहता है। तुम भी जब पान चबाते हो तो तुम डार्विन के सिद्धांत को सिद्ध कर रहे हो कि आदमी बंदर से पैदा हुआ है।
तंबाकू चबा रहे हो! कुछ न हो तो बातचीत ही कर रहे हो। वह भी बंदर की आदत है।
लेकिन आदमी शाकाहारी है; जैसा बंदर शाकाहारी है।
और डार्विन की बात में सच्चाई है। अब तो शरीरशास्त्री भी राजी होते हैं कि मनुष्य कभी भी मांसाहारी नहीं रहा, क्योंकि उसकी जो अंतड़ियां हैं, वे मांसाहारी पशुओं जैसी नहीं हैं। मांसाहारी पशु की बड़ी छोटी अंतड़ी होती हैं। इसलिए तो तुम सिंह का पेट देखे हो कितना छोटा-सा! मांसाहारी है, खाता डट कर है, लेकिन पेट छोटा-सा! उसकी अंतड़ियां बहुत छोटी है।
पहलवान कोशिश करते हैं सिंह जैसा पेट बनाने की।
तो वे जबरदस्ती छाती को फुलाए जाते हैं और पेट को भीतर खींचे जाते हैं।
वह एक तरह की हिंसा है, क्योंकि शाकाहारी उतने छोटे पेट का हो ही नहीं सकता।
अंतड़ियां बहुत बड़ी हैं शाकाहारी की।
होनी चाहिए, क्योंकि उसे बहुत आहार करना पड़ेगा। उतना आहार संभाल सकें, इतनी लंबी अंतड़ियां चाहिए। कई फीट लंबी अंतड़ियां हैं भीतर गुत्थी हुई पड़ी हैं।
इसलिए बंदर धीरे-धीरे खाता रहता है। गाय शाकाहारी है, चरती रहती है।
भैंस परम शाकाहारी है! वह जुगाली करती रहती है। जो चबा लिया उसको भी निकाल कर फिर चबाती रहती है!
अगर आदमी शाकाहारी है तो एक बार भोजन अति है।
आदमी अगर शाकाहारी है तो उसे दो - तीन बार, थोड़ा-थोड़ा भोजन करना चाहिए, ज्यादा नहीं।
इसलिए तुम बड़ी हैरानी की बात देखोगे, जैन दिगंबर मुनि हैं, वे एक बार भोजन करते हैं। उनका पेट तुम हमेशा बड़ा देखोगे। अब यह बड़ी हैरानी की बात है, जब भी मैं उनकी तस्वीरें देखता हूं, मैं बहुत हैरान होता हूं कि एक बार भोजन करनेवाले आदमी का पेट इतना बड़ा क्यों?
वह ज्यादा खा रहा है, जरूरत से ज्यादा खा रहा है। क्योंकि उसे चौबीस घंटे के भोजन की पूरी चेष्टा एक ही बार में कर लेनी है। तो वह अतिशय बोझ डाल रहा है अंतड़ियों पर।
अंतड़ियां बाहर आ गई हैं।
जैन दिगंबर मुनि सुंदर नहीं मालूम पड़ते, बेहूदे मालूम पड़ते हैं; जैसे पेट के किसी रोग से ग्रसित हों, या गर्भवती स्त्रियां हों।
शरीर में अनुपात नहीं मालूम पड़ता; एक अति कर रहे हैं।
नियम तो यह है शाकाहारी के लिए कि दो या तीन बार या अगर और थोड़ा-थोड़ा भोजन ले सके तो चार या पांच बार।
थोड़ा-थोड़ा! जरा-सा ले लिया, एक फल खा लिया, बात खत्म! तब तब उतना पच जाए, फिर दो घंटे बाद एक फल ले लिया।
पेट पर बोझ न पड़े और पेट पर अति न हो, तो सम्यक आहार होगा।
एक बार भोजन तो स्वभावतः तुम इतना खा लोगे जो चौबीस घंटे काम दे सके।
मांसाहार तो ठीक है, क्योंकि थोड़े ही मांस से काम चल जाता है। मांस का मतलब है पका हुआ, तैयार भोजन पचा हुआ भोजन।
दूसरे जानवर ने तुम्हारे लिए पचा कर तैयार कर दिया।
तुम फल खाओगे, फिर फल को पचाओगे, तब उसे पचे हुए फल में से मांस बनेगा। किसी जानवर ने फल खा कर पचा लिया, मांस तैयार किया, तुमने मांस खा लिया। मांस का मतलब है पचा हुआ भोजन।
तुम्हें अब ज्यादा करने की जरूरत नहीं। इसलिए छोटी अंतड़ी काफी है।
काम दूसरे कर चुके तुम्हारे लिए, इसलिए मांसाहार शोषण है।
क्योंकि दूसरों से काम लेने का क्या हक?
जहां तक बने अपना काम खुद कर लेना चाहिए। पचाने का काम भी दूसरे से लेना शोषण है! इसलिए मांसाहार उचित नहीं है।
तुम खुद ही कर सकते हो।
मांसाहार भी अति है, क्योंकि तुम्हारी अंतड़ियां बनी नहीं हैं मांसाहार के लिए और तुम्हारा शरीर बना नहीं मांसाहार के लिए और अगर तुम मांसाहार करोगे तो तुम मिट्टी से बंध रह जाओगे, क्योंकि मांसाहार इतनी बोझिलता देगा कि तुम आकाश में उड़ने की क्षमता खो दोगे।
इसलिए समस्त ज्ञानी मांसाहार के विपरीत हो गए, किसी और कारण से नहीं। कोई ऐसा नहीं है कि तुमने मांसाहार कर लिया तो कोई बहुत महापाप हो गया।
आत्मा तो मरती नहीं; तुमने किसी का शरीर ही छीन लिया, जराजीर्ण अवस्था थे, इससे कोई बड़ा भारी महापातक नहीं हो गया।
लेकिन विरोध का कारण दूसरा है।
कारण यह है कि तुम न उड़ पाओगे आकाश में; फिर तुम्हें "अवधू गगन घर कीजै" संभव न होगा, फिर अवधू चारों खाने चित्त जमीन पर पड़े रहेंगे।
इतने वजनी हो जाएंगे अवधू कि जड़ न सकेंगे, पंख न लग सकेंगे।
शाकाहार पंख देता है। वह किसी दूसरे पर कृपा नहीं, अपने पर ही कृपा है।
मैं भी पक्ष में हूं कि तुम शाकाहारी होना, लेकिन तुम्हारे कारण! इसलिए नहीं कि पशुओं को बचाना है कि पक्षियों को बचाना है। तुम कौन हो बचाने वाले?
जो बनाता है वह बचाएगा; जो बनाता है वह मिटाएगा।
तुम कौन हो अकारण का अहंकार बीच में खड़ा करने वाले?नहीं, उस वजह से नहीं।
मैं भी शाकाहार के पक्ष में हूं, तुम्हारी वजह से! नहीं तो तुम कभी आकाश में न उड़ सकोगे।
तुम्हारे उड़ने की क्षमता टूट जाएगी।
शाकाहार तुम्हें हलका करेगा। सम्यक आहार तुम्हें बिलकुल हलका कर देगा, शरीर का बोझ ही न लगेगा।
जैसे अभी पंख मिल जाएं तो तुम अभी उड़ जाओ। जमीन तुम्हें खींचेंगी नहीं, आकाश तुम्हें उठाएगा।
ओशो.
"कहै कबीर दीवाना"